नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले जी ने कहा कि हिन्दुत्व अनुभव से, शास्त्र से, स्वभाव से भारत की राष्ट्रीयता है. मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि डॉ. बाली द्वारा शोध के आधार पर लिखी गई “भारत गाथा” पुस्तक स्वतंत्र लेख तो है ही, साथ ही यह एक स्वतंत्र ग्रन्थ है. दूसरी पुस्तक “भारत को समझने की शर्तों” को समझेंगे, तभी आप भारत को जान पाएंगे. ऐसा इसलिए कहना पड़ा कि अगर आज भारत को समझा गया होता तो भारत में भारत के टुकड़े-टुकड़े करने नारे नहीं लगे होते. बल्कि, “भारत माता की जय!” के नारे लगे होते. सह सरकार्यवाह जी डॉ. सूर्यकांत बाली जी द्वारा लिखित पुस्तकों के लोकार्पण कार्यक्रम में दिल्ली स्थित कांस्टिट्यूशन क्लब में संबोधित कर रहे थे.
सह सरकार्यवाह जी ने आर्यों को लेकर इतिहास की किताबों में होने वाले भ्रामक खिलवाड़ पर देश विभाजक तत्वों व वामपंथी इतिहासकारों को दोषी ठहराया. इन इतिहासकारों से प्रश्न किया कि क्या दुनिया में कोई ऐसा देश है जो अपने स्कूली पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों को ये पढ़ाता हो कि आर्य यहां से भारत गए थे? कोई नहीं बताता, तब प्रश्न है, आखिर आर्य कैसे भारत के बहार से आये? ऐसी बेतुकी मनगढ़ंत कहानियों को इतिहास के पाठ्यक्रमों में देश के एक खास विकृत मानसिकता से ग्रसित इतिहासकारों द्वारा शामिल किया गया है.
उन्होंने भारत के शिक्षा मंत्री से मांग करते हुए कहा कि मैं चाहता हूं कि इस देश के आईएफएस सेवा ज्वाइन करने वालों के पाठयक्रम में “भारत गाथा” को शामिल कर पढ़ाया जाना चाहिए. ताकि, वे दुनिया में जहां भी भारत का प्रतिनिधित्व करने जाएं, वहां पर ये जानकारियां उन्हें बताएं कि भारत क्या था, कैसा था और क्या है?
दत्तात्रेय होसबले जी ने जाति-संप्रदाय के मुद्दे पर बंटे हुए भारत की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि इस देश के शिक्षण संस्थानों में 17वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक सभी जाति-संप्रदाय के लोग साथ पढ़ते थे. कोई ऊंच-नीच, किसी छुआछूत का भेदभाव नहीं था. किसी प्रकार की घृणा भी नहीं थी. सभी बराबर के थे. लेकिन, गौर करने वाली बात यह है कि उसके बाद खासकर 18वीं शताब्दी से भारत को जाति-धर्म-संप्रदाय के आधार पर बांटने की साजिश शुरू हुई. ऐसी क्या परिस्थितियां रही होंगी कि उसमें अंग्रेज कामयाब हुए, जिसमें उनका साथ दिया, यहीं के देश तोड़कों ने. जिसका परिणाम ये रहा कि आज भारत में यह एक कुरीति के रूप में घर कर बैठी हुई है. जिससे प्रत्येक भारतीय आज कहीं न कहीं ग्रसित है.
उन्होंने आह्वान किया कि आज भारत से जात-पात, ऊँच-नीच, छुआछूत के भेद को मिटाने और भारत की संस्कृति, यहां की परंपरा को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है. तभी भारत फिर से अपना खोया हुआ अस्तित्व वापस पा सकेगा. इसके लिए हमें यूरो आधारित सोच के नजरियों से हटना होगा और एक सशक्त बौद्धिक एवं वैचारिक स्तर पर भारत की सोच को पुनः खड़ा करना पड़ेगा.
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर जी ने कहा कि हमें भारत की नजर से देखने वाला नजरिया चाहिए. इसलिए शिक्षा मंत्रालय जल्द ही आठवीं से 12वीं तक के पाठयक्रम में “ट्रेडिशन एंड प्रेक्टिस ऑफ इंडिया” को एक-एक या दो-दो पाठ करके शामिल कर देगा. ताकि, भारत की नई पीढ़ी अपने भारत और उसकी गौरव गाथा को जाने तथा उसके महत्व को समझे. जब दूसरों की नजरों से अपने देश के बारे में जानते हैं तो हम सही नहीं जान पाते हैं. इसी का प्रमाण है कि आज भी भारत के लोगों में भारत के बारे में असमंजस की स्थिति बनी हुई है. ऐसी परिस्थिति में जब भारतीय नजरिये से लिखी हुई पुस्तक “भारत गाथा” और “भारत को समझने की शर्तें” आती हैं तो यह भारत की नई पीढ़ी को अपने मूल से परिचित करवाती हैं. यह हमारे लिए गौरव की बात है.
उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व में जो सबसे बड़ा चर्चा का विषय है वो “समानता” का है और भारत में हमेशा से ही समानता रही है. लेकिन, दुर्भाग्यवश ब्रिटिशरों ने ऐसा जहर घोला कि भारत असमानता जैसी भ्रामक बिमारी से ग्रसित हो गया और वो आज भी मौजूद है. आधुनिक भारत की संहिता भारत का संविधान है और उसके रचयिता बाबा साहेब आम्बेडकर हैं, जो एक दलित थे. धर्म कहता भी है कि जो समाज अथवा राष्ट्र “स्त्री और दलितों” का सम्मान करता है वो एक मजबूत स्तम्भ वाला राष्ट्र होता है और सौभाग्यवश यह सबकुछ भारत में विद्दमान है.
डॉ. सूर्यकांत बाली जी ने कहा कि भारत एक “ज्ञान यात्रा” है. हमारी सभ्यता पांच हजार साल पुरानी नहीं है, बल्कि भारतीय सभ्यता 10 हजार साल पुरानी है. पांच हजार साल बताना अंग्रेज और यूरो इतिहासकारों की एक सोची-समझी राजनीति एवं प्रोपेगेंडा था. भारत कोई सामान्य देश नहीं है. वो तो हमने दूसरों के बताने पर अपने ऊपर से भरोसा हटा लिया है और अपने आपको सामान्य मान रखा है. इसलिए भारत को समझना आवश्यक है और भारत को समझने के लिए मुस्लिम, सिख, इसाई को समझने की आवश्यकता नहीं है. इसके लिए हिन्दू को समझना आवश्यक है और यही एकमात्र माध्यम भी है.
प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी जी ने कहा कि हम लोगों ने कभी क्रमबद्ध इतिहास लिखा ही नहीं, यही भारत की सबसे बड़ी कमजोरी रही है. इतिहास को लेकर समस्या क्या है? सिर्फ तारीख या किसी के जन्म या किसी के मृत्यु का दिनांक मात्र है? जब पुराण को इतिहासकार ये कहकर ख़ारिज कर देते हैं कि इसका क्या प्रमाण है? ठीक है, मैं भी उनसे पूछना चाहता हूं कि पोरस और सिकंदर के बारे में लिखे हुए ग्रीक इतिहासकारों के इतिहास को क्यों न ख़ारिज कर दिया जाए? कारण है, दुनिया के इतिहासकारों के पास ग्रीक इतिहासकारों द्वारा लिखे गए इतिहास का क्या प्रमाण है? ये हमें जान लेना चाहिए कि साहित्य भी इतिहास है क्योंकि उसमें समाज जीवन के बारे में लिखा जाता है.
कार्यक्रम में डॉ. अवनिजेश अवस्थी जी ने कहा कि इस देश की उस राजनीतिक सोच ने देश के नागरिकों को जाति, धर्म, संप्रदाय के आधार पर अलग कर रखा है जो सत्ता को अपना अधिकार मानते हैं. कार्यक्रम में उपस्थित जनों से आह्वान करते हुए कहा कि इस देश के स्वर्णिम भविष्य को जागृत कर रखना है तो सभी को इस देश के स्वाभिमान को बचाए रखना पड़ेगा.
No comments:
Post a Comment