फाल्गुन शुक्लपक्ष एकादशी, कलियुग वर्ष ५११६
यह है मदरसोंका वास्तविक स्वरूप !
• जनता की यही अपेक्षा है कि ऐसे मदरसोंपर भाजपा शासन को कडी कार्रवाई करनी चाहिए !
• शासनद्वारा मदरसोंके अनुदान पर प्रतिबंध लगाया गया
पुणे (महाराष्ट्र) : मदरसों में आधुनिक एवं तांत्रिक शिक्षण प्राप्त हो, इसलिए वर्ष २००९ से केंद्रशासन ने अनुदान आरंभ किया। गत ३ वर्षों से आरंभ किया गया तथा केवल धार्मिक शिक्षण देनेवाले मदरसे अनुदान के पात्र सिद्ध होते हैं। इस अनुदान का उपयोग (विनियोग) किस प्रकार किया जाता है, इस बात की जांच राज्य में प्रौढ एवं अल्पसंख्यक शिक्षण विभाग द्वारा की गई। उस समय यह सामने आया कि कुछ मदरसोंमें नकली छात्र दिखाए गए हैं, तो कुछ मदरसे केवल अनुदान हेतु चल रहे हैं। साथ ही यह भी सामने आया कि कुछ मदरसे शासन के डॉ. जाकिर हुसेन मदरसा आधुनिकीकरण योजना विभाग तथा अल्पसंख्यक शिक्षण विभाग ऐसे दोनों कार्यालयोंद्वारा अनुदान प्राप्त कर रहे हैं। अतः उनके अनुदान पर प्रतिबंध लगाया गया। शासन के पास मदरसोंके संदर्भ में किसी भी प्रकार का पंजीकरण उपलब्ध न होने के कारण शासन द्वारा उसे बंधनकारक करने का प्रस्ताव है। (जनता की यह अपेक्षा है कि भाजपा शासन इस प्रकार सभी अपहारोंकी जांच कर अपराधियोंको दंडित करे तथा ‘अच्छे दिन’ दिखाए ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
१. वर्तमान में केवल धर्मादाय आयुक्तोंकी ओर न्यास पंजीकृत कर मदरसा आरंभ किया जाता है; किंतु इन मदरसोंका पंजीकरण शासन के पास नहीं किया गया था। अतः उसकी स्थापना के संदर्भ में शासन अनजान है। इस पर पर्याय के रूप में जिस प्रकार पाठशाला आरंभ करने के लिए पंजीकरण करना आवश्यक होता है, उसी प्रकार मदरसोंके लिए भी पंजीकरण बंधनकारक करने का प्रस्ताव है। (इतने दिनोंतक यह अनाचार चालू रखने वाले कांग्रेस के राजनेताओंको भी इस संदर्भ में अपराधी निश्चित कर उनपर कार्रवाई करनी चाहिए ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) इस संदर्भ का निर्णय शालेय शिक्षण विभाग करेगा या अल्पसंख्यक विभाग, इस पर मंत्रालय स्तर पर विचार आरंभ है।
२. वर्ष २००९ से केंद्रशाासन के अनुदान हेतु राज्य से ३१२ मदरसोंके प्रस्ताव आए। उनमेंसे १८८ मदरसोंको ४ करोड ४७ लक्ष रुपए का अनुदान प्राप्त हुआ।
३. ‘जमियत उलेमा-ए-हिन्द’ के अध्यक्ष मौलाना हाफीज नदीम सिद्दीकी ने बताया कि ‘नकली मदरसोंके अनुदान पर पाबंदी लगाना उचित ही है। वास्तव में मदरसे धार्मिक शिक्षण हेतु हैं, उन्होंने कभी भी शासन से अनुदान मांगा नहीं है। अनुदान के नाम पर शासन उस में हस्तक्षेप करने का प्रयास कर रहा है। (इसे कहते हैं, ‘उलटा चोर कोतवाल को डांटे …’ यदि ऐसा है, तो इतने वर्ष तक मौलाना ने कोई भी वक्तव्य क्यों नहीं दिया ? बाजू अपने ऊपर उलट रही है, यह देखकर क्या उन्हें शासन का हस्तक्षेप प्रतीत होता है ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) हम मदरसोंके छात्रोंको नियमित रूप से पाठशाला में भी भेजते हैं। अतः यदि शासन को वास्तव में उनकी चिंता है, तो उन्हें मदरसोंकी अपेक्षा अल्पसंख्यकोंकी पाठशालाओंको अनुदान देना चाहिए।
(संदर्भ : लोकमत)
(संदर्भ : लोकमत)
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