Sunday, February 12, 2017

2nd Day Interpretation Seminar on Integral Humanism”

भुवनेश्वर :
मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता बताते हुए पद्मश्री डॉ. महेश शर्मा ने कहा कि शिक्षा ही उन्नति का मार्ग हो सकती है। दुर्भाग्य से हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है। डॉ. शर्मा ने कहा कि शिक्षा ऐसी हो गई है कि व्यक्ति केवल अपने ही बारे में सोच रहा है उसे आसपास, परिवेश व समाज की कोई ¨चता ही नहीं है। इस शिक्षा व्यवस्था को बदलना ही होगा अन्यथा आने वाली पीढ़ी के लिए अपनी पहचान बनाए रखना मुश्किल होगा। एकात्म मानववाद पर आयोजित व्याख्यान में बोलते हुए डॉ. महेश शर्मा ने कहा कि हम विश्व की सर्व प्राचीन सभ्यता के वाहक हैं लेकिन हमें समय के साथ आवश्यक संस्कार भी अपनाने होंगे। पुरानी सोच व पुराने तरीके से काम चलने वाला नहीं है। परंपरा और संस्कृति को बचाने के लिए हमें नए तरीके से सोचना होगा। आधुनिकता के नाम पर हो रहे भौतिक उत्कर्ष की चकाचौंध में मानवता कही खो गई है। मानव सभ्यता गंभीर खतरों से गुजर रही है। तथाकथित विकसित देश ऑटोमेशन के पक्षधर हैं जबकि भारत की ताकत मानव श्रम है। गरीबी एक प्रमुख समस्या है और यह विडंबना ही कही जाएगी की मात्र एक प्रतिश लोगों के पास देश की 58 प्रतिशत संपत्ति है। जबकि बाकि की 42 प्रतिशत संपत्ति 99 प्रतिशत लोगों के पास है। किसी के पास अकूत धन है तो किसी के पास खाने के लिए दाने तक नहीं है। शर्मा ने कहा कि आज हम विज्ञान के उत्कर्ष के युग में जी रहे हैं मगर मानवता से दूर हो गए हैं। भारतीय ¨चतन हमेशा से एकात्म मानववाद का पोषक रहा है। हम अपने साथ अपने परिवेश, समाज, राष्ट्र, जीव- जगत को अपना मानकर चलने वाले लोग हैं। लेकिन गलत शिक्षा व्यवस्था के शिकार होने से अपनी पुरानी पहचान भूल चुके हैं।f



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