Wednesday, June 20, 2012

शंख क्षेत्र के रूप में परिचित पुरी

श्रीयंत्र पर बना महाप्रभु जगन्नाथ का श्रीमंदिर
भुवनेश्वर :
vsk
भगवान श्री जगन्नाथ के मंदिर को श्रीमंदिर कहा जाता है। शंख क्षेत्र के रूप में परिचित पुरी के मध्य भाग में यह विशालकाय मंदिर निर्मित है। लंबी दूरी तय कर भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने पुरी आने वाले भक्त श्रीमंदिर पहुंच हर्षित और उल्लसित हो जाते हैं। पुरी के जगन्नाथ मंदिर की विशेषता यह है कि यह श्रीयंत्र पर बनाया गया है।

श्रीमंदिर के ऊपर लगी पतित-पावन कहलाने वाली ध्वजा को नमस्कार कर भक्त, भगवान की शरण में जाने को आतुर दिखाई देता है। पुरी से सात किलोमीटर दूर बसे चंदनपुर से ही श्रीमंदिर का दर्शन होने लगता है।

पुरी का यह विशालकाय मंदिर लगभग 10 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इस विशालकाय मंदिर के दो परकोटे हैं। बाहरी परकोटे का नाम मेघनाद पाचेरी एवं अंदरूनी का नाम कुर्मबेढ़ा है। प्राचीन कथाओं के अनुसार समुद्र की गर्जना से बचने के लिए भगवान के निर्देश से मेघनाद पाचेरी परकोटा बनाया गया था। इस दीवार के बाहर जाते ही समुद्र का घनघोर गर्जन सुनाई देता है। आश्चर्य की बात है कि जैसे ही मेघनाद दीवार पार कर मंदिर परिसर में पहुंचते हैं तो समुद्र की गर्जना का शोर नहींसुनाई देता।

पुरी का श्रीमंदिर उत्कल मंदिर परंपरा का श्रेष्ठतम नमूना है। यह मंदिर गर्भगृह, जगमोहन, नाट्य मंडप और भोग मण्डप चार भागों में बंटा हुआ है। मंदिर में रत्न सिंहासन पर भगवान श्री जगन्नाथ, बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ सुदर्शन जी विराजमान हैं। इन्हें चतुर्धा मूर्ति के तौर पर पूजा जाता है। मंदिर में पा‌र्श्व देवता के तौर पर उत्तर की ओर त्रिविक्रम, पश्चिम में नृसिंह एवं दक्षिण में वाराह की विशालकाय मूर्तियां बनी हुई हैं। श्रीमंदिर के परिसर में साक्षी गोपाल, काशी विश्वनाथ, यमेश्वर, महालक्ष्मी, सरस्वती, नवग्रह, विमला, वट गणेश, श्रीराम व श्रीकृष्ण-राधा सहित अन्य देवताओं के लगभग छोटे-बड़े 100 मंदिर बनाए गए हैं। इस विशालकाय मंदिर को समुद्री हवा से बचाने के लिए चूने का लेप लगा दिया गया था। आजकल परत दर परत यह लेप निकाल दिया गया है। उसके स्थान पर रासायनिक प्रलेप लगाया गया है। मंदिर में प्रवेश के लिए चार अलग-अलग द्वार हैं। मुख्य द्वार को सिंह द्वार कहा जाता है। पूर्वी दिशा में अवस्थित सिंह द्वार होकर 22 सीढि़यां बनी हैं, जिसे पार कर भक्त मंदिर में दाखिल होते हैं। पश्चिमी द्वार को व्याघ्र द्वार कहा जाता है। उत्तरी द्वार को अश्व द्वार एवं दक्षिणी द्वार को हस्ती द्वार कहा जाता है।

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