नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक जगदीश त्रिपाठी जी का 12 मार्च, 2015 को निधन हो गया. उनका जन्म तीन जनवरी, 1936 को अल्मोड़ा (उत्तराखंड) में शिवदत्त त्रिपाठी के घर में हुआ था. उनकी स्नातक तक की शिक्षा पैतृक गांव में ही हुई. वहां पर ही 1946 में वे स्वयंसेवक बने. उन दिनों डा. मुरली मनोहर जोशी संघ में सक्रिय थे. 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद सभी जगह संघ के विरोध का वातावरण था. उनका परिवार भी इसका अपवाद नहीं था. इसके बावजूद वे शाखा जाते रहे. उन्होंने 1954 में प्रथम वर्ष तथा 1955 में द्वितीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण प्राप्त किया तथा 1956 में प्रचारक बन गये.
प्रचारक जीवन में वे उत्तर प्रदेश में पूरनपुर, शाहजीपुर, एटा, शामली, गाजियाबाद, श्रीनगर गढ़वाल तथा रामपुर में रहे. इसके बाद 1967 में उन्हें असम के तेजपुर में भेजा गया. अनेक वर्ष वे वर्धमान में विभाग प्रचारक तथा कोलकाता में कार्यालय प्रमुख भी रहे. 1984 से 90 तक वे भाऊराव देवरस के सहायक रहे. इसके बाद उत्तरांचल उत्थान परिषद (अल्मोड़ा), वनवासी कल्याण आश्रम (सोलन), लोक भारती (लखनऊ) तथा विश्व संवाद केन्द्र (अल्मोड़ा) में भी रहे.
वर्ष 2000 में उनकी योजना विश्व हिन्दू परिषद में हुई. उन पर पहले हरिद्वार तथा फिर वृन्दावन में धर्माचार्य सम्पर्क का काम रहा. 2004 में वे दिल्ली केन्द्रीय कार्यालय पर आ गये. 2006 से उन पर ‘हिन्दू चेतना’ पाक्षिक पत्रिका के सम्पादन की जिम्मेदारी थी. वे प्रतिदिन प्रातः बस से पत्रिका के झंडेवाला स्थित कार्यालय पर जाते थे तथा रात को लौटते थे. 11 मार्च को जब वे लौटे तो तबीयत कुछ ढीली थे. अतः वे 12 तारीख को नहीं गये. उस दिन अपने कमरे में वे अकेले ही थे. रात में सात बजे के लगभग उन्हें मस्तिष्काघात के कारण खून की उल्टी हुई और इससे ही उनका प्राणांत हो गया. पता लगते ही उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, पर वहां डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
जगदीश जी बहुत सरल एवं सादगी पसंद व्यक्ति थे. बच्चों में बहुत जल्दी घुलमिल जाते थे. कोई भी भाषा बहुत जल्दी सीख लेते थे. बंगला, मराठी, हिन्दी, कुमाऊंनी, पंजाबी आदि वे खूब बोल लेते थे. प्रतिदिन समय से कार्यालय जाना उनके स्वभाव में था. आपातकाल में वे दार्जिलिंग में गिरफ्तार हुए थे. कुछ समय बाद उनकी जमानत हो गयी, पर महीने में एक बार थाने में हाजिरी देनी पड़ती थी. इसे निभाते हुए भी वे जन जागरण एवं भूमिगत कार्य करते रहे.
13 मार्च को निगमबोध घाट पर उनका अंतिम संस्कार हुआ. उस समय बड़ी संख्या में अल्मोड़ा, नैनीताल, हल्द्वानी, दिल्ली, नौएडा आदि से आये उनके परिजन तथा संघ व विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता उपस्थित थे.
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