Saturday, March 08, 2014

कश्मीरी छात्रों की पाक के हक में नारेबाजी पर सेक्युलरवादियों की चुप्पी क्यों ?

March 8, 2014 

फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी, कलियुग वर्ष ५११५
मेरठ में कश्मीरी छात्रों ने पाकिस्तान टीम के एशिया कप में भारत के खिलाफ मैच जीतने के बाद जिस तरह से पाकिस्तान के हक और भारत के विरोध में नारेबाजी की, उससे अब पूरा देश वाकिफ हो चुका है। ऱविवार को यूनिवर्सिटी के छात्र कम्युनिटी हॉल में टीवी पर भारत पाकिस्तान का मैच देख रहे थे। टीम इंडिया के मैच हारने के बाद अचानक वहां माहौल बिगड़ गया। छात्रों के गुट एक दूसरे से भिड़ गए। छात्रों के बीच पत्थरबाजी भी हुई।

यूनिवर्सिटी ने ६७ कश्मीरी छात्रों को पाकिस्तानी क्रिकेट टीम का समर्थन करने के आरोप में निलंबित कर दिया है। कश्मीरी छात्रों का पाकिस्तान के पक्ष में नारेबाजी करना न केवल निंदनीय है, बल्कि ये सेक्यलुरवादियों के लिए बहुत सारे सवाल भी खड़े करता है। सबसे बड़ा सवाल तो ये कि अब अपने को उदारवादी और सेक्युलरवादी कश्मीरी छात्रों की हरकत पर खुलकर इनके खिलाफ आवाज बुलंद करेंगे? हालांकि कश्मीरी पंडितों की दयनीय हालत पर इनकी जुबान पर ताले लगे रहे। अपने ही देश में शरणार्थी बना दिए गए कश्मीरी पंडितों को लेकर ये कभी खुलकर सामने नहीं आए।
हो सकता है कि आपका देश की सरकार से विभिन्न मसलों मतभेद हो,उससे आपकी शिकायत हो। पर आप उस देश के हक में नारेबाजी करें जो भारत में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है, ये कैसे जायज ठहराया जा सकता है। मेरठ में कश्मीरी नौजवानों ने जो कुछ किया उससे वे अपने भविष्य के लिए दिक्कतें खड़ी कर रहे हैं। ये सभी छात्र इंजीनियरंग की पढ़ाई कर रहे हैं। कालेज से निकलने के बाद ये नौकरी के लिए निकलेंगे। इन्हें याद रखना चाहिए कि इनके आचरण के इनके लिए नौकरी के बाजार में अवसर सिकु़ड़ेंगे। उनकी हरकत का असर दूसरी तरफ से भी होगा।
कश्मीरी नौजवानों से उम्मीद की जाती है कि वे अपने करियर को चमकाने के साथ-साथ अपने प्रदेश में भाईचारे का माहौल बनाने के लिए आगे आएंगे। पर इन्होंने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया।कश्मीर घाटी में पंडितों के साथ-साथ सिखों को भी मारा जा रहा है। वहां से निकाला जा रहा है। मानवधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाओं का कहना है कि पिछले दो दशकों में कम से कम २५० सिख नागरिक मारे गए हैं। सिख सहयोग समीति के अध्यक्ष जगमोहन सिंह रैना के अनुसार, “इस तादाद में उन लोगों के नाम भी शामिल हैं जो सिखों पर हुए दो हमलों के दौरान मारे गए थे। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार,कश्मीर के पंडितों के हालात तो बेहद दर्दनाक हैं। हाल में ही दक्षिणी कश्मीर के एशमुक़ाम गांव में रहने वाला पंडित समुदाय का नौजवान सुनील रैना घर से कालेज के लिए निकला और तबसे लापता है।
पंडित समुदाय के लोग प्रशासन की अनदेखी से व्यथित हैं। वो कहते हैं कि पुलिस ने इनमें से किसी भी मामले में एफ़आईआर दर्ज नहीं की है।उन्नीस सौ नब्बे के दशक में घाटी में शुरू हुई हिंसा के बाद, चरमपंथियों से लगातार मिलने वाली धमकियों और समुदाय के कुछ लोगों की हत्याओं के बाद, अधिकांशतर पंडित घाटी छोड़कर जा चुके हैं। बावजूद इसके ६०० से अधिक परिवारों ने विस्थापन के विरूद्ध फैसला लिया और वो अब भी घाटी में रह रहे हैं। संजय टिक्कू इन्हीं में से एक हैं और इनका नेतृत्व करते हैं। संजय टिक्कू का कहना है कि पिछले बीस सालों में ६०० से अधिक पंडितों की हत्या हो चुकी है लेकिन पुलिस ने सिर्फ़ २१९ मामले दर्ज किए हैं। दरअसल कश्मीरी छात्रों ने जो कुछ मेरठ में किया और कश्मीर में हिन्दुओं और सिखों के साथ जो कुछ बीते २० सालों से हो रहा है, वो देश के लिए बदनुमा दाग है। पर अफसोस कि इन सब मामलों में केंद्र सरकार से लेकर सेक्युलरवादियों का रवैया शर्मनाक रहा है।
स्त्रोत : नितीसेन्ट्रल 

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