Friday, February 10, 2017

राष्ट्र विरोधी तत्व हमारी उदात्त हिन्दू सांस्कृतिक विचारधारा के व्यापक होते स्वरूप से परेशान – चंद्रशेखर जी

जोधपुर (विसंकें). राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय शैक्षिक संघ के तत्वावधान में राष्ट्रीय अस्मिता, चिंतन व चुनौतियाँ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसमें प्रथम सत्र में प्रोफेसर एनके चतुर्वेदी अध्यक्ष, प्रोफेसर चन्द्रशेखर मुख्य वक्ता तथा पूनम बावा मुख्य अतिथि थे.
मुख्य वक्ता प्रो. चन्द्रशेखर जी ने राष्ट्र के आध्यात्मिक स्वरूप की व्याख्या की, जिसमें राष्ट्र को एक विराट पुरूष के रूप में बताया व कहा कि राष्ट्र का स्वरूप हमेशा कल्याणकारी होता है. अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर एनके चतुर्वेदी जी ने कहा कि जब सभी यूरोपीय देशों में उनकी अपनी स्वयं की भाषा होती है, फिर अपने देश में दूसरे लोगो से संवाद के लिए अंग्रेजी माध्यम क्यों है. यूरोपीय देश अपनी शिल्पकला को बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं. जबकि हमारे पास वैदिक सभ्यता के समय की शिल्पकला होते हुए भी उसको सही ढंग से प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है. इसी सत्र में मुख्य अतिथि प्रोफेसर पूनम बावा जी ने संगोष्ठी को संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों द्वारा फैलाये दुर्विचारों की मुक्ति के लिये किया जा रहा हवन बताया. उन्होंने कहा कि आधुनिक राज्यवाद की अवधारणा में युद्धों की परिणीति से उत्पन्न राष्ट्रवाद मंगलकारी नहीं होता है. जबकि भारतीय संस्कृति में राष्ट्र का निर्माण सांस्कृतिक सद्भावना का स्वरूप है. प्रोफेसर जयश्री वाजपेयी जी ने भारत के प्राचीन गौरव का स्मरण कराते हुए भारतीय संस्कृति को सबसे प्राचीनतम व सर्वोच्च बताया. प्रोफेसर कैलाश डागा जी ने कहा कि किसी भी भाषा में धर्म का पर्यायवाची शब्द नहीं है. हिन्दू धर्म कहने का तात्पर्य हिन्दू जीवन पद्धति व आचार पद्धति है. प्रोफेसर चन्दनबाला जी ने कहा कि हमें राष्ट्र विखंडनवादी विचारों का प्रतिकार करना ही होगा. अतिसहिष्णुता भी राष्ट्र के लिये हितकारक नहीं है.
द्वितीय सत्र एबीवीपी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष हेमन्त घोष जी की अध्यक्षता में आयोजित किया गया. मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जोधपुर के प्रान्त प्रचारक चन्द्रशेखर जी ने कहा कि राष्ट्र विरोधी तत्व हमारी उदात्त हिन्दू सांस्कृतिक विचारधारा के व्यापक होते स्वरूप से परेशान हैं. अतः वे राष्ट्र विरोधी विचारों को समय-समय पर तूल देते रहते हैं. आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत का जन-सामान्य राष्ट्रीय विचारों के प्रचार-प्रसार और संपोषण व संरक्षण के लिये आगे आए. देश की सीमा माता के वस्त्र के समान होती है, उनकी रक्षा प्रत्येक मातृभक्त पुत्र का परमदायित्व है. हमारी सेना के जवान भारत माता की रक्षा के लिये कृतसंकल्प व सर्वात्मना समर्पित हमारे बन्धु हैं, जिन्होंने राष्ट्र सेवा के पथ का स्वयं वरण किया है. आज भी हमारे लाखों लाखों युवा सर्वथा समृद्ध होकर भी भारत माता की सेवा हेतु सेना में जाने को तत्पर हैं, उसके लिए दिन-रात कठिन तैयारी कर रहे है.


डॉ. हरिसिंह राजपुरोहित जी ने कहा कि आज राष्ट्रवाद के प्रहरियों को मुखर होना होगा तथा तर्क और तथ्यों के आधार पर आधारहीन बातों का दृढ़तापूर्वक खण्डन करना होगा. अभिषेक जैन जी ने कहा कि भारतभूमि का कोई भी लाल सेना में केवल राष्ट्र सेवा के लिये ही जाता है. अध्यक्षीय उद्बोधन में हेमन्त घोष जी ने गौरव गहलोत का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि ऐसे राष्ट्रभक्त युवाओं को स्वयं आगे आना होगा. प्रो. प्रभावती चौधरी जी ने संगोष्ठी में उपस्थित सभी प्रतिभागियों व वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया. संगोष्ठी का समन्वय संगठन के उपाध्यक्ष प्रो. विजय मेहता जी, सचिव प्रो. विकल गुप्ता जी ने किया.

No comments: