सच्चे अर्थों में सेवा का भाव क्या है, सेवा का उद्देश्य क्या है, संघ और सेवा भारती किन क्षेत्रों में सेवा कार्य कर रहे हैं, सेवा को लेकर भारतीय चिंतन क्या कहता है, सेवा की आड़ में मतांतरण और स्वार्थ सिद्धि के प्रयास कितने उचित हैं, ईसाई मिशनरी की सेवा के पीछे का सच क्या है….सहित अन्य विषयों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सेवा प्रमुख सुहास हिरेमठ जी से विश्व संवाद केंद्र भारत के प्रतिनिधि ने विस्तृत बातचीत की. सेवा से जुड़े विभिन्न विषयों पर उनके साथ बातचीत के अंश……
विसंकें – सेवा क्षेत्र में राष्ट्रीय सेवा भारती कब से कार्यरत है ?
सुहास जी – सेवा भारती प्रांत में काम करने वाली संस्थाएं हैं, हर प्रांत में सेवा कार्य करने के लिये प्रांतीय स्तर पर स्वयंसेवकों ने संघ की योजना से संस्थाएं बनाई हैं. अधिकतर स्थानों पर सेवा भारती के नाम से संस्थाएं हैं, पर कुछ प्रांतों में अलग नाम से भी सेवा कार्य चल रहा है. महाराष्ट्र में जनकल्याण समिति, कर्नाटक में हिंदू सेवा प्रतिष्ठान, राष्ट्रोत्थान सेवा परिषद है, विदर्भ में लोक कल्याण समिति, डॉ हेडगेवार जन्मशताब्दी समिति सहित अनेक नामों से संस्थाएं सेवा कार्य कर रही हैं, अधिकांश प्रांतों में सेवा भारती नाम है. इन सारी संस्थाओं की अंब्रेला (छाता) आर्गेनाइजेशन है राष्ट्रीय सेवा भारती, संघ प्रेरणा से प्रांत स्तर पर कार्य करने वाली संस्थाएं, संघ के अलावा सेवा कार्य में निष्ठापूर्वक रत अन्य संस्थाओं को जोड़ने का कार्य राष्ट्रीय सेवा भारती करती है. वर्ष 2002 में राष्ट्रीय सेवा भारती का शुभारंभ हुआ था, जिसे कार्य करते हुए करीब अब 13 साल हो गए हैं.
विसंकें – सही अर्थों में सेवा का भाव क्या होता है, उद्देश्य क्या है ?
सुहास जी – सेवा कार्यों को लेकर हिंदू चिंतन ही संघ का चिंतन है, संघ का अपना अलग कोई चिंतन नहीं है. हिंदू चिंतन के अनुसार सेवा का मतलब है निस्वार्थ भाव से, पूजा भाव से, जैसे स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है कर्तव्य भाव से सेवा करना. दुर्भाग्यवश किसी न किसी वजह से जो लोग पीछे रह गए हैं, उनकी उन्नति के लिये, उन्हें आगे लाने के लिये एक साधन सेवा है. संघ के लिये सेवा ही साधन है, साध्य नहीं है.
अपना सेवा का यह उद्देश्य नहीं है कि समाज के दो वर्ग बनाएं, एक जीवन भर सेवा लेता रहे है और दूसरा जीवन भर सेवा करता रहे. सेवा कार्य का उद्देश्य सेवित जन के मन में स्वाभिमान जगाना है. आज जो सेवा ले रहा है, वह जल्दी से जल्दी सेवा करने वाला बने, आज जो लेने के लिये हाथ आगे बढ़ा रहा है, आगे चलकर देने के लिये हाथ बढ़ाए. सेवा कार्य के दौरान ऐसे कई अनुभव सामने आए हैं कि सेवा लेने वाले आगे चलकर अच्छे कार्यकर्ता बने हैं, पूर्ण कालिक कार्यकर्ता बने हैं.
अपना सेवा का यह उद्देश्य नहीं है कि समाज के दो वर्ग बनाएं, एक जीवन भर सेवा लेता रहे है और दूसरा जीवन भर सेवा करता रहे. सेवा कार्य का उद्देश्य सेवित जन के मन में स्वाभिमान जगाना है. आज जो सेवा ले रहा है, वह जल्दी से जल्दी सेवा करने वाला बने, आज जो लेने के लिये हाथ आगे बढ़ा रहा है, आगे चलकर देने के लिये हाथ बढ़ाए. सेवा कार्य के दौरान ऐसे कई अनुभव सामने आए हैं कि सेवा लेने वाले आगे चलकर अच्छे कार्यकर्ता बने हैं, पूर्ण कालिक कार्यकर्ता बने हैं.
पुणे की स्वरूप वर्धिनी संस्था में गरीब परिवार की (जिनके माता पिता दूसरों के घरों में काम कर परिवार का पालन पोषण कर रहे थे) तीन छात्राएं एमकॉम, बीएएमएस, एमएससी-बीएड की डिग्री हासिल करने के बाद सेवा में लगीं, तीनों लड़कियों ने डिग्री पूरी करने के पश्चात सेवा का निश्चय किया और अरुणाचल में तीन साल तक पूर्णकालिक के रूप में वनवासी कल्याण आश्रम के तहत कार्य किया. मन में भावना यह थी कि समाज से हमें जो मिला, उसके बदले समाज को कुछ लौटाया जाए. ऐसे ही उदाहरण सारे देश में सामने आते हैं.
केवल सेवित बन कर जीवन भर नहीं रहूंगा, स्वाभिमानी बनूंगा, स्वावलंबी बनूंगा, परिश्रमी बनूंगा, की भावना सेवा कार्य के माध्यम से सेवित जनों के मन में जागृत की जाती है.
गांव को नशा मुक्त बनाना, अस्पृश्यता को दूर करना, समाज से दूर गए लोगों को दोबारा समाज के नजदीक लाना भी सेवा कार्य का उद्देश्य है. सेवा का परिणाम यह रहा कि समाज से विषमताओं को दूर करने में सफलता मिल रही है.
विसंकें – राष्ट्रीय सेवा भारती क्या कार्य कर रही है ?
सुहास जी – संपूर्ण देश में काफी संख्या में लोग सेवा कार्य कर रहे हैं. समाचार पत्रों, संचार माध्यमों में सेवा कार्यों को लेकर अधिक जानकारी नहीं आती, न ही चर्चा होती है. लेकिन लाखों की संख्या में लोग, परिवार, ग्रुप, संस्थाएं सेवा कार्य कर रहे हैं. इन सबको जोड़ना, सामंजस्य बिठाना तथा कार्य को लेकर विचारों, अनुभवों का अदान प्रदान करें, सेवा कार्य में गुणवत्ता विकसित करना, क्षमता में विकास करना, प्रांत की सेवा संस्थाएं बहु आयामी बनें, स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार आयाम जोड़ना, प्रशिक्षण देना, यह कार्य राष्ट्रीय सेवा भारती का है.
विसंकें – क्या अन्य संगठन भी सेवा भारती के साथ सहभागी हैं, देश में कुल कितने सेवा कार्य चल रहे हैं, कितने संगठन साथ में कार्य कर रहे हैं ?
सुहास जी – हां, अन्य संस्थाएं भी सेवा भारती के साथ संबद्ध हैं. वर्तमान में राष्ट्रीय सेवा भारती के साथ 800 सेवा संस्थाएं संलग्न (संबद्ध) हैं, इनमें से करीब 40 प्रतिशत सेवा संस्थाएं ऐसी हैं, जो संघ की योजना या स्वयंसेवकों द्वारा नहीं, बल्कि अपनी प्ररेणा से कार्य कर रही हैं और सेवा भारती के साथ संलग्न हैं. ये संस्थाएं निस्वार्थ भाव से सेवा का उद्देश्य लेकर कार्य कर रही हैं.
राष्ट्रीय सेवा भारती के तहत आने वाली संस्थाएं करीब 65000 सेवा कार्य कर रही हैं, इसके अलावा संघ से संबंधित अन्य संगठनों विद्या भारती, विश्व हिंदू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, सक्षम, आरोग्य भारती, राष्ट्र सेविका समिति, भारत विकास परिषद सहित अन्य संगठनों के सेवा विभाग के माध्यम से भी सेवा कार्य चल रहे हैं, सभी को मिलाकर देश में कुल 1,52,388 सेवा कार्य संघ के स्वयंसेवक कर रहे हैं.
विसंकें – सेवा क्षेत्र में किन आयामों या क्षेत्रों पर विशेष बल दिया जाता है?
सुहास जी – सेवा के मुख्यत चार आयाम हैं, एक है शिक्षा, दूसरा है स्वास्थ्य, तीसरा है सामाजिक, और चौथा है स्वावलंबन. ये चार प्रमुख आयाम सेवा के हैं. इसके अलावा दो विषय है, जिनका कार्य भी चार आयामों के साथ चलता है. एक है ग्राम विकास, दूसरा है गौ सेवा. राष्ट्रीय सेवा भारती भी इन्हीं के बारे में जानकारी, प्रशिक्षण, मार्गदर्शन करती है.
विसंकें – वनवासी व पूर्वोत्तर में इसाई मिशनरी भी सेवा कार्य कर रहे हैं, सेवा भारती और मिशनरी के कार्य में क्या अंतर है?
सुहास जी – संघ में किसी मत, संप्रदाय, जाति का विषय ही नहीं है. सेवा सभी के लिये चलती है, जो भी सेवा लेने के लिये आता है, उसकी सेवा संघ के स्वयंसेवक करते हैं. संघ में उसकी जाति, धर्म, पूजा पद्धति नहीं देखी जाती, न ही पूछी जाती है. संघ का सेवा का दृष्टिकोण अपने देश के दृष्टिकोण से चलता है, जिसमें सेवा एक साधन है, साध्य नहीं. जीव सेवा, शिव सेवा का भाव मन में रहता है. ईसाई मिशनरियों का उन्होंने जैसा कहा है, उस उद्देश्य से सेवा कार्य करते हैं.
ईसाई मिशनरी का सेवा कार्य हमसे विपरीत है, मदर टेरेसा को लेकर पिछले कुछ दिन चर्चा रही. मदर टेरेसा का ही इंटरव्यू समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, संचार माध्यमों में प्रकाशित हुआ है. और उसमें उन्होंने स्वयं सीधा कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति को यीशू का पुत्र या कन्या बनाना, यही हमारा इस सबका उद्देश्य है. इसलिये उनकी सेवा का उद्देश्य कनवर्जन है, यह उन्होंने पहले भी कई बार स्पष्ट किया है, और बार-बार सामने आया भी है.
विसंकें – उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, गुजरात. पूर्वोत्तर सहित अन्य राज्यों के वनवासी बहुल क्षेत्र में ईसाई मिशनरियों द्वारा वनवासियों के कनवर्जन के समाचार मिलते हैं. वहां सेवा भारती भी सेवा प्रकल्प चलाती है, क्या सेवा भारती के कार्यों का विरोध हुआ है, या मिशनरी द्वारा बाधा उत्पन्न की गई क्या ?
सुहास जी – जहां संघ का सेवा कार्य प्रभावी होता है, उन क्षेत्रों में मतातंरण रुकता है. यह अभी तक का अनुभव रहा है. कन्याकुमारी एक जिला है, जिसमें छह हजार सेवा कार्य हैं, देश का एकमात्र जिला है, जिसमें इतने सेवा कार्य हैं. अपने देश के तटवर्तीय क्षेत्र में काफी मात्रा में कनवर्जन, ईसाइकरण पिछले कुछ वर्षों में हुआ है, कन्याकुमारी में भी ईसाईकरण हुआ है. लेकिन आज स्थिति यह है कि जिस भी गांव में अपना सेवा कार्य चलता है, कनवर्जन बंद हो गया है. वहां के लोग ईसाई मिशनरियों को गांव में प्रवेश नहीं करने देते. ऐसे ही पूर्वांचल में, देश के सभी भागों में जहां सेवा कार्य प्रभावी होता है, वहां राष्ट्रीयता का भाव जागृत होता ही है. इस कारण ऐसे लोगों द्वारा विरोध करना स्वाभाविक ही है, संघ या सेवा भारती द्वारा किये जा रहे सेवा कार्यों का कई स्थानों पर विरोध होता है. पूर्वोत्तर में, कन्याकुमारी जिले में, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों के विरोध का सामना करना पड़ा है. उड़ीसा में तो स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती जी की हत्या ही इसके कारण हो चुकी है. कनवर्जन बंद होने पर विरोध होता है, लेकिन उनके विरोध को हजम करते हुए अपने कार्यकर्ता काम कर रहे हैं, और जहां अपना कार्य प्रभावी हो रहा है, वहां समाज ही सेवा कार्य, अपने विचारों को समर्थन दे रहा है.
इसाई मिशनरी विरोध के लिये कार्यकर्ताओं के बारे में गांव में गलत धारणा बनाना, गलत जानकारी देना, गांव में जाने वाले कार्यकर्ताओं को रोकने का प्रयास करना, कार्यकर्ताओं के घरों में, जीवन में बाधा निर्माण करने का प्रयास करना, अपप्रचार करने का कार्य करते हैं.
सेवा भारती के कार्यकर्ता जहां भी सेवा के लिये जाते हैं, तो गांव में घूमते समय विभिन्न चिंहों से कनवर्जन का पता चलता है. घर के ऊपर क्रास लगाकर चर्च का रूप दिया गया हो, इससे ध्यान में आता है कि ईसाईकरण हो रहा है. जहां सेवा कार्य प्राथमिक अवस्था में चल रहा है, और यदि उस गांव में ईसाई मिशनरी आते हैं तो उसकी जानकारी भी कार्यकर्ता देते हैं.
अपनी पद्दति है, मिशनरी का विरोध करने के बजाय गांव के लोगों को जागरूक करना, उनके मन में अपने धर्म, संस्कृति, परंपरा के बारे में श्रद्धा का भाव जागृत करना, इस पर कार्यकर्ता जोर देते हैं. सेवा के माध्यम से उनकी उन्नति करते हैं, उनके दुखों को दूर करने का प्रयास करते हैं. जिससे अपने आप लोग दूसरी तरफ जाना बंद करते हैं.
विसंकें – सेवा की आड़ में कनवर्जन को क्या उचित कहा जा सकता है, आपका क्या कहना है ?
सुहास जी – सेवा की आड़ में कनवर्जन पूरी तरह से गलत है. विवेकानंद, राम कृष्ण परमहंस सहित अन्य महापुरुषों के वचनों के अनुसार पीड़ितों की सेवा करना भगवान द्वारा दिया गया अवसर है, और पीड़ित को भगवान के रूप में देखना चाहिये, नर सेवा नारायण सेवा, मानव सेवा, माधव सेवा. या जैसे स्वामी विवेकानंद ने कहा कि मैं उस प्रभु का सेवक हूं, जिसे अज्ञानवश मनुष्य कहते हैं, वह भगवान ही है. जीव सेवा, शिवा की भावना से निस्वार्थ भाव से सेवा करनी चाहिये, व्यक्तिगत भी नहीं, संस्था का भी नहीं, या संगठन का किसी भी प्रकार का मन में स्वार्थ नहीं होना चाहिये, सेवा के बदले कोई अपेक्षा भी नहीं रखनी चाहिये. यह अपने भारतीय चिंतन और संघ की सेवा के बारे में धारणा है.
विसंकें – इन क्षेत्रों में कनर्जन के लिये मिशनरी और अन्य संस्थाओं को यूरोप, अमेरिका, ईसाई संस्थाओं की ओर से खूब पैसा मिल रहा है, इस पर क्या तथ्य सामने आए हैं ?
सुहास जी – अभी हाल ही में सरकार ने कुछ संस्थाओं (एनजीओ) पर प्रतिबंध लगा दिया है, फेरा के तहत संस्थाओं के बैंक खाते बंद किये गए हैं, कुछ संस्थाओं के खाते सील किये गए हैं. पूर्व सरकार के समय योजना आयोग के अध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जानकारी दी थी कि विदेशों से पैसा लेकर कई संस्थाएं हमारे विकास के कार्यों में बाधा निर्माण करती हैं. लोगों के मन में विरोध का निर्माण करने का प्रयास करती हैं. इन तथ्यों के आधार पर वर्तमान सरकार ने पूछताछ शुरू की है, जानकारी लेना शुरू किया है और कार्रवाई की जा रही है.
मिशनरी को मिलने वाली मदद को लेकर अलग-अलग आंकड़े हैं. पुख्ता रूप से आर्थिक आंकड़ें स्पष्ट नहीं हैं. पिछले दिनों एक समाचार पत्र में मिशनरी के कार्य व विदेशी मदद को लेकर एक लेख आया था, जिसमें विभिन्न आंकड़े दिये गए थे. जिसमें सालाना बजट 40 हजार करोड़ से 80 हजार करोड़ के बजट का दावा किया था. लेकिन हमारा एक अनुमान कहा जाए तो 8 हजार करोड़ रुपये से लेकर 80 हजार करोड़ रुपये तक की मदद मिशनरी को विदेशों से प्राप्त हो रही है. लाखों की संख्या में मिशनरी वालंटियर कार्य कर रहे हैं.
विसंकें – राष्ट्रीय सेवा भारती द्वारा सेवा संगम का आयोजन किया जा रहा है, इसका उद्देश्य क्या है ?
सुहास जी – अपने – अपने स्थानों पर सेवा संस्थाएं कार्य करती हैं, इनमें कुछ छोटी हैं, कुछ बड़ी हैं, कुछ का कार्य कम है, कुछ का काफी अधिक है. इन सबको संगठित कर एक साथ लाना सेवा संगम का उद्देश्य है.
एक स्थान पर एकत्रित होने से सेवा का विशाल दृश्य देखने को मिलेगा. इतनी संख्या में लोग सेवा कर रहे हैं, इससे समस्त लोगों का आत्मविश्वास और उत्साह बढ़ेगा. कभी अपने स्थानों पर विपरीत परिस्थिति, अनुभव के कारण मन में निराशा आने लगती है, सेवा संगम में आने से निराशा का भाव दूर होता है और आत्मविश्वास का संचार होता है.
तीसरा हम जो कार्य कर रहे हैं, उसके अलावा भी देश में लोग अलग-अलग कार्य कर रहे हैं. उसकी जानकारी भी मिलती है. उनके अनुभव के आधार पर अपने स्थान पर भी हम नए प्रयोग, और कार्य कर सकते हैं, जिससे अपने क्षेत्र में सेवा को बहु आयामी रूप दे सकते हैं. ऐसे कार्यक्रम से सेवा संस्थाओं का गुणात्मक विकास होता है.
प्रत्येक पांच वर्ष में एक बार राष्ट्रीय स्तर पर सेवा संगम का आयोजन किया जाता है, पहला सेवा संगम 2010 में आयोजित हुआ था, दूसरा अब 4 से 6 अप्रैल तक दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है. प्रांत स्तर पर भी पांच वर्ष में एक बार, जिला स्तर पर सेवा मिलन वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है.
विसंकें – युवाओं को सेवा कार्य से जोड़ने के लिये क्या प्रयास किया जा रहा है ?
सुहास जी – यूथ फॉर सेवा नाम से कार्य दस वर्ष पूर्व शुरू हुआ था, पहले कर्नाटक से इसकी शुरूआत हुई थी. इसका उद्देश्य यही है कि कालेज छात्र तथा पढ़ाई पूरी कर नौकरी कर रहे युवाओं को सेवा के साथ जोड़ना, सेवा कार्य करने के लिये प्रेरित करना. वर्तमान में करीब दो हजार युवा स्वयंसेवी ऐसे हैं जो नियमित सेवा कार्य करते हैं.
कुछ रोज समय देते हैं, कुछ सप्ताह में एक दिन, कुछ माह में सात दिन, कुछ साल में एक माह का समय देते हैं. और कुछ स्वयंसेवी एक या दो साल की नौकरी से छुट्टी लेकर पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में किसी न किसी क्षेत्र में सेवा कार्य करते हैं. यूथ फॉर सेवा का कर्नाटक का प्रयोग धीरे धीरे अन्य प्रांतों में शुरू किया जा रहा है. दिल्ली, मध्य प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र में यूथ फॉर सेवा प्रयोग के आधार पर कार्य चल रहे हैं, जिसमें कालेज विद्यार्थी कार्य कर रहे हैं. इसका अच्छा अनुभव सामने आ रहा है, और देश का युवा वर्ग सेवा कार्य से जुड़ रहा है.
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