जयपुर (विसंकें). दुर्गापुरा स्थित राज्य कृषि प्रबन्धन संस्थान में आयोजित दानशील समारोह में आशीर्वचन देते हुए ब्रह्मपीठाधीश्वर पू. संत श्री नारायणदास जी महाराज, त्रिवेणीधाम ने कहा कि अशांत प्राणी को सुख की प्राप्ति नहीं होती. संसार से प्रेम करके ही हम अपनी जीवन यात्रा को सफल कर सकते है. राजस्थान संस्कृत अकादमी और संस्कृत पत्रिका भारती द्वारा आयोजित भामाशाह समारोह में कहा कि विद्या और अविद्या में मात्र इतना ही फर्क है, विद्या सबकी सेवा, सहानुभूति और रक्षा करना सिखाती है और अविद्या माता-पिता, गुरू व किसी अन्य की अवहेलना. विद्वान पण्डित वही है जो सब के प्रति दया भाव रखता है. हमारी संस्कृति में बड़ों के आशीर्वाद से ही प्रगति होती है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान संस्कृत अकादमी की अध्यक्षा डॉ. जया दवे जी ने कहा कि राजस्थान के महाकवि माघ की जयन्ती पर बसंत पंचमी से आयोजित दस दिवसीय माघ महोत्सव में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन राजस्थान में अनेक स्थानों पर किया गया है. समाज में अलग-अलग क्षेत्रों में सहयोग करने वाले विभिन्न भामाशाहों का सम्मान किया गया. उन्होंने कहा कि संस्कृत हमारी अस्मिता है, यह भारत की पहचान है. देश की पहचान भाषा से होती हैं. आज जर्मनी में संस्कृत उत्सव का आयोजन हो रहा है, किन्तु भारत में संस्कृत भाषा का उपयोग नित्य जीवन में कहीं नहीं होता है.
समारोह में उपस्थित साध्वी प्रीति प्रियम्वदा जी ने कहा कि दान की परम्परा अन्नत काल से चली आ रही है. दान की वृत्ति त्याग की वृत्ति है, जो दान करता है वह पाता भी है. दान ही लोभ से बचने का साधन है, लोभ के कारण ही अपराध होते है. उन्होंने कहा कि समाज में संग्रह की प्रवृ्त्ति छूटनी चाहिए और दान की बढ़नी चाहिए. महाकवि माघ ने अपना सम्पूर्ण जीवन दान किया और अन्त में दान न कर पाने के कारण ही अपने प्राण त्याग दिए.
समाज में विभिन्न क्षेत्रों में तन-मन-धन से सहयोग करने वाले भामाशाहों का सम्मान हुआ, उनमें घनश्याम ओझा, संजय दत्ता, मेघराज सिंह शेखावत, रामेश्वर खण्डेलवाल, चन्दालाल यादव, किशोर शर्मा, महेन्द्र कुमार चित्तौड़िया, हरजेश नाराणिया, मोहनलाल कुमावत, रामगोपाल कनोजिया, रामेश्वर लाल राठौड, सत्यनारायण विजयवर्गीय, अशोक कुमार छीपा, विमला कुमावत, अशोक सरणा, ईश्वर चन्द अग्रवाल, नारायण दास गुरनानी, अशोक पंवार, यतेन्द्र जैन, संजय सिहं, शांतिलाल गुर्जर, महेन्द्र सिंह राव, माधो सिंह कछवाह, धर्मेन्द्र पठानिया, डॉ. दिनेश बैरवा, डॉ. दाउदयाल शर्मा, देवेन्द्र विश्नोई, दामोदर मोदी, सूरजमल मुंडोतिया, हरजीराम जी शामिल थे.
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