Saturday, December 26, 2015

अभावग्रस्त लोगों की सेवा करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य – पी. परमेश्वरन जी

महाशिविर कन्या.
कन्याकुमारी. विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी के अध्यक्ष पी. परमेश्वरन ने कहा कि अभावग्रस्त लोगों की सेवा करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है. इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन समर्पित करना है. कर्तव्य केवल एक दिन का कार्य नहीं है, वरन समर्पण की नित्य साधना से ही कर्तव्य का भाव प्रगट होता है. इसलिए समर्पण की नित्य साधना प्रत्येक मनुष्य को करनी होगी. उन्होंने कहा कि ऐसे समर्पण का भाव अपने भीतर विद्यमान दिव्यत्व की अनुभूति से प्रगट होता है. सारे समर्पित कार्य का स्रोत अपने हृदय की प्रेरणा ही होती है.
पी परमेश्वरन जी सार्थक युवा-समर्थ भारत महाशिविर के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द के आदर्शों के अनुरूप एकनाथजी ने विवेकानन्द केन्द्र की सम्पूर्ण रचना की. चाहे वह योग हो या शिक्षा, ग्रामीण विकास हो या प्राकृतिक संसाधनों का संवर्धन अथवा स्वास्थ्य सेवा, इन सभी में आध्यात्मिक प्रेरणा अनिवार्य है. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि शिविर में सम्मिलित प्रत्येक शिविरार्थी से यह अपेक्षा है कि वह अपने आप को लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप उन्नत करें और स्वयं को भारतमाता के कार्य के लिए समर्पित कर दें. सेवारत युवाओं के सामूहिक समर्पण पर ही भारत मां का भविष्य निर्भर है, जो अंततोगत्वा विश्व का ही भविष्य है.
25, 26 और 27 दिसम्बर, 1892 को स्वामी विवेकानन्द जी ने कन्याकुमारी में समुद्र के मध्य स्थित श्रीपाद शिला पर राष्ट्रचिंतन किया था. स्वामी जी को इन तीन दिनों के ध्यान से भारत को जाग्रत करने का मार्ग मिला था. इन तीन दिनों के महत्व को ध्यान में रखते हुए केंद्र ने 25 से 27 दिसंबर को शिविर का आयोजन किया है. शिविर में कश्मीर से कन्याकुमारी और अरुणाचल से गुजरात में छह माह से सेवारत 680 युवा, जिनमें 432 युवकों तथा 248 युवतियां भाग ले रही हैं.
महाशिविर कन्याउद्घाटन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि भारत विकास ग्रुप के संस्थापक तथा अध्यक्ष हनुमन्त गायकवाड़, विवेकानन्द केंद्र के उपाध्यक्ष ए बालकृष्णन व्यासपीठ पर विराजमान थे. अब तक 65 हजार युवाओं को रोजगार देने वाले हनुमंत गायकवाड़ ने अपने सफल व सार्थक जीवन का अनुभव बताया. साथ ही केंद्र के उपाध्यक्ष बालकृष्णन ने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि भारत तभी जगतगुरु बनेगा, जब देशवासियों के मन में त्याग और सेवा का भाव जाग्रत होगा. उन्होंने बताया कि हमें कभी हताश या निराश नहीं होना है क्योंकि हम अमृत के पुत्र हैं, ईश्वर हमारे भीतर है. हम अपने अंदर निहित शक्ति से सारी बाधाओं को पार कर सकते हैं.

No comments: