Saturday, March 01, 2014

खुशहाली के लिए समरस समाज की जरूरत : इन्द्रेश कुमार

 खुशहाली के लिए समरस समाज की जरूरत : इन्द्रेश कुमार

वाराणसी, 1 मार्च. योग साधना केन्द्रसम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में धर्म संस्कृति संगम काशी एवं बौद्ध दर्शन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘ धार्मिकसामाजिक समरसतानैतिक पवित्रता एवं वर्तमान जीवन” विषयक पर संगोष्ठी सम्पन्न हुई. कार्यक्रम के मुख्य-वक्ता एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि सारा विश्व एक परिवार है. यह सन्देश विश्व को भारत ने ही दिया. प्राचीन काल में नाम में उपाधिजाति लिखने या कहने की प्रथा नहीं थी. रामायण एवं महाभारत कालीन नामावली में जातिसूचक शब्दों का प्रयोग नहीं होता था. जैसे वाल्मीकिव्यासदशरथरावणराम-कृष्णकालीदासतुलसीकबीर आदि. लगभग4-5 सौ वर्षों से जातिवाद की परम्परा प्रारम्भ हुई. यही आज विभेद का कारण बनी हुई है. हमें इस विषय को समझना चाहिए. मानवता के अन्दर जो भी विविधताएं हैं उन्हें समझकर ठीक किया जा सकता है. खुशहाली के लिए भेदभाव से मुक्त समरस समाज की जरूरत है. आतंकवाद मानवजाति का सबसे बड़ा दुश्मन है. रिश्तों के अभाव में बलात्कार की घटनाएं बढ़ रही हैं. अतः रिश्तो को मजबूत करने की जरूरत है.
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति एवं मुख्य अतिथि प्रो. पी. नाग ने कहा कि भारत में धार्मिक व सांस्कृतिक केन्द्र सुव्यवस्थित तरीके से बने थे. उनके अनेक प्रकार की संस्कृतियां साथ-साथ विकसित होती थी. इसलिए यहां पर विभिन्नताओं में भी एकता का सूत्र दिखाई पड़ता है. परवर्ती काल में भारत वर्ष में अनेक धर्मों एवं सम्प्रदायों का उदय हुआ. कुछ विदेशी धर्मों का भी प्रवेश हुआ. समय-समय पर एक धारा दूसरे को प्रभावित भी करती रही. भारत को समझने के लिए धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन को ठीक से समझना होगा.
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति एवं अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. बिन्दा प्रसाद मिश्र ने कहा कि जो भी धर्म संस्कृति भारत में पुष्पित-पल्लवित हुई उनके मूल में मानवता रही. अतः मानवता की रक्षा के लिए सभी धर्मों के लोग आपस में मिलकर कार्य करना चाहिए.
विशिष्ट अतिथि इन्डो श्रीलंका इन्टरनेशनल बुद्धिष्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. के.सीरी सुमेधथेरो ने कहा कि धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए विगत कई वर्षों से प्रयत्न चल रहा है. कुंभ के अवसर पर चारों शंकराचार्यों सहित पूज्य दलाईलामा के साथ सहचिन्तन हुआ है. भारत में जाति और धर्म पर अधिक विचार होता है. बुद्ध ने पहले ही कहा था कि जाति मत पूछो कर्म पूछो. सर्वप्रथम लिच्छवी वंश राज्य ही प्रथम प्रजातांत्रिक राज्य था. भारत ने विश्व को बहुत कुछ दिया है.
समारोह का संचालन प्रो. रमेश कुमार द्विवेदी तथा अतिथियों को सम्मान धर्म संस्कृति संगम की मंत्री माधवी तिवारी ने किया. समारोह का शुभारम्भ वैदिक एवं पालि मंलाचरण से हुआ. इस अवसर पर 12 मेधावी छात्र-छात्राओं को धर्म संस्कृति संगम की ओर से छात्रवृत्ति प्रदान की गई तथा कुमारी मालविका तिवारी द्वारा लिखित काशी की नाट्य परम्परा’ पुस्तक का विमोचन हुआ. धन्यवाद ज्ञापन डॉ. माधवी तिवारी ने किया. इस अवसर पर विशिष्ट जनों में प्रो. अशोक कुमार जैनडॉ. उपेन्द्र त्रिपाठीडॉ. पतजंलि मिश्रप्रवीणरवि तिवारीप्रकाश रेग्मीपंकज शर्माजगपाल शर्मा,जगदीश शंकरप्रवेश कुमारलक्ष्मी गौतमनारायण निरौलाकाशीनाथ खनाल आदि उपस्थित थे. कार्यक्रम का समापन वन्देमातरम गीत से हुआ.

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