नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारी तथा पत्र यात्री के नाम से ख्याति प्राप्त शरद लघाटे जी का 30 मई रात्रि को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में निधन हो गया. 75 वर्षीय लघाटे जी पिछले कुछ समय से मधुमेह (डायबिटीज) से पीड़ित थे. दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित शमशान घाट में रविवार को उनके अंतिम संस्कार के समय विहिप के अंतर्राष्ट्रीय संगठन महामंत्री दिनेश चन्द्र जी के अलावा संघ, विश्व हिन्दू परिषद तथा अनेक धार्मिक-सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग उपस्थित थे. उन्होंने दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना की.
विहिप प्रवक्ता विनोद बंसल ने बताया कि शरद लघाटे जी का जन्म 12 अक्तूबर, 1940 को इगतपुरी (महाराष्ट्र) में श्री दत्तात्रेय तथा श्रीमती सुशीला देवी के घर में हुआ था. उनके पिताजी उन दिनों इगतपुरी से भुसावल के बीच चलने वाली रेलगाड़ी के चालक थे. मूलतः कोंकण निवासी यह परिवार बाद में ग्वालियर आ गया.
वे 1958 में प्रचारक बने. सर्वप्रथम उन्हें मुरैना नगर और दो वर्ष बाद वहीं जिला प्रचारक की जिम्मेदारी दी गयी. इसके बाद उन्हें मंदसौर जिले का काम दिया गया. पूरे जिले में वे साइकिल से घूमते थे. मंदसौर में वे कई वर्ष रहे. 1975 में आपातकाल लगने पर वे वहीं थे. फिर उन्हें भोपाल बुला लिया गया. आपातकाल के बाद वे भोपाल में ही रहकर प्रांत कार्यवाह इसराणी जी के सहायक के नाते उनका पत्र-व्यवहार देखने लगे.
आपातकाल के बाद उन्हें विश्व हिन्दू परिषद के काम से मुंबई भेजा गया. जहां उन्होंने ‘संस्कृति रक्षा निधि’ का कार्य देखा. इसके बाद आचार्य गिरिराज किशोर जी उन्हें दिल्ली में केन्द्रीय कार्यालय पर ले आये और उन्होंने केन्द्रीय कार्यालय का हिसाब-किताब संभाल लिया. अध्ययनशील होने के कारण शरद जी को ‘सम्पादक के नाम पत्र’ लिखने का शौक था. वे हिन्दी, अंग्रेजी तथा मराठी के पत्रों में चिट्ठियां लिखते थे. धीरे-धीरे उन्होंने इसे एक विधा का रूप दे दिया और ‘मेरी पत्र-यात्रा’ नामक पुस्तक बना दी, जो सभी नये पत्र लेखकों के लिए मार्गदर्शक है.
पिछले कुछ समय से वे मधुमेह के शिकार थे. इसका दुष्प्रभाव उनकी आंखों तथा टांगों पर भी था. 30 मई, 2015 को रात्रि में दिल्ली के सफदरजंग चिकित्सालय में उनका निधन हुआ.
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