Tuesday, March 18, 2014

123 संपत्तियां वक्फ को देने के फैसले पर रोक की मांग

123 संपत्तियां वक्फ को देने के फैसले पर रोक की मांग

Source: VSK-ENG      Date: 18 Mar 2014 15:38:59
नई दिल्ली, 18 मार्चविश्व हिन्दू परिषद ने चुनाव आयोग से दिल्ली की 123 संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड के हवाले करने के केन्द्र सरकार के फैसले को असंवैधानिक बताते हुए इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है. परिषद के उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मण्डल ने आज चुनाव आयोग से मिलकर कहा कि वह त्वरित कार्यवाही करते हुए इस असंवैधानिक निर्णय पर रोक लगाए,जिससे लोकतंत्र की रक्षा की जा सके. साथ ही परिषद ने भारत के मतदाताओं से भी अपील है कि चंद वोटों के लिये देश बेचने वालों को आगामी चुनावों में ऐसा सबक सिखायें कि फिर कोई हमारे लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ न कर सके.
केन्द्र सरकार की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति और चुनाव आचार संहिता के गंभीर उल्लंघन के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराने हेतु विहिप के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री ओम प्रकाश सिंहल के नेतृत्व में गए इस प्रतिनिधि मण्डल में संगठन के अंतरराष्ट्रीय महा मंत्री श्री चंपत रायकेन्द्रीय मंत्री डा सुरेन्द्र जैनवरिष्ठ अधिवक्ता श्री आलोक अग्रवाल,प्रान्त महा मंत्री श्री राम कृष्ण श्रीवास्तव व प्रान्त मीडिया प्रमुख श्री विनोद बंसल भी शामिल थे.
विहिप का कहना है कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने 5 मार्च, 2014 को एक अधिसूचना के द्वारा दिल्ली के महत्वपूर्ण स्थानों पर स्थित 123 सम्पत्तियों को ‘वक्फ बोर्ड’ के हवाले करने का जो निर्णय लिया है वह न केवल अवैधानिक है, अपितु आदर्श चुनाव आचार संहिता का भी उल्लंघन है. इन सम्पत्तियों में वायुसेना के वायरलैस स्टेशन व उप-राष्ट्रपति निवास में स्थित सम्पत्ति भी शामिल है. इनकी संवेदनशीलता पर भी विचार न करते हुए जिस अफरा-तफरी में यह अधिसूचना जारी की गईउससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस आदेश का एकमात्र उद्देश्य मुस्लिम वोट बैंक को आकर्षित करना है. इस वोट बैंक को लुभाने के लिये सरकार इतनी उतावली हो रही थी कि वह यह भी विचार नहीं कर पाई कि उसी दिन आदर्श आचार संहिता भी लागू हो गई थी और सरकार का यह निर्णय चुनाव आयोग के आदेश का सीधा-सीधा उल्लंघन है.
मुस्लिम वोट बैंक के लिये सरकार न्यायपालिका को तो धोखा देने की कोशिश करती ही रही थीअब उन्होंने चुनाव आयोग को भी ठेंगा दिखाने की हिमाकत की है. विश्व हिंदू परिषद् ने इस सम्बंध में राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी को भी एक पत्र लिखा था. किन्तुउसका भी इस सरकार पर कोई प्रभाव न देखकर विहिप ने चुनाव आयोग से अपील की है कि आदर्श आचार संहिता की अवहेलना के इस मामले में हस्तक्षेप कर इस अधिसूचना पर रोक लगाये,सत्तारूढ़ कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों की मान्यता रद्द करे.
ये सभी सम्पत्तियां 1911 से 1915 के बीच में अधिगृहीत की गई थीं. किन्तु, 1970 में ‘दिल्ली वक्फ बोर्ड’ ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए इन सभी सम्पत्तियों को वक्फ सम्पत्ति घोषित कर दिया.1974 में भारत सरकार ने इस मामले की जांच के लिये एक समिति का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष को ही सौंप दी. इस कमेटी ने भी लिखा कि दो सम्पत्तियों के स्थानों की संवेदनशीलता को देखते हुए उन्हें वहां घुसने भी नहीं दिया गया. इस सब के बावजूदकांग्रेस सरकार ने ये सभी सम्पत्तियां वक्फ के हवाले कर दीं.1984 में विहिप-दिल्ली की अपील पर सुनवाई करते हुए इस आदेश पर माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्थगन आदेश दिया था. इस मामले के आगे बढ़ने पर उच्च न्यायालय ने 12 जनवरी 1911 को आदेश दिया कि "भारत सरकार इस मामले पर पुनर्विचार कर 6 माह में निर्णय ले और तब तक स्थगन आदेश लागू रहेगा."
परिषद ने कहा है कि दो साल से भी अधिक समय तक सरकार इस मामले पर सोती रही ओर अब चुनावों की सुगबुहाट पर जाग गई और न्यायपालिका के आदेश की अवहेलना करते हुए और आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए देश की इन सम्पत्तियों को वक्फ के हवाले कर दिया. कांग्रेसनीत यूपीए सरकार यह तर्क दे रही है कि इन सम्पत्तियों का मुआवजा देकर अधिग्रहण करने वाली सरकार अंग्रेजो की थी तो मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिद कुव्वत ऐ इस्लामकृष्ण जन्मभूमि व काशीविश्वनाथ मंदिर भी अविलम्ब हिंदू समाज के हवाले करना चाहिये.एक धर्मनिरपेक्ष सरकार द्वारा हिंदू-मुस्लिम में भेदभाव करना न केवल असंवैधानिक है अपितु, अनैतिक भी है.

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