Wednesday, November 09, 2016

माध्यमिक परीक्षा प्रणाली: समीक्षा एवं समुन्नयन विषय पर मंथन की रिपोर्ट सरकार को सौंपी

जयपुर (विसंकें). माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अजमेर एवं शैक्षिक मंथन संस्थान, जयपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में अजमेर में ‘माध्यमिक परीक्षा प्रणाली: समीक्षा एवं समुन्नयन’ विषय पर द्वि-दिवसीय संगोष्ठी आयोजित की गई. जिसमें शिक्षा से जुड़े अनेक विषयों पर चिंतन हुआ. चिंतन के बाद तैयार रिपोर्ट को शनिवार को शैक्षिक मंथन संस्थान के सचिव महेन्द्र कपूर के नेतृत्व में राजस्थान शिक्षा मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी को सौंपी गई. इस अवसर पर डॉ. राजेन्द्र शर्मा, सह सम्पादक भरत शर्मा, डॉ. ओमप्रकाश पारीक, नौरंग सहाय भारती एवं आलोक चतुर्वेदी भी उपस्थित थे. रिपोर्ट पर प्रो. देवनानी ने संस्थान के सदस्यों से विस्तार से चर्चा की और आवश्यक कार्यवाही के लिए सहमति व्यक्त की.
रिपोर्ट में प्रायोगिक, सैद्धान्तिक परीक्षा एवं सत्रांत, प्रश्नपत्र निर्माण एवं उत्तर पुस्तिका मूल्यांकन, परीक्षा प्रणाली एवं सहशैक्षिक गतिविधियाँ, परीक्षा के मनोवैज्ञानिक पक्ष, सतत् एवं समग्र मूल्यांकन विषय पर उन्नयन हेतु सुझाव दिये गये.
प्रायोगिक एवं सैद्धान्तिक परीक्षा एवं सत्रांक से सम्बन्धित सुझाव –
– सैद्धान्तिक परीक्षा के साथ ही प्रश्न-पत्र में प्रायोगिक परीक्षा से संबंधित प्रश्न भी सम्मिलित हों. जिससे जिस विद्यार्थी ने प्रायोगिक कार्य उचित प्रकार से किया होगा, वही उनके उत्तर दे सकेगा. इससे प्रायोगिक परीक्षा की विश्वसनीयता बढ़ेगी.
– कोचिंग प्रवृत्ति के दुष्प्रभाव के कारण कुछ बालक स्कूल में प्रवेश तो लेते हैं, लेकिन विद्यालय में आते नहीं. इसलिये प्रायोगिक कार्य भी नहीं करते हैं, अत: प्रशासन द्वारा समुचित निरीक्षण की व्यवस्था हो.
– विद्यालयों में प्रायोगिक विषयों की सीटें संसाधनों के अनुरूप हों, उसी अनुपात में प्रवेश दिया जाए तथा नियमित प्रायोगिक कक्षा पर बल दिया जाए. विद्यालय में 20 बालकों के एक साथ प्रायोगिक परीक्षा की व्यवस्था हो तथा सीसीटीवी कैमरे स्थापित हों, जिससे प्रशासन प्रायोगिक कक्षाओं के स्तर एवं व्यवस्था की देखरेख कर सके. इससे प्रायोगिक परीक्षाओं में पारदर्शिता आएगी व विश्वसनीयता बढ़ेगी.
– बाह्य परीक्षक जो प्रायोगिक परीक्षाओं में उस विद्यालय से जुड़ाव नहीं होता तथा न ही उनके उत्तम चरित्र का ज्ञान होता, अत: स्थानीय स्तर पर ऐसे बाह्य परीक्षक लगायें, जिनका चरित्र उत्तम हो तथा समाज में ईमानदारी के लिये प्रतिष्ठित हों. इससे अनुचित प्रकार से अंक देने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी.
– प्रायोगिक परीक्षाओं के लिये नोडल स्तर पर सुसज्जित लैब बनाई जाएं एवं ऐसे केन्द्रों पर समुचित देखरेख में परीक्षाएं सम्पन्न हों.
प्रश्न-पत्र निर्माण एवं उत्तर पुस्तिका मूल्यांकन से सम्बन्धित सुझाव –
– प्रश्न-पत्र परीक्षा का एक साधन है, इसलिये वह ऐसा होना चाहिये जिससे सभी प्रकार के व्यक्तिगत विभिन्नता वाले बालकों की बौद्धिक उपलब्धियों की जाँच हो सके. इसमें साधारण एवं असाधारण प्रतिभाओं का सही मूल्यांकन करने की क्षमता होनी चाहिये.
– सर्वप्रथम प्रश्न-पत्र का डिजाईन तैयार किया जाना चाहिये, जिसमें यह निश्चित हो कि पाठ्यक्रम के किस भाग को कितना भार दिया जाना अपेक्षित है. इसी के साथ ज्ञान, स्मरण एवं समझ इत्यादि के लिये भी अलग-अलग अंक भार दिया जाना चाहिये. भिन्न, भिन्न कौशलों की जाँच के लिये भी अंक भार निर्धारित हो.
– प्रश्न-पत्र निर्माण से पहले ब्लूप्रिन्ट आवश्यक रूप से बनाना चाहिये. जिसमें सम्पूर्ण पाठ्यक्रम के आधार पर कुल कितने प्रश्न होंगे, उसमें बहुविकल्पीय, अतिलघुत्तरात्मक, लघुत्तरात्मक तथा निबन्धात्मक प्रश्न कितने-कितने होंगे, यह निर्धारण होना चाहिये.
– प्रश्न-पत्र में प्रश्न दुविधापूर्ण तथा द्विअर्थीय नहीं होने चाहिये, ब्लूप्रिन्ट के अनुसार कठिनता का स्तर हो, बहुविकल्प वाले प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर समानता लिये हुये न हों तथा विद्यार्थी भली भांति समझकर उत्तर दे सके, ऐसे प्रश्न हों. प्रश्नों द्वारा पाठ्यक्रम की विषयवस्तु प्रमाणित होनी चाहिये.
– वर्तमान में प्रचलित परीक्षा प्रणाली के सुधार की आवश्यकता पर बल देते हुए बताया कि परीक्षा प्रणाली में केवल सूचनाओं का ही परीक्षण नहीं होना चाहिये, अपितु संपूर्ण चरित्र की परीक्षा होनी चाहिये. आज की परीक्षा-प्रणाली में उपनिषद साहित्य से सीख लेनी चाहिये, जिसमें प्रश्नों के माध्यम से जिज्ञासा उत्पन्न कर व्यक्ति में ज्ञान भरा जाता था तथा वह ज्ञान प्राचीनकाल में आचरण में समाहित हो जाता था और व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता था. मूल्यांकन में मूल्यांकनकर्ता शिक्षक का भी मूल्यांकन होना चाहिये.

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