मुंबई (विसंकें). वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोडकर जी ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ कई साल काम करने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ, यह मेरे जीवन की प्रमुख उपलब्धी है. अपने साथियों की निजी समस्याओं में भी तत्परता से मदद करने वाले कलाम एक आदर्श नेतृत्व थे. कोई काम नियम बताकर टालना उनका स्वभाव नहीं था. अपितु हर संभव प्रयास कर हाथ में लिए काम को अंतिम पड़ाव तक पहुंचाना उनकी विशेषता थी.
विज्ञान भारती तथा रामनारायण रुईया महाविद्यालय द्वारा डॉ. कलाम को श्रद्धांजलि प्रदान करने के लिए सभा का आयोजन किया गया था. जिसमें डॉ. काकोडकर सहित रुईया महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. सुहास पेडणेकर, इंस्टीच्यूट फॉर केमिकल टेक्नॉलाजी के वीसी डॉ. जेडी यादव, मराठी विज्ञान परिषद के सचिव अपां. देशपांडे, श्रद्धानंद महिला आश्रम की अध्यक्षा अचला जोशी, कला दिग्दर्शक सुहास बहुलकर विज्ञान भारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री जयंत सहस्रबुद्धे सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे.
डॉ. काकोडकर ने बताया कि भविष्य की जरूरतों को जानकर उसकी पूर्ति के लिए योजना बनाना, उस पर अम्ल करना, लोगों को प्रेरित कर काम पूर्ण करना, यह डॉ. कलाम की विशेषता थी. स्पेस साइंस में मील का पत्थर साबित होने वाला लो कॉस्ट रिन्यूएबल व्हीकल बनाने का सपना डॉ. कलाम ने देखा था, जिसकी पूर्ति के लिए उन्होंने व्हीकल का डिजाइन तक तैयार किया, जिस पर अभी भी काम हो रहा है.
डीआरडीओ के महासंचालक पद से निवृत्त होने के बाद डॉ. कलाम ने बंगलुरू के एक महाविद्यालय में अध्यापन कार्य प्रारंभ किया. उस दौरान जब डॉ. कलाम से उनके संकल्प के बारे में पूछा तो उन्होंने अगले एक साल के दौरान एक लाख छात्रों से बात करने का अपना संकल्प बताया. कुछ समय पश्चात ही डॉ. कलाम देश के राष्ट्रपति के पद पर विभूषित हुए. डॉ. काकोडकर ने बताया कि जब उनसे पिछले संकल्प की याद दिलाते हुए नए संकल्प के बारे में पूछा तो डॉ. कलाम ने कहा कि राष्ट्रपति बनने के बाद संकल्पपूर्ति का मेरा कार्य और आसान होने के कारण अब दो लाख छात्रों से मिलने का संकल्प है. उन्होंने संकल्प पर अम्ल कर दो लाख से अधिक छात्रों को अनुग्रहित भी किया. डॉ. कलाम के शिक्षण प्रसार कार्य को आगे बढ़ाना ही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
सुहास बहुलकर जी ने बताया कि चित्रकूट प्रकल्प दर्शन के दौरान डॉ. कलाम ने स्थानीय आदिवासियों के साथ बैठकर भोजन किया. स्थानीय परंपरा के अनुसार उन्होंने भी द्रोणपत्र में भोजन किया. राष्ट्रपति पद पर विराजमान व्यक्ति की यह सादगी सबके लिए प्रेरणाजनक अनुभव था. छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर उसकी प्रशंसा करना और लोगों का उत्साह बढ़ाना यह डॉ. कलाम के स्वभाव की विशेषता थी.
जयंत सहस्रबुद्धे ने बताया कि विज्ञान भारती का घोष वाक्य स्वदेशी विज्ञान आंदोलन यह डॉ. कलाम के जीवन का एक प्रमुख तत्व था. विदेशी अनुसंधान का भारत में वैसे का वैसा अनुसरण उनको मान्य नहीं था. नालंदा विवि के स्वर्णिम दिन वापिस आने चाहिए, इस कल्पना से स्वदेशी विज्ञान के बारे में अपनी स्पष्ट सोच सामने रखते थे. उनकी अमर स्मृति हमें सदैव प्रेरणा देती रहेगी. कार्यक्रम के दौरान महाविद्यालय के छात्रों ने भारत के विकास का डॉ. कलाम का अधूरा सपना पूरा करने का संकल्प लिया.
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