Thursday, September 17, 2015

हिन्दू जीवन दृष्टि में स्त्री-पुरुष एक ही तत्व के दो प्रकटीकरण – डॉ. मोहनराव भागवत जी

जयपुर (विसंकें) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि भारत को परमवैभव संपन्न बनाना है तो भारत की मातृशक्ति का जागरण और सशक्तिकरण करना होगा। श्री भागवत जी ने कहा कि पुरुषों के बराबर उनका योगदान हो ऐसी स्थिति उत्पन्न करना यह आज के समय की आवश्यकता है। यह सशक्तिकरण इस देश के सनातन मूल्यों के आधार पर ही करना पड़ेगा, क्योंकि इन सब विषयों में बाकि दुनिया का जो अनुभव है वह हमारी तुलना में बहुत थोडा है। युगों-युगों से सब प्रकार की परिस्थितियों में सब प्रकार के उतार-चढाव देखते हुए अब तक यह समाज आया है, उसमें अनुभवों का समृद्ध भंडार अपने पास है और अनुभवों की कसौटी पर अपनी बातें टिकी हैं। दुनिया अभी बहुत मामलों में प्रयोगावस्था में ही चल रही है। जो शाश्वत सत्य है उसके आधार पर ही खड़ा होना पड़ेगा।SONY DSC
उन्होंने कहा कि हिन्दू जीवन दृष्टि एकात्म होने के नाते स्त्री-पुरुष को एक ही तत्व के दो प्रकटीकरण के रूप में देखती है, इसलिए समानता के बदले एकत्व पर उसका बल है।
श्री भागवत जी 13 सितम्बर को जयपुर में “महिला विषयक भारतीय दृष्टिकोण” विषय पर दो दिवसीय स्तम्भ लेखक संगोष्ठी के समापन अवसर पर बोल रहे थे.
श्री भागवत ने कहा कि आज वैज्ञानिक कसौटियों पर प्रचलित हिंदू धर्म का विचार करने की आवश्यकता है, तथा कसौटियों पर खरा नहीं उतरने वाली बातों को छोड़ देना चाहिए। जितनी जल्दी ऐसी बातें जायेगी उतना अच्छा होगा।
उन्होंने कहा कि समन्वय को लेकर सृष्टि को आगे बढ़ाने का सामर्थ्य सिर्फ हिन्दू धर्म में ही है। इसके लिए हमें सनातन मूल्यों और आधुनिक परिस्थितियों को जोड़ कर आगे बढ़ना होगा। हिन्दू जीवन दृष्टि के आधार पर ही सारे विषयों को और समस्याओं को देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व के कारण समस्या नहीं है, हिंदुत्व को भूलने के कारण समस्या है। हिंदुत्व के विस्मरण के कारण ही हमारा पतन हुआ, इतिहास इसका साक्षी है।????????
श्री भागवत जी ने कहा कि भारत की परिवार व्यवस्था का मूल्य और महत्व अनेक चुनौतियों के बावजूद अक्षुण्ण टिका हुआ है। यह हिंदू समाज की एक ताकत है। अपनी जड़ों की पहचान के साथ जड़ों को मजबूत करते रहने से पश्चिमीकरण या ऐसे अनेक आक्रमणों का मुकाबला करने की शक्ति समाज में निर्माण होगी।
उन्होंने कहा कि गलत रूढ़ियों को नकारते हुए शाश्वत जीवन मूल्यों के आधार पर दुनिया से अच्छी बातों को स्वीकार करने की भारत की परम्परा रही है। इसी के आधार पर समाज संगठित होकर खड़ा रहेगा और सारी मानवता को जीवन का उद्देश्य और जीवन की दिशा देने का कार्य वह सक्षमतापूर्वक करेगा। आज सारी दुनिया मूल्य व्यवस्था के आधार पर पुनर्रचना की आवश्यकता अनुभव कर रही है, और दुनिया आशा करती है कि भारत वह रास्ता दिखाए।????????
इस स्तम्भ लेखक गोष्ठी में लगभग 130 स्तम्भ लेखकों ने हिस्सा लिया। दो  दिवसीय इस गोष्ठी में सांस्कृतिक जागरण में महिला सहभाग तथा महिला आन्दोलन में भारत का प्रतिसाद, परिवार व्यवस्था की वैश्विक प्रासंगिकता, विकास का भारतीय प्रारूप और महिला, हिन्दू चिंतन में नारी विमर्श, मीडिया, राजनीति एवं कानूनी प्रावधान के क्षेत्रों में महिला के सामने चुनौती विषयों पर  वक्ताओं ने अपने विचार रखे।????????

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