Monday, November 14, 2016

देश में संस्कृति एवं संस्कारों का संरक्षण करना आवश्यक – डॉ. मोहन भागवत जी


जम्मू (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि समाज के अनुशासित एवं गुणवान होने पर व्यवस्था परिवर्तन से जटिल समस्याओं का हल निकाला जा सकता है. समाज की शायद कुछ कमजोरी रही कि लोग जटिल समस्याओं से जूझ रहे हैं. देश के संविधान एवं कानून व्यवस्था के तहत उन लोगों से सख्ती से निपटने की जरूरत है जो विघटनकारी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे हैं. सीमा पार से उकसावे के प्रयासों को भी सख्ती से जवाब देने की जरूरत है. राज्य के लोगों का अभिवादन करते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि लंबे समय से समस्याओं से जूझ रहे लोगों ने राष्ट्रवाद को नहीं छोड़ा और मैदान में डटे हुए हैं. सरसंघचालक जी जम्मू के स्वयंसेवकों के एकत्रीकरण कार्यक्रम शंखनाद – 2016 में संबोधित कर रहे थे. वे प्रांत के दो दिवसीय प्रवास पर हैं.

उन्होंने जम्मू संभाग के विभिन्न जिलों से आए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वंयसेवकों एवं समाज के वरिष्ठ नागरिकों को परेड ग्रांउड में संबोधित करते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर में समस्याएं रही हैं और परिस्थितियां आती जाती रही हैं. परन्तु राज्य के लोगों ने हिम्मत एवं धैर्य से इनका मुकाबला किया और देश के पक्ष में आस्था बनाए रखी, जिसका वह अभिभावदन करते हैं. इन समस्याओं का निदान होना चाहिए. समस्याएं लंबी चलती रहीं, उसका पहला अर्थ है कि हममें सामर्थ्य नहीं है या समाधान निकालने में कोई कमी रह गई. देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था है और संविधान के तहत राज्य व्यवस्था के माध्यम से समस्याओं का समाधान हो सकता है और इसके लिए समाज को राज्य शासन में ऐसी व्यवस्था बनानी होगी और लोकतंत्र का यही नियम है. यह देश एकजन एक राष्ट्र है और इसी के आधार पर संविधान बनाया गया. कानून, संविधान, राज्य व्यवस्थाएं सहायक होती हैं, परन्तु मात्र उतने से काम नहीं होता. असली करने वाला तो समाज होता है. समाज जो चाहता है, जैसा चाहता है प्रशासन को वैसे की अपने आप को मोड़ना पड़ता है. हर समस्या का हल समाज के माध्यम से ही होगा. संघ 1925 से ऐसा ही समाज व कार्यकर्ता निर्माण करने में लगा हुआ है जो देश एवं समाज के लिए जीने मरने वाला बन सके. यह कार्य आसान नहीं, बल्कि कठिन व साधना का है. संघ की शाखा ही एक ऐसा माध्यम है, जिसमें ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण हो सकता है. यह देश मात्र धरती का टुकड़ा नहीं है, बल्कि हमारी मातृभूमि है और इसकी एकता, अखंडता एवं संप्रभुता सर्वोपरि है.

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि देश में अनुशासित एवं जिम्मेदार नागरिक तैयार करने के लिए डॉ. हेडगेवार जी ने अपनी चिंता किए बगैर संघ की शुरूआत की ताकि समाज की मानसिकता को बदलते हुए देश की एकता, संप्रभुता एवं अखंडता को बनाए रखा जा सके. इतिहास साक्षी रहा है कि समाज में जागरूकता नहीं होने की वजह से देश पर विदेशी हमले हुए. उन्होंने समाज से आह्वान किया कि वे इस पुण्य कार्य के सहयोगी व स्वयंसेवक बनें और समाज के लिए कुछ न कुछ समय निकालें. देश को परम वैभव पर पहुंचाने में अपना सहयोग दें. उन्होंने कहा कि राज्य प्रशासन को जनता के साथ बिना किसी भेदभाव के काम करना चाहिए. व्यवस्था के परिवर्तन से मानवीय एकता पोषक होनी चाहिए न कि तोड़ने वाली. देश में विभिन्न मत मतांतर, विचारधाराएं, विविधताएं, संस्कृति, भाषाएं हैं, परन्तु बावजूद इसके सभी राज्यों एवं लोगों को राष्ट्रवाद के भाव से जोड़े हुए है. इसलिए जरूरी है कि देश में संस्कृति एवं संस्कारों का संरक्षण किया जाए ताकि मानवता के मूल्यों को सुदृढ़ बनाया जा सके. देश में भावनात्मक एकता लाने के लिए स्वंयसेवकों को काम करना होगा और इसके लिए जरूरी है कि दैनिक शाखा में समय निकालें. समाज को इन समस्याओं को दोबारा न झेलना पड़े इसके लिए स्वयंसेवकों को समाज में काम करना होगा. मंच पर उत्तर क्षेत्र संघचालक डॉ. बजरंग लाल गुप्त जी, प्रांत संघचालक ब्रिगेडियर (सेवानिवृत) सुचेत सिंह जी उपस्थित थे.






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