गुजरात (विसंकें). शुभमंगल फाउंडेशन सूरत, गुजरात द्वारा आयोजित कार्यक्रम में जैनाचार्य अभय देवसुरिश्वर जी महाराज साहेब तथा अन्य संतगणों की उपस्थिति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत को स्वर्णाक्षर लिखित श्रीमद्भगवद गीता अर्पण की गयी. इस अवसर पर उपस्थित समुदाय को संबोधित करते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि भगवद गीता आदि तात्विक ग्रंथों को प्रत्यक्ष आचरण में लाने वाले संतों ने आपको आज कहा है, इससे पहले हजारों वर्षों से वो कहते आ रहे हैं और उनका बताया हुआ उपदेश स्वयं आचरण में लाना, यह हमको करना है.
हम लोगों के लिए संतों की अखंड परम्परा है और आगे भी रहेगी. लेकिन लाभ हमको लेना है तो आचरण करना है. हमारे धर्म, संप्रदाय, संस्कृति और परम्परा ये सभी शाश्वत सत्य पर आधारित होने के कारण इनको कोई मिटा नहीं सकता. बात है उसका आचरण करने वाले हम लोगों की. हमारी सुरक्षा तब होती है, जब हम उसका आचरण करते हैं. इस दृष्टी से हमें क्या करना है वो महाराज साहेब ने आपको बताया है. अभी मुझे भगवत गीता भेंट में मिली है उसी में से दो-चार बातें अपनी बुद्धि के अनुसार बताता हूं.
भगवत गीता में जब अर्जुन को समझाने के बाद भी समझ में नहीं आया तो विश्वरूप का दर्शन कराया. तब उसकी समझ में आया. गीता में ग्याहरवें अध्याय में पहले अध्यायों का पुनरावर्तन बहुत है क्योंकि अर्जुन को फिर से समझाना पड़ा. लेकिन विश्वरूप दर्शन केवल तीन लोगों
को महभारत के समय में हुआ. अर्जुन ने देखा, भीष्म ने देखा और इससे पहले धृतराष्ट्र की सभा में भीष्म ने देखा और भीष्म के माध्यम से धृतराष्ट्र ने देखा, क्योंकि भीष्म और अर्जुन ये देखने – समझने के लायक बने थे. हम अपने को इस लायक बनाएं तो हमारे सारे धर्म ग्रंथों और आचार्यो का ज्ञान प्रत्यक्ष होगा, नहीं तो नहीं होगा. तो गीता का पहला संदेश यह है कि भागना नहीं अर्जुन को कृष्ण ने कहा तुम युद्ध करो. जीवन में कैसी भी परिस्थिति हो हमारा काम है. अडिग रहना, अच्छाई पर अड़े रहना. भारत पर जब-जब आक्रमण हुए तो नरमुंडों के ढेर लगे, यज्ञोपवित को तोला गया, लोगों को कहा यदि बचना है तो हमारे साथ आओ, लेकिन उन्होंने मरना स्वीकार किया और अड़े रहे. अतः अपनी धर्म संस्कृति परम्परा पर अड़े रहो.
दूसरी बात ये सारा एक है, दिखने में भले अलग-अलग हो. जो भी पंथ, संप्रदाय भारत से निकला हो वो यम एवं नियमों के आधार पर ही चलता है. आचरण का मार्ग सबका समान है. दर्शन अलग-अलग है क्योंकि देखने वाले की दृष्टी अलग-अलग है. तो उस एकता की पहचान करो और जो करो अच्छा करो, समय पर करो, व्यवस्थित करो, सत्यं शिवम् सुंदरम करो. प्रेम से करो और सबके प्रति सम दृष्टी रखते हुए सुख और दुख में समान रहो. स्वयं को ठीक करो दुनिया अपने आप ठीक हो जायेगी. सात्विकता को अपने जीवन में लाना है. यह ध्यान में रखते हुए अपना कर्म करते रहो. अभी महाराज साहेब ने धर्म संसद में जो कुछ भी इच्छायें आपको बताई, इसके लिए प्रयत्न सभी करेंगे. लेकिन सतत प्रयत्न करने का दम समाज में है कि नहीं. मैं आपको बताता हूं इस समाज की आज की तारीख की जो शक्ति है, उसके सामने खड़ी रहने वाली शक्ति आज दुनिया में नहीं है. ताकत तो इतनी है, बस अपने हाथों से अपनी ताकत को उपयोग में लाने की कला हम सबको सीखनी है. शिक्षापत्री हो या अन्य पंथ संप्रदाय के जो सारे विचार, अनुभव, आचरण का जो सार है वो सब यही शक्ति देता है, यही कला देता है. संतगणों द्वारा बताये गए आचरण पर यदि अपना जीवन चले तो आप देखेंगे कि 70% संकट अपने आप मुक्त हो जाएंगे, शेष 30% संकट में आप देखेंगे कि आपके पीछे ईश्वरीय शक्ति लड़ रही है वो आपको निश्चित विजय दिलाने वाली है. तो आचरण की बात हम शुरू करें, इतनी एक प्रार्थना करता हूं.
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