जयपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि हम पाश्चात्य संस्कृति से जो उपयोगी हो वो लें, लेकिन अपनी श्रेष्ठ मान्यता, पद्धतियां, दर्शन आदि को भी नहीं छोडें. अगर हम ऐसा करते रहेंगे तो बचे रहेंगे. यह दर्शन वर्षों पहले पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी हमको दे गए थे. सह सरकार्यवाह जी मंगलवार को जयपुर स्थित बिडला सभागार में एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान, जयपुर की ओर से आयोजित दीनदयाल स्मृति व्याख्यान – 2016 कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. दीनदयाल संपूर्ण वांग्मय की प्रासंगिता’ विषयक इस कार्यक्रम में डॉ. कृष्ण गोपाल जी मुख्य वक्ता थे.
उन्होंने कहा कि दूसरे देशों से आई व्यवस्था हमको परेशान कर रही है. हम सामर्थ्यवान तो हुए, लेकिन एकाकी हो गए. पहले गांवों में सुख-दु:ख के अवसर पर लोग एकत्रित हुआ करते थे. पूरा गांव सामूहिक था. वर्तमान शिक्षा ने बहुत दिया, लेकिन काफी हमसे छीना भी. मूल्यहीन शिक्षा ने हमको एकल बना दिया. महानगरों में नीचे फ्लैट में रहने वाला अपने उपर रहने वाले का नाम तक नहीं जानता है. इन सब का जब विचार करते हैं तो पंडित दीनदयाल जी का सुझाया दर्शन याद आता है. उन्होंने कहा था कि हमें पाश्चात्य संस्कृति से लेना चाहिए, लेकिन अपनी पूर्ण प्रमाणिक बातों का बराबर पालन करते हुए. उन्होंने पं. दीनदयाल जी के जीवन पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि वे न केवल दूरदृष्टा थे, बल्कि अनथक परिश्रमी भी थी. उन्होंने कार्यकर्ताओं को गढ़ा. उन्हें स्वार्थ के लिए नहीं परमार्थ के लिए कार्य करने की सीख दी. वे अभावों में कार्यकर्ताओं को भेजकर उन्हें निखारने का काम करते थे. भारत यानी आराध्य है. यह भूमि का टुकड़ा मात्र नहीं है. इसे स्थापित किया गया है. यहां एकता भिन्न प्रकार की है. यह सब बातें पंडित उपाध्याय पर निकाले गए सम्पूर्ण वांग्मय के पन्द्रह खण्डों को पढ़ने को मिल सकेंगी.कार्यक्रम की अध्यक्षता राजस्थान प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जी ने की. मुख्यमंत्री राजे एवं एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान, जयपुर के अध्यक्ष डॉ. महेशचन्द्र शर्मा ने भी पंडित दीनदयाल जी पर विचार रखे. कार्यक्रम के दौरान पन्द्रह खण्डों में प्रकाशित ‘दीनदयाल सम्पूर्ण वांग्मय की प्रासंगिता’ नामक पुस्तक का विमोचन भी किया गया.
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