Wednesday, February 01, 2017

सहकारिता

सहकारिता का अर्थ है मिल जुलकर काम करना. हमारी संयुक्त परिवार व्यवस्था सहकारिता का एक अच्छा उदाहरण है. जब हम सहकारिता की बात करते हैं, तब हमारा उद्देश्य आर्थिक क्षेत्र में सहयोग करना होता है. हमारी सभी आवश्यक वस्तुएं सहयोग द्वारा ही जुटाई जाती हैं. आज के युग में कोई भी काम सहयोग के बिना पूरा नहीं हो सकता है. हमारी प्रगति आपसी सहयोग पर निर्भर है. हम साथियों की मदद लेते भी हैं और उनकी मदद करते भी हैं. सहकारिता एक विचारधारा के साथ एक विशिष्ट कार्य पद्धति भी है. इससे समान आवश्यकता वाले व्यक्ति परस्पर सहयोग की भावना से समानता, सामूहिक चेतना, आम सहमति से गतिविधियों को संचालित करते हैं तथा बदले में प्रतिफल पाने के हकदार होते हैं.
सहकारी संस्थायें अपने सदस्यों द्वारा अनुमोदित नीतियों के द्वारा अपने समुदायों के निरंतर विकास के लिए कार्य करती हैं. ऐसा कोई भी कार्य हाथ में नहीं लेती, जिससे समाज या समुदाय को किसी भी प्रकार की हानि की संभावना हो. प्रतिवर्ष अपने लाभ में से समाज के सामान्य हित में प्रावधान करे और उसका समुचित उपयोग करे. वर्तमान समय में विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों के बड़ी संख्या में स्त्री-पुरूष तथा उनका परिवार विषम आर्थिक परिस्थितियों से जूझ रहे हैं. यह वर्तमान ही नहीं तो 1930 के पश्चात् से ही आर्थिक नीतियों की कमजोरियां विश्व पटल पर जगजाहिर हो रही  थी. वह 2008 में विशेष रूप से उभर कर आई. विगत दो दशकों में अत्यधिक असंतुलन इसका प्रत्यक्ष गवाह है. इसमें जो परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई, उसमें एक तरफा वृद्धि दिखाई देती है तथा दूसरी ओर गरीब होते दिखाई दे रहे हैं. साथ ही इसने गरीब लोगों में अन्याय व असमानता की दीवार को मजबूत कर दिया. वर्तमान में भूमण्डलीय बेरोजगारी 200 करोड़ और नवयुवकों की बेरोजगारी 40 करोड़ के लगभग हो गई है. सहकारिता आन्दोलन 200 साल से ज्यादा पुराना है और सहकारिता के सिद्धांत ने इसके बीच सान्तवना का काम किया है, जिसका महत्वपूर्ण फल किसान, श्रमिक एवं कमजोर वर्गों को प्राप्त हुआ है.
सहकारिता मनुष्य की आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने का एक महत्वपूर्ण नैतिक माध्यम है जो अपने ढाँचे में समेकित विकास के संसाधनों को मनुष्य केन्द्रित उद्देश्यों की ओर ले जाने के साधनों को समाहित करता है. सहकारिता प्रस्तावित करता है एक चलायमान, लचीला, आदर्श आर्थिक उपक्रम चाहे वह उत्पादन हो या विपणन, सेवा हो या स्वास्थ्य, शिक्षा हो या मकान साथ ही सबके लिए प्रशिक्षण भी नियोजित करता है. यह सामान्य सोच है कि बदलते समय में सहकारिता समसामयिक नहीं है, लेकिन आने वाले समय में यह गलत साबित होने वाला है, क्योंकि समस्त विश्व यह मानने लगा है कि सहकारिता ही, एकमात्र समानता आधारित सम्पोषित, समेकित, आर्थिक विकास की भूमिका अदा करेगी.
भूमण्डलीय सहकारिता क्षेत्र सतत् विकास की ओर बढ़ रही है. एक मुख्य निष्कर्ष यह है कि सहकारिता इस समय 2008 के वित्तीय परेशानियों को दूर करने में तुलनात्मक रूप से किसी भी आर्थिक तंत्र से ज्यादा सफल क्षेत्र साबित हुआ है. सांख्यिकी भी प्रदर्शित करता है कि सहकारिता एक विशिष्ट तंत्र है जो वित्तीय कमियां दूर करने में दूसरी किसी भी प्रक्रिया से ज्यादा प्रभावशील है और इसने कठिन भूमण्डलीय आर्थिक परिस्थितियों में इसे दूर करने में सफलतम भूमिका निभायी है. शोध बताते हैं कि किसी भी सार्वजनिक कम्पनियों की तुलना में सहकारिता एक समानता आधारित आर्थिक विकास को प्रदर्शित करती है.
विशेषज्ञ यह भी निष्कर्ष निकालते हैं कि सहकारी पूंजी वास्तव में सामाजिक पूंजी है, यह सृजनात्मक और महत्वपूर्ण भूमिका आर्थिक उपक्रमों पर डालती है. विश्व को अब अधिक सहकारी पूंजी चाहिए, इसलिए यह जरूरी है कि समाज को प्रेरणा मिले कि वे सहकारी पूंजी को बढ़ावें. अनुभव बताते हैं कि सहकारी मॉडल ही हर वित्तीय समस्याओं का समाधान है. त्वरित, समानता आधारित विकेन्द्रीकृत, समेकित, सम्पोषित, दोस्ताना परिस्थितियों की सहकारिता न केवल हमारे देश की तीव्र से तीव्रतर विकास के लिए आवश्यक है अपितु समस्त विश्व के लिए सहकारिता का विकास आवश्यक है. सहकारिता को भारतीय आर्थिक विकास का रोल मॉडल, एक आदर्श आर्थिक उपक्रम, सदस्यों के सदस्यता पूंजी को सुरक्षित करने हेतु नये वित्तीय प्रपत्र और जोखिम सुरक्षित पूंजी प्रपत्र तैयार की जाए. सहकारिता की एक विशिष्ट प्रमाणित लेखांकन पद्धति विकसित करनी होगी. सहकारिता के आदर्श तथा क्षमतावान सहकारिता के लिए सक्रिय वकालत हो. सहकारिता शिक्षा संस्थान एवं उद्यमिता प्रशिक्षण केन्द्र के क्षमता निर्माण हेतु शैक्षणिक संस्थानों को सहकारिता आधार पर विकसित करना चाहिए. सहकारिता की वृद्धि के लिए सहयोगी विधिक एवं वित्तीय वातावरण से सुरक्षित विकास करें.
इस समय विश्व अंधेरे में मार्ग ढूंढ रहा है. अमेरिकन एवं यूरोपियन वित्तीय संकट से हम काफी दूर हैं. यह अब स्पष्ट है कि पाश्चात्य आर्थिक आधारित विचार अगर दुबारा लागू किया गया तो पूरे विश्व को परेशानी में पड़ना ही है और परिस्थिति बद से बद्तर होगी. इसमें कोई विवाद ही नहीं है कि इस विश्व को ऐसे रखना है जिससे हर व्यक्ति अपनी बुनियादी आवश्यकताएं पूरी कर सके और इसमें लालच को कोई जगह नहीं हो. पूरे विश्व में लोग भारतीय संस्कृति और सभ्यता की ओर देख रहे हैं.
लेखक – डॉ. यतीश जैन

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