झाबुआ. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक परम पूज्य डा. मोहन राव भागवत ने कहा है कि समाज का वास्तव में भला तब ही होगा, जब समाज स्वयं सोचेगा कि अपना भला होना चाहिये.
यहां दत्ताजी उननगावंकर ट्रस्ट द्वारा निर्मित संघ कार्यालय जागृति के 1 जुलाई को हुए लोकार्पण पर उपस्थित कार्यकर्ताओं और गणमान्य नागरिकों को संबोधित करते हुए सरसंघचालक ने कहा कि यह बात भलीप्रकार समझ लेनी चाहिये कि समाज कल्याण या उत्थान किसी बाहरी व्यक्ति के आशीर्वाद के बजाय स्वयं के पुरुषार्थ से होगा. उन्होंने कहा, “ हमारे साधु-महात्मा कहते हैं कि ईश्वर भी खेल खेलता है. अपने एक अंश को मनुष्य बना कर भेजा है और कहता है जा! मैंने तुझे सब दिया. अब तू नर से नारायण बन जा.”
परम पूज्य ने बड़े भवन के निर्माण के साथ ही काम भी बड़े पैमाने पर करने का आह्वान किया और सावधान किया कि बड़े कार्यालय में कार्य का लय न हो जाय बल्कि कार्य में लय आ जानी चाहिये. उन्होंने अपेक्षा व्यक्त की कि यह भवन समाज की विभिन्न आशाओं की पूर्ति का केन्द्र बनना चाहिये. इस भवन में आने मात्र से मनुष्य को आश्वस्ति प्राप्त हो. उन्होंने कहा, “जिस प्रकार से भवन बनाने में सभी का सहयोग मिला, वैसे ही इस भवन से काम हो- उसमें सभी का सहयोग मिलना चाहिये. मात्र भवन बनाने से काम नहीं पूर्ण हो जाता, बल्कि वास्तव में भवन बनाने के बाद काम प्रारंभ होता है और उसे तब तक करते रहना है, जब तक कार्य पूर्ण नहीं हो जाता.”
झाबुआ जिले के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान का स्मरण कराते हुए परम पूज्य सरसंघचालक ने कहा कि मनुष्य सच्चे अर्थो मे स्वतंत्र तब होता है, जब वह स्वधर्म और स्वदेश को देखता है. उन्होंने कहा कि हम जो धर्म मानते हैं, वह सारी दुनिया का है, जिसे कभी हम प्रेम तो कभी करूणा तो कभी किसी और नाम से जानते हैं. जब इसे एक नाम देने की आवश्यकता पड़ी तो इसे कहा गया हिन्दू धर्म. इसके वैश्विक बनने का कारण उन्होंने भारत भूमि की वह विशेषता बताई जो सब कुछ देती है और इतना देती है कि हमें उसे बांटना पड़ता है. इसी कारण हमने चाहा कि भाषा अलग है, पूजा अलग है, लेकिन हमें इस भूमि से इतना मिल रहा है कि हम सब मिल कर रहें.
परम पूज्य सरसंघचालक ने विश्व कल्याण के लिये परामर्श दिया कि एक दूसरे की पूजा-पद्धति को बदलने का प्रयास करने के बजाय सबको मिल-जुल कर रहना चाहिये. उन्होंने कहा कि उपभोग के लिये संघर्ष करना तो व्यक्ति तब चाहता है, जब कोई कमी हो, लेकिन जब व्यक्ति को आवश्यकता से अधिक मिलता है, तो वह दूसरों की सहायता करने की सोचता है. उन्होंने जोर देकर कहा कि हमारा यह स्वभाव इस भूमि ने बनाया, इस देश ने बनाया. इसलिये देश की रक्षा ही धर्म की रक्षा है और जब हम यह सब सोच कर संगठित होंगे, सामर्थ्यवान होंगे, तो कोई भी समस्या हमारे समाने नहीं टिक पायेगी.
परम पूज्य सरसंघचालक ने दत्ताजी उननगांवकर के बारे में बताया कि वे, जिनके नाम से यह ट्रस्ट है, संघ के ही प्रचारक थे. हमेशा सबकी परवाह करते थे, अपने लिये कुछ नहीं सोचते थे. इसलिये दत्ताजी को उनके अंतिम दिनों में अपना सर्वस्व त्याग करने वाले प्रचारकों की चिंता करने के लिये प्रचारक प्रमुख बनाया गया.
इस अवसर पर दत्ताजी उननगावकर ट्रस्ट के अध्यक्ष रामगोपाल जी वर्मा ने ट्रस्ट के कार्यकलापों के बारे में विस्तार से जानकारी दी और बताया कि इस निर्माण कार्य में जिले के सभी स्वयंसेवकों ने दिन-रात अथक प्रयास किया और समाज ने भी बड़े उत्साह के साथ सहयोग दिया. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए क्षेत्र संघचालक श्री अशोक जी सोहनी ने कहा की पहले पुराना कार्यालय छोटा था, अब बड़ा कार्यालय बन चुका है यानी काम भी अब ज्यादा बड़ा हो चुका है.
पूरम पूज्य सरसंघचालक जी की मुख्य द्वार पर अगवानी प्रांत प्रचारक परगाजी अभ्यंकर, क्षेत्र संघचालक अशोक जी सोहनी, विभाग संघचालक जवाहर जी जैन, जिला संघचालक मुकुट जी चौहान ने की. वनवासी नर्तक दल की प्रस्तुति के साथ मंच तक लाया गया जहां पर वनवासी परम्परा के अनुसार उनके प्रतीक चिन्हों से जिला कार्यवाह रूस्माल चरपोटा ने स्वागत किया.
अलिराजपुर जिले से आये आदिवासी नृत्य दल की आकर्षक प्रस्तुतियों को देख कर परमपूज्य सरसंघचालक जी काफी प्रभावित हुये. उन्होंने उनके साथ फोटो भी खिंचवा
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