Friday, June 22, 2012

श्रीगुंडिचा मंदिर तीनों रथ पहुंचे

तीनों रथ पहुंचे श्रीगुंडिचा मंदिर

भुवनेश्वर :vsk

दस साल बाद रुके तीनों रथ

पुरी में गुरुवार को भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा की निकली शोभा यात्रा के दौरान तीनों विग्रहों के रथों के रुकने की घटना दस साल बाद हुई है। दइतापति सेवक गुणधर दास महापात्र, विनायक दास महापात्र तथा सुदर्शन दास महापात्र प्रमुख ने बताया कि दस वर्ष पहले व्यवधान होने के कारण तीनों रथ रुके थे। इसके बाद इस वर्ष फिर ऐसा हुआ। इन सेवायतों ने बताया कि रथ यात्रा वाले दिन श्रीमंदिर में एक घंटे के लिए विद्युत कटौती हुई थी। श्रीमंदिर का जेनरेटर भी काम नहींकर रहा था। इसलिए करीब महाप्रभु के अनुष्ठान में एक घंटा देर हुई। फिर बारिश के कारण तीनों रथ रुके रहे। रथों के रुकने के पीछे प्रशासनिक समन्वय का अभाव भी प्रमुख कारण रहा।


पुरी में गुरुवार को महाप्रभु की शोभा यात्रा के दौरान रुक गए तीनों रथों को शुक्रवार को सुबह श्रद्धालुओं ने हर्षोल्लास के साथ खींचा। सुबह लगभग 8 बजे रथों के पुन: खींचने का कार्यक्रम प्रशासन की तरफ से निर्धारित किया गया था, मगर 10 बजे रथों को खींचने का कार्यक्रम शुरू हुआ। मौसीबाड़ी (श्रीगुंडिचा मंदिर) में छह दिन बिताकर महाप्रभु, भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा सात दिन बाद आषाढ़ शुक्ल पक्ष दशमी तिथि तदनुसार 29 जून को अपने धाम श्रीमंदिर वापस लौटेंगे। महाप्रभु की वापसी को बाहुड़ा यात्रा के नाम से पुकारा जाता है।

इससे पूर्व गुरुवार को परंपरा के अनुसार रथ के ऊपर गोपाल बल्लभ, संध्या धूप, मध्याह्नं धूप, संध्या आरती, संध्या धूप, बड़ सिंहार वेश और बड़ सिंहार भोग होने के बाद रात के समय महाप्रभु की शयन पूजा हुई। रथ से भक्तों को सूखा प्रसाद दिया गया।

आमतौर पर रथयात्रा के अगले दिन से श्री गुंडिचा मंदिर के सामने स्थित शरधाबाली में भजन-कीर्तन के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनमें ओड़िशा ही नहीं, देश के कोने- कोने से प्रतिष्ठित भजन गायक हिस्सा लेते हैं। इस दौरान शरधाबाली में सात दिन तक मेले जैसा माहौल बना रहता है। साल भर आम भक्तों के लिए महत्वहीन रहने वाले गुंडिचा मंदिर में विग्रहों के आते ही चहल-पहल बढ़ जाती है और श्रीमंदिर जैसा माहौल हो जाता है। दशमी की तिथि में बाहुड़ा यात्रा के समय भी अपार जन समूह पुरी में उमड़ता है। एकादशी की तिथि को श्रीमंदिर के सम्मुख रथों पर तीनों विग्रहों का स्वर्ण आभूषणों से श्रृंगार किया जाता है, जिसे देखने लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ती है। भगवान के इस वेश को राजाधिराज वेश भी कहा जाता है।

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पुन: रथ चलने से पहले होता अनुष्ठान

आमतौर पर आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को शाम तक तीनों रथ श्रीगुंडिचा मंदिर पहुंच जाते हैं। अगर किसी कारणवश कोई रथ बीच रास्ते में अटका जाता है, तो उसे अगले दिन सुबह खींचकर गुंडिचा मंदिर तक पहुंचाया जाता है। परंतु रथ को खींचने से पहले पहंडी विजे अनुष्ठान किया जाता है। इस वर्ष भी गुरुवार को तीनों रथों के रुकने के बाद शुक्रवार को उन्हें खींचे जाने से पूर्व तीनों विग्रहों को रथों में पहंडी विजे करवा कर गुंडिचा मंदिर पहुंचाया गया।

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आज व कल होने वाले अनुष्ठान

शनिवार को रथ के ऊपर पारंपरिक रीति से पूजा करने के बाद शाम के समय संध्या धूप-आरती की जाएगी। इसके बाद तीनों रथ में चारमाल (सीढ़ी) लगाई जाएगी और गोटी पहंडी में पहले प्रभु सुदर्शन, बाद में प्रभु बलभद्र, देवी सुभद्र, महाप्रभु श्री जगन्नाथ को एक-एक कर श्री गुंडिचा मंदिर के अन्दर आड़प मंडप में आसीन किया जाएगा। रविवार को आड़प मंडप में महाप्रभु को अन्न प्रसाद का भोग लगाया जाएगा और उसी दिन भक्तों के लिए चावल का महाप्रसाद उपलब्ध होगा।

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