पटना (विसंकें). बीएन मंडल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं साहित्यकार डॉ. अमरनाथ सिन्हा ने कहा कि हिन्दी साहित्य के पुनर्लेखन की अत्यंत आवश्यकता है. मध्यकाल के कई साहित्यकारों का उल्लेख प्रचलित इतिहास में नहीं है. भक्ति काल में ज्यादातर वैष्णव मत के साहित्यकारों को स्थान मिला है. सिद्धों, नाथों, जैन और बौद्ध मत के साहित्यकारों का स्थान इतिहास में नहीं है. यह प्रवृति दुर्भाग्यपूर्ण है. वह आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री शताब्दी वर्ष समारोह में संबोधित कर रहे थे.
विश्व संवाद केन्द्र पटना में 20 अगस्त को आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री, गोपाल सिंह नेपाली और आरसी प्रसाद के जयंती समारोह का आयोजन अखिल भारतीय साहित्य परिषद् द्वारा किया गया था. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. सिन्हा ने कहा कि साहित्य में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का आतंक था. उनके खिलाफ कोई कुछ बोलता नहीं था. उन्होंने साहित्यकार को प्रसिद्धि और मात्रा से तौला. फलस्वरूप विद्यापति, सिद्धों, नाथों, जैनों और बौद्धों की रचनाओं का मूल्यांकन नहीं होता है. सिक्खों के दसवें गुरू, गुरू गोविंद सिंह की रचनाओं में राष्ट्रीय विचार का विस्फोट हुआ था. रीतिकाल की कवि पद्माकर ने कई भक्ति की रचनाएं की. परंतु इन सबका उल्लेख हिन्दी साहित्य के इतिहास में नहीं होता. शायद यही कारण है कि बिहार के साहित्यकारों को आज भी हाशिये पर रखा जा रहा है.
इसके पूर्व एएनएस (टेलीविजन न्यूज एजेंसी) के राष्ट्रीय प्रभारी लक्ष्मी नारायण भाला ने कहा कि एक समय में वामपंथियों ने साहित्य जगत को हाईजैक कर लिया था, किन्तु समय परिवर्तनशील है. जमाना बदला है. अब राष्ट्रीय धारा के वाहक जानकी वल्लभ शास्त्री, आरसी प्रसाद सिंह और गोपाल सिंह नेपाली की रचनाओं की भी जमकर चर्चा होती है. इन लोगों ने राष्ट्रीयता की धारा को आगे बढ़ाया.
इस मौके पर प्रसिद्ध साहित्यकार एवं बिहार गीत के रचनाकार सत्यनारायण ने कहा कि उत्तर छायावाद के पूर्ववर्तियों को हिन्दी साहित्य में वो लोकप्रियता नहीं मिली जो इसके पहले के कवियों को मिली. गोपाल सिंह नेपाली की चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने हिन्दी गीत को जो अवदान दिया वो किसी ने नहीं दिया. उन्होंने हिन्दी कविता को पंछी, झरना आदि कई नए शब्द दिए. इस मौके पर वरिष्ठ साहित्यकार एवं सदानीरा के संपादक डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद ने आरसी प्रसाद के नंददास की चर्चा करते हुए उसे कृष्ण के प्रति शाश्वत प्रेम बताया. इस मौके पर राजकुमार प्रेमी ने भी अपने विचार रखे. समारोह में गोपाल सिंह ‘नेपाली’ की भतीजी सविता सिंह ‘नेपाली’‘ ने -‘कल्पना करो, नवीन कल्पना करो’ को अपनी मर्मस्पर्शी स्वर प्रदान कर नई ऊर्जा प्रदान कर दी. विषय प्रवेश डॉ. शुभचंद्र सिंह ने किया.
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