Monday, November 14, 2016

संस्कृति संरक्षण, सामाजिक समरसता एवं आर्थिक विकास में स्त्री की अहम् भूमिका – सुमित्रा महाजन जी

नई दिल्ली. राष्ट्र सेविका समिति के तीन दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकर्ता प्रेरणा शिविर के तीसरे और अंतिम दिन राष्ट्र के विकास में परिवार की भूमिका संगोष्ठी के अध्यक्षीय भाषण में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन जी ने कहा कि हमें अपने परिवार की स्त्री को सक्षम बनाना होगा, क्योंकि संस्कृति संरक्षण, सामाजिक समरसता एवं आर्थिक विकास के मूल में परिवार की भूमिका होती है और परिवार को परिष्कृत स्त्री करती है. समाज की आधार शक्ति परिवार होता है, परिवार की आधार शक्ति स्त्री होती है. उन्होंने कहा कि संस्कृति संरक्षण में स्त्री की महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि माँ ही परिवार में संस्कारों की पोषक होती है. जिस प्रकार शरीर के हर अंग का महत्व और कार्य है. ठीक उसी प्रकार समाज के प्रति समाज के हर वर्ग, संप्रदाय का महत्व है. जब समाज के सभी अंग भेदभाव और आपसी वैमनस्य भुलाकर आपस में मिलकर कार्य करेंगे, तभी सामाजिक समरसता आएगी, उन्नति एवं विकास होगा. मात्र दिखावे और ढोल पीटने से समाज में बदलाव नहीं आएगा. समाज में परिवर्तन लाने के लिए हमें खुद को बदलना होगा.
उन्होंने अपने परिवार के अनेक ऐसे उदहारण दिए जिनमें अपनी दादी, माँ और सास से उन्होंने सामाजिक समरसता का पाठ सीखा. जिसमें गाँव के कुम्हार, धोबी, सपेरे और अन्य जातियों के साथ सदभावपूर्ण और सहयोगपूर्ण व्यवहार किया जाता था और उनकी हर संभव मदद की जाती थी. सामाजिक समरसता संस्कारों से आती है, अलग-अलग सम्प्रदायों के साथ भोजन करने से नहीं आती है और ना मात्र अंतरजातीय विवाह करने से सामाजिक समरसता आती है. उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास में परिवार की स्त्री बहुत अच्छा योगदान दे सकती है. यदि वो दृढ़ता के साथ अपने पति और पुत्र को कहे कि किसी कीमत पर काला धन या रिश्वत की कमाई उसके घर में नहीं आएगी. जिससे समाज भ्रष्टाचार रहित बनेगा. एक हजार और पांच सौ के नोटों के बंद होने पर देश में जिस तरह लोगों में अफरा-तफरी मची है, उसे घर की स्त्रियाँ कंट्रोल करने में सक्षम हैं. क्योंकि वो ये अच्छे से जानती हैं कि सरकार ने ये कदम आतंकवाद और नशे के व्यापर को रोकने के लिए उठाया है.
लगभग छह वर्ष की आयु से राष्ट्र सेविका समिति की सेविका रही सुमित्रा महाजन जी को गर्व है कि समिति ने उन्हें बहुत अच्छे संस्कार दिए. जो परिवार के संस्कारों के साथ मिलकर सोने पर सुहागा बन गए. उन्होंने समिति के कार्यों की सराहना की और प्रसन्नता जताई कि 80 वर्ष की अपनी यात्रा में समिति ने अनेक उपलब्धियां प्राप्त की हैं. हजारों-लाखों स्त्रियों को बौद्धिक, सांस्कृतिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाया है. उन्होंने विश्वास जताया कि समिति हर परिस्थिति, हर काल में अपने मूल्यों का संरक्षण करेगी और देशभर की महिलाओं को प्रेरित भी करेगी.




संगोष्ठी में कालिदास विश्वविद्यालय, रामटेक, नागपुर की उपकुलपति डॉ. उमा वैद्य जी ने परिवार के संस्कृति एवं संरक्षण विषय पर विचार रखे. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति शाश्वत है. इसका प्रवाह निरंतर रहेगा क्योंकि इसके मूल में परिवार है और परिवार ही संस्कृति की रक्षा करता है.
संगोष्ठी की अन्य वक्ता महिला विश्वविद्यालय, विजयपुर की पूर्व उपकुलपति डॉ. मीना चंदावरकर जी ने कहा कि मानवीय संबंधों का नाम ही परिवार है. परिवार नींव है तो समाज इमारत. हमें समरस नींव और इमारत के लिए समाज से भेदभाव और जात-पात को त्यागना होगा.
वित्त आयोग, राजस्थान की अध्यक्ष डॉ. ज्योतिकिरण शुक्ला जी ने परिवार के आर्थिक विकास पर कहा कि भारतीय विकास की अवधारणा परिवार केन्द्रित है, जिसका पोषण स्त्रियाँ करती हैं. हमारे यहाँ भौतिकता के बजाय आध्यात्मिकता में संतोष मिलता है. जब हम अपने स्त्रीश्रम को मौद्रिक रूप में देखते हैं तो हमारी जीडीपी 40 प्रतिशत बढ़ जाती है. इससे सिद्ध होता है कि आर्थिक विकास में परिवार और महिला की महत्वपूर्ण भूमिका है.

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