ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया को देवर्षि नारद जयंती मनाई जाती है. देवर्षि नारद को दुनिया के प्रथम पत्रकार के रूप में देखा जाता है. समूचे हिंदुस्थान में नारद जयंती का दिवस पत्रकार दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन फिल्मों में दिखाये जाने वाले दृश्यों के कारण और कुछ कथाओं के कारण देवर्षि नारदजी के बारे में गलत अवधारणाएं समाज में प्रचलित हुई हैं. नारद जी की चुगलखोर के रूप में नकारात्मक छवि बनाई गयी है. वास्तव में देवर्षि नारद एक अत्यंत विद्वान महापुरूष थे. देवर्षि नारद दुनिया के प्रथम पत्रकार या पहले संवाददाता माने जाते हैं. क्योंकि उन्होंने इस लोक से उस लोक में परिक्रमा करते हुए संवादों का आदान-प्रदान किया. पत्रकारिता के पुरोधा पुरूष ने जो भी संवाद किया, वह सकारात्मक था. उनका अंतिम लक्ष्य सत्य की जीत एवं विश्व का कल्याण था. देश के प्रथम समाचार-पत्र उदन्त मार्तण्ड के प्रथम पृष्ठ पर भी नारद जी का उल्लेख हुआ है. सत्य नारायण जी की कथा के प्रथम श्लोक से पता चलता है कि देवर्षि नारद का सब कुछ समाज के लिए अर्पित था. देवर्षि नारद जी द्वारा रचित अनेक ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है – जिसमें प्रमुख हैं नारद पंचरात्र, नारद महापुराण, वृहन्नारदीय उपपुराण, नारद स्मृति, नारद भक्ति सूत्र, नारद परिव्राजकोपनिषद् आदि. रामावतार से लेकर कृष्णावतार तक नारद की पत्रकारिता लोकमंगल की ही पत्रकारिता और लोकहित का ही संवाद-संकलन है.
देवर्षि नारदजी का स्मरण करते समय हम आज की पत्रकारिता का क्या कुछ विचार कर सकते हैं ? यह युग ही संवाद का युग माना जाता है. समूचे जीवन में मीडिया का महत्त्व है. मीडिया इस शब्द में केवल समाचार पत्र ही नहीं, उसके साथ हमारे प्राचीन काल से चला आ रहा मौखिक संवाद, अब जिसका ज्यादा प्रभाव है. वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया टीवी, इंटरनेट आदि. इसके अलावा अभी जो मीडिया तेजी से बढ़ रहा है, वह है सोशल मीडिया. फेसबुक, टि्वटर, एसएमएस, ई-मेल के माध्यम से अपनी बात समाज के सामने रखने का एक सरल और प्रभावी साधन लोगों को मिल गया है.
हमारे जीवन पर इतना असर करने वाले मीडिया के बारे में हम कितना जानते हैं? हमारे समाज की भावना, समस्या, जीवन शैली के बारे में क्या संपूर्ण चित्र हमारे मीडिया में प्रतिबिंबित होता है? मीडिया के बारे में हमारे मन में कुछ धारणाएं हैं. हमें लगता है कि मीडिया केवल शहरों के बारे में घटनाओं की चर्चा करता है, मीडिया बिकाऊ है. मीडिया की विश्वसनीयता पर कई सवालिया निशान हम लगाते रहते हैं. हमारे देश की गतिविधियों पर, समाज की स्थिति पर असर करने की क्षमता रखने वाले इस मीडिया को सही ढंग से क्रियान्वित करने में क्या हम कुछ नहीं कर सकते? हमें इस विषय पर गंभीरता से सोच कर कुछ करने के लिए कृतसंकल्प होना होगा.
इस विषय में पहले हमें मीडिया को समझना होगा. मीडिया में हमारी सहभागिता अगर बढ़ेगी तो हमें मीडिया के बारे में जानने में आसानी हो सकती है. सूचनाओं का आदान-प्रदान यह मीडिया की अहम्भूमिका है. सूचना देने वाले समाचार यह समूचे मीडिया की आत्मा कहा जाता है. जो भी बातें, घटनाएं दूसरों को बतलाने लायक होती है उसे समाचार कहा जाता है. जो नई बातें या घटनाएं समाज के सन्मुख ना जाएं, इसलिए प्रयास करके छिपाई जाती हैं वे भी समाचार ही होते हैं, जिन्हें खोजी पत्रकारिता के माध्यम से समाज के हित के लिए प्रकाशित किया जाता है.
मीडिया में सूचना प्रकाशित करने वाले संपादक, पत्रकार अपनी संस्था के उद्देश्य के अनुसार उन्हें प्रकाशित करते हैं. इस उद्देश्य में राजनीतिक, व्यावसायिक, निजी स्वार्थ जैसे अनेक उद्देश्य होने के कारण मीडिया के जरिए पूर्ण सत्य समाज तक नहीं पहुंच पाता है. जो बातें, सूचना समाज तक मीडिया के माध्यम से पहुंचती है, उसमें से सही अर्थ को जानना होगा. जो सूचनाएं हमें मीडिया से मिलती हैं, उनमें छिपे तथ्य को पहचानना, ढूंढना पड़ता है. समाचार की हमें समीक्षा करनी होगी. हमारा पूर्वानुभव, मीडिया का चरित्र, उद्देश्य को जान कर समाचार की सत्यता को समझना पडेगा.
मीडिया की केवल आलोचना करने के बजाए क्या हम अपनी सहभागिता बढ़ा सकते हैं ? समाचार पत्रों को पढ़ना, उनमें जो बातें प्रकाशित हुई है उन्हें पढ़ कर अपने मन में जो प्रतिक्रिया आती है उसे संपादक को पत्र लिखकर हम भेज सकते हैं. प्रत्येक समाचार पत्र में पाठकों के पत्रों का एक स्तंभ होता है. इस स्तंभ में प्रकाशित पत्रों का असर पाठकों के साथ-साथ संपादकों पर भी होता है. पाठकों का मत निश्चित करने में, सम्पादकों का पूर्वाग्रह दूर करने में, सही जानकारी पाठक एवं सम्पादक तक पहुंचाने में पाठकों के पत्र कारगर साबित हो सकते हैं. समाज में स्थित कई समस्याओं का समाधान करने के लिए उचित प्रशासकीय व्यवस्था को समस्याओं से अवगत कराने में भी इन पत्रों की उपयोगिता हो सकती है. क्या हम अपनी सरल भाषा में हमारी बातें, हमारी प्रतिक्रिया, हमारे आस-पास स्थित समस्याओं के बारे में एक पत्र नहीं लिख सकते? उसकी शिक्षा, प्रशिक्षण, पद, भूमिका कुछ भी होने पर भी किसी भी पाठक को समाचार पत्रों में संपादक के नाम पत्र लिखने का अधिकार है. हर सप्ताह आठ दस पंक्तियों का एक पत्र लिखकर समाचार पत्र को भेजने का काम करना हरेक व्यक्ति के लिए मुश्किल नहीं है. राजनीतिक, सामाजिक गतिविधियों की चर्चा से लेकर हमें अच्छे लगने वाले समाचार या घटना की प्रशंसा और गलत चीजों की आलोचना तक कई विषय हम पत्र लिखने के लिए चुन सकते हैं. ऐसे पत्रों के लिए हमें साहित्यिक भाषा का अभ्यास होने की जरूरत नहीं है.
हम रोज बड़ी देर तक टीवी पर कार्यक्रम देखते हैं. उसमें कई बातें ऐसी होती हैं जो हमें गलत लगती हैं. फिर भी हम टीवी देखते हैं, मन में जो नाराजगी आती है उसे प्रकट ना करते हुये हम छोड देते हैं. हरेक टीवी कार्यक्रम में बार-बार एक घोषणा आती रहती है कि अगर इस कार्यक्रम में आपको कुछ आपतिजनक लगता है तो किसी एक वेबसाईट पर या किसी फोन नंबर पर आपका मत प्रकट करें. हम इस घोषणा को पढ़ते हैं, लेकिन अपने मन में किसी कार्यक्रम के बारे में उठी नापसंदगी की भावना को हम प्रकट नहीं करते. समाज पर असर करने वाले इस मीडिया में ऐसी गलत बातें आती रहेंगी, तो समाज पर उनका बुरा असर भी तो पड़ता रहेगा, जो हमारे समाज और देश के लिए नुकसानदेह होता है. इसे रोकना भी तो देशभक्ति ही है. इसलिए हमें कार्य प्रवण होकर ऐसे विषयों पर तुरन्त अपनी प्रतिक्रिया देनी होगी. टीवी दर्शक मंच बनाकर सामूहिक रूप से भी हम यह कर सकते हैं.
हमारे गांव में अनेक अच्छी, प्रेरक बातें, घटनाएं घटती है, लेकिन वे समाचार के रूप में मीडिया में आती नहीं, क्योंकि वे मीडिया तक पहुंचती ही नहीं. अपने गांव में अच्छा काम करने वाले व्यक्ति, संस्था, गांव में उत्पन्न कुछ गंभीर समस्या, किसी भी व्यक्ति की असाधारण सफलताएं, कृषि के क्षेत्र में किसी किसान ने हासिल की कुछ असाधारण उपलब्धियां जिन्हें अन्य लोग भी अनुसरण कर सकते हैं, सामाजिक दृष्टिकोण से प्रेरक घटनाएं, क्या हम समाचार पत्रों तक पहुंचा सकते हैं ? अनेक पत्रिकाएं समाज में अच्छी बातें, समस्याएं, प्रेरक घटनाएं प्रकाशित करने के प्रयास में लगी हुई रहती हैं. क्या हम उनको पहचान कर उनके कार्य में अपने गांव की सूचनाएं भेज कर सहायता कर सकतें हैं ?
समाचार पत्र पढ़ कर या टीवी देख कर चुप बैठने की बजाय, अगर हम इन विभिन्न मार्गो से हमारी सहभागिता बढ़ाएंगे तो मीडिया का रूख देवर्षि नारद की पत्रकारिता के रूख जैसा समाज एवं मानवता के हित की दिशा में रखने में कारगर साबित हो सकता है. हर एक व्यक्ति को यह पहल करनी होगी.
लेखक दिलीप धारूरकर
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