Thursday, September 03, 2015

इतिहास को आधारयुक्त बनाकर भारतीय संदर्भ में लिखने की आवश्यकता – सतीश चंद्र जी

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टना (विसंकें). कुरुक्षेत्र विवि से सेवानिवृत्त आचार्य (इतिहास) एवं अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सतीश चंद्र मित्तल ने कहा कि प्राचीन भारतीय इतिहास का आधार आज भी यहां के पुराणों यथा रामायण -महाभारत तथा वेद-वेदांगों में भरा पड़ा है. जबकि इसके इतर कुछ वामपंथी विचारधारा के इतिहासकार वास्तविकता को झुठलाकर इसे मिटाने की कोशिश में लगे हैं. इस मानसिकता को बदलना पड़ेगा.
सतीश जी स्थानीय अरविन्द महिला कॉलेज में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी व प्रांतीय अधिवेशन को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि इतिहास को आधारयुक्त बनाकर उसे भारतीय संदर्भ में लिखे जाने की जरूरत है और इस दिशा में प्रयास जारी है. जिस सरस्वती नदी को इतिहासकार विलुप्त बता रहे थे, वह सेटेलाइट और नासा के जरिए साबित हो गया है कि सलीला नदी के रूप में वह आज भी विद्यमान है. भारतीय इतिहास संकलन योजना की यह महान उपलब्धि धरातल पर सरस्वती नदी की खोज है.
इस मौके पर नव नालंदा महाविहार नालंदा के शोध छात्र शत्रुघ्न कुमार ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि विक्रमशीला पूर्व-मध्यकालीन भारत का एक प्रसिद्ध शिक्षा केन्द्र था. बौद्ध धर्म के वज्रयानी सिद्धांतों के पठन-पाठन के लिए इसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिली थी. यह भागलपुर जिले के अंतीयक में उत्खनित विक्रमशीला के भग्नावशेषों एवं उससे प्राप्त मूर्तियों, कलाकृतियों के आधार पर कहा जाता है कि विश्वविद्यालय का निर्माण पाल नरेश धर्मपाल ने कराया था. बाद में उन्होंने उसे महाविहार के रूप में विकसित किया और फिर राजकीय विश्वविद्यालय के रूप में संरक्षण प्रदान किया. 13वीं सदी के आरंभ में तुर्कों ने बिहार-बंगाल पर आक्रमण किया और 1205-06 में विक्रमशीला का ध्वंस कर दिया गया.
इसी संस्थान के शोध छात्र जयकृष्ण कृष्णम ने शोध-पत्र में कहा कि आज अगर हम आजादी पर बहस करते हैं तो बिहार हमें सबसे उच्च पायदान पर दिखाई देता है और बिहार ने नमक सत्याग्रह को जन्म दिया. मुंगेर में श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में नमक बनाने के लिए कांग्रेस कार्रवाईयां बढ़ा रही थी. श्रीकृष्ण सिंह उन दिनों बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव थे. 27 अप्रैल को वायसराय ने एक अध्यादेश निकाल कर 1910 का प्रेस अधिनियम पुनः लागू कर दिया, जिसके विरोध में समाचार-पत्रों ने अपना प्रकाशन बंद कर दिया.
भारतीय इतिहास संकलन समिति दक्षिण बिहार के सह संयोजक और समारोह की अध्यक्षता कर रहे डॉ. जयदेव मिश्र ने शोधार्थी छात्रों को शोध करने के क्रम में किन-किन बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए, उसकी बारीकी के संबंध में बताया. इतिहास में किसी भी बात को कहने के लिए उसका आधार होना चाहिए. इतिहास की गाड़ी तर्क पर नहीं चलती. तीन सौ वर्षों से ड्रामा चल रहा है कि आर्य बाहर से आए थे, लेकिन वे बाहर कहीं से नहीं बल्कि पश्चिमोत्तर भारत से ही आए थे. अंग्रेजों की नकल करना छोड़ना होगा. हमें नए सिरे से तथ्यों को तलाशना होगा. समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख माननीय स्वांत रंजन भी उपस्थित थे. मंच संचालन अरूण कुमार सिंह ने किया. संगोष्ठी समारोह के कार्यान्वयन का काम शैलेश कुमार ने किया.

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