नई दिल्ली (इंविसंकें). केदारनाथ आपदा की दूसरी बरसी पर अखिल भारतीय उत्तराखंड त्रासदी पीड़ित मंच द्वारा दीनदयाल शोध संस्थान नई दिल्ली में केदारनाथ आपदा में प्राणाहुति देने वाले तीर्थयात्रियों को श्रद्धांजलि दी गई. 17 जून को दिल्ली में विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया.
केदारनाथ में दिवंगत हुए तीर्थयात्रियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दतात्रेय होसबले जी ने कहा कि केदारनाथ की विभीषिका में प्राणाहुति देने वाले लोगों की निश्चित संख्या आज तक मालूम नहीं है. इस संख्या को जानने का प्रामाणिक प्रयास भी नहीं हुआ. संघ ने अपनी ओर से देश भर के प्रभावितों और गुमशुदा व्यक्तियों के आंकड़े एकत्रित करने के प्रयत्न किये हैं. उन्होंने कहा कि प्रत्येक त्रासदी से मनुष्य सीखता है और सीखना भी चाहिए. उत्तराखंड की उस सूनामी को देखकर बहुत से लोगों में वैराग्य का भाव भी आया और बहुत से लोगों ने यह भी कहा कि अब वहां नहीं जाएंगे, लेकिन लोगों की श्रद्धा में कमी नहीं आयी, श्रद्धालु उत्साह से केदारनाथ जा रहे हैं. पर्यावरण का विशेष ध्यान रखते हुए इन श्रद्धालुओं के लिए वहां उचित व्यवस्थाएं होनी चाहिये. सह सरकार्यवाह जी ने कहा कि दैवीय आपदा हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक कर्मों का प्रतिफल होती है. आज लोगों के पास संसाधन भी हैं और प्रचार-प्रसार के साधन भी, जिनका सदुपयोग होना चाहिये.
केदारनाथ आपदा के भुक्तभोगी बक्सर से सांसद एवं बिहार सरकार के पूर्व मंत्री अश्वनी कुमार चौबे ने आंखों देखी विनाशलीला को याद करते कहा कि उन्होंने तब भी कहा था कि मृतकों की संख्या 40 हजार से ऊपर थी. कार्यक्रम का उद्देश्य देश के प्रबुद्ध लोगों और सरकार में मीडिया के माध्यम से आस्था केन्द्रों और धरोहरों के उचित संवर्धन एवं संरक्षण का भाव जगाना है. केदारघाटी और हिमालयी क्षेत्रों में प्रकृति के सम्मान और पर्यावरणीय संरक्षण की आवश्यकता है. आपदा के समय तत्कालीन केंद्र सरकार और राज्य सरकार की भूमिका भी भेदभावपूर्ण थी. हिन्दू श्रद्धालुओं की तुलना में यदि इतनी संख्या में किसी और मजहब के लोग अकाल मृत्यु के शिकार होते तो तस्वीर कुछ और होती. इतनी बड़ी विभीषिका को राष्ट्रीय आपदा घोषित न करना, इस बात का प्रमाण है.
16-17 जून , 2013 को उत्तराखण्ड की भीषण त्रासदी में लगभग 50 हजार से अधिक लोग काल कल्वित हो गए थे. अश्वनी कुमार चौबे अपने 15 परिजनों के साथ केदारनाथ गए थे, जिसमें 7 लोग विभीषिका के शिकार हो गए थे. सरकारों के महीनों तक सहयोगात्मक कल्याणकारी व्यवस्था देने में पूर्णतः असफल होने के कारण उन्होंने ‘‘अखिल भारतीय उत्तराखंड त्रासदी पीड़ित मंच’’ का गठन कर सरकारों पर दबाव बनाने के लिए दिल्ली में जंतर-मंतर पर जन आंदोलन भी किया था. परिणामस्वरूप कई पीडि़त परिवारों को मुआवजा एवं मुत्यु प्रमाण-पत्र आदि निर्गत हो सके. उन्होंने कहा कि बहुत दुःख की बात है कि उत्तराखण्ड सरकार की निष्क्रियता के कारण अभी तक भी बहुत सारे परिवार इससे वंचित हैं.
शीर्ष वैज्ञानिक डॉ. ओमप्रकाश मिश्र ने कहा कि मनुष्य के शरीर की तरह पृथ्वी भी प्राणवान है और जिस प्रकार व्यक्ति को हृदयाघात होता है, उसी प्रकार भूकंप और भूस्खलन के रूप में पृथ्वी भी अपने दर्द की अभिव्यक्ति करती है. केदारनाथ की नींव और निर्मिती सुदृढ़ थी, इस कारण हमारा आस्था का मंदिर टिका रह गया.
जगद्गुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि केदारनाथ क्षेत्र में जिस प्रकार का विप्लावपूर्ण वातावरण प्रस्तुत हुआ, वह प्रकृति की ओर से एक चेतावनी भरी मीठी चपत है. गंगा और हिमालय के प्रति घोर अन्याय हुआ है और विकास के नाम पर प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का यह दुष्परिणाम है. भौतिक लालसाओं के लिए पृथ्वी , जल अथवा वायु को विद्युत् ऊर्जा अथवा किसी अन्य रूप में पाने के लिए प्रकृति का अपमान जब और जहाँ होगा परिणाम यही होगा. आस्था के प्रशस्त केन्द्रों और संस्थानों को यदि विकृत किया जायेगा तो विकास नहीं विनाश ही होगा. भू, भूधर और नदी को बचाकर ही मनुष्य सुखी रहेगा.
प्रख्यात गायक पंडित विपिन मिश्रा ने अपने शंखनाद एवं गायन से हुतात्माओं का वंदन किया. कार्यक्रम के संयोजक एवं भारत रक्षा मंच के राष्ट्रीय मंत्री अर्जित शाश्वत ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया. भारतीय इतिहास संकलन योजना दिल्ली के महामंत्री अरूण पाण्डेय ने विषय प्रवेश कराया. मंच संचालन पांचजन्य के सहसंपादक सूर्यप्रकाश सेमवाल ने किया. कार्यक्रम में गणमान्यजन उपस्थित थे.
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