Wednesday, February 22, 2017

भारत की प्रकृति के अनुसार भारत का विकास होना चाहिये – अशोक जी मोडक

गुजरात (विसंकें). माधव स्मृति न्यास, गुजरात द्वारा 20 फरवरी को कर्णावती में आयोजित श्रीगुरूजी व्यख्यान माला में “एकात्म मानवदर्शन और सामाजिक न्याय”  विषय पर नेशनल रीसर्च प्रोफेसर, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अ. भा. वि. प. अशोकजी मोडक ने कहा कि दादा आप्टे ने एकबार पू. गुरूजी से साक्षात्कार में पूछा कि आपके जीवन का सूत्र क्या है? तब पू. गुरूजी ने गीता के श्लोक को उद्धृत करते हुए कहा कि जिन्हें लोक संग्रह करना है, उन्हें सामान्य मानव की तरह बिना किसी आसक्ति के सतत कार्य करना चाहिये. आज पूरे विश्व में हिन्दुत्व का वृक्ष पल्लवन हुआ है. अनगिनत लोग लाभ ले रहे है. परन्तु हमें याद रखना होगा कि जब यह वृक्ष शिशु अवस्था में था, तब इसको सिंचने का कार्य पू. गुरूजी और पंडित दीनदयाल जी जैसे महापुरुषों ने किया. अतः उनकी पुण्य स्मृति जगाना हमारा कर्तव्य है.
उन्होंने कहा कि हमें एकात्म मानव दर्शन व सामाजिक न्याय पर पिछले 26 वर्ष का सिंहावलोकन करने की आवश्यकता है. हम भूल नहीं सकते कि 1991 में रूस का विभाजन हुआ. जिसका अनुमान दीनदयाल जी को पहले से ही था. उन्होंने 1965 में एकात्म मानवदर्शन पर अपने एक भाषण में यह बात कही थी. सोवियत संघ और 2008 में लेहमेन के कारण अमेरिका का पूंजीवाद भी ध्वस्त होते दिख रहा है. भारत केन्द्रित दृष्टीकोण के कारण हम प्रगति कर सके. भारत में परिवार में एक कमाता है, लेकिन अधिकार सबका है यानि जो कमायेगा वह खिलायेगा. जबकि पश्चिमी सोच में जो कमायेगा वह खायेगा. पश्चिम में कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर समाज का महत्व है. भारत में संबंधों के आधार पर समाज चलता है. अशोक जी ने एकात्म मानव दर्शन की सात विशेषता बताईं –
  1. भारतीयता का भाव : भारतीय भाव का 19वीं, 20वीं सदी में हुये महान आत्माओं जैसे विवेकानंद जी, गाँधी जी, तिलक जी, डॉ. आम्बेडकर जी आदि के विचार का प्रमाणिक आविष्कार यानि एकात्म मानव दर्शन.
  2. भावात्मक विचार : भारत की प्रकृति के अनुसार भारत का विकास होना चाहिये
  3. आध्यात्मिकता : विवेकानंदजी एवं दीनदयाल जी के अध्यात्म का स्वीकार यानि सामाजिक समरसता.
  4. एकात्मता : व्यक्ति और समाज में कॉन्ट्रैक्ट नहीं, बल्कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति सर्वसाधारण व्यक्ति का पुजारी बने.
  5. समग्रता : केवल समाज का विचार नहीं, परन्तु संपूर्ण सृष्टि का विचार.
  6. मानसिकता में परिवर्तन : जबतक व्यक्ति की मानसिकता में परिवर्तन नहीं होता, समाज परिवर्तन नहीं हो सकता. केवल संस्थागत परिवर्तन प्रयाप्त नहीं है.
  7. सिद्धांतवादी समाज : मन शुद्ध हो तो मुक्ति महल हो या जंगल कहीं भी मिल सकती है.
कार्यकम के प्रारंभ में सुनील भाई बोरिसा ( सह संपर्क प्रमुख, रा.स्व.संघ, गुजरात) ने माधव स्मृति न्यास का परिचय कराया. माधव स्मृति न्यास के न्यासी वल्लभ भाई सांवलिया तथा महेश भाई परीख इस अवसर पर मंच पर उपस्थित रहे. भानु भाई चौहान ( सहकार्यवाह, रा.स्व.संघ, कर्णावती महानगर) ने कार्यक्रम के समापन में आभार विधि संपन्न की.

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