Wednesday, August 05, 2015

संस्कृति पर गर्व करने के साथ ही सांस्कृतिक धरोहर को संभालना भी आवश्यक – दिव्यानन्द जी महाराज

मेरठ (विसंकें). काँवड़ यात्रा एक प्राचीन परम्परा है. इसका पौराणिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है. त्रेता युग हो या द्वापर युग सभी में काँवड़ यात्रा किसी ना किसी रुप में विद्यमान थी.  इतिहास की दृष्टि से बात करें तो श्रवण कुमार इसका उदाहरण है, जिन्होंने अपने माता-पिता को चारों धाम की यात्रा करवायी जो काँवड़ यात्रा का ही एक स्वरुप है.
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विश्व संवाद केन्द्र द्वारा आयोजित ‘‘काँवड़ यात्रा’’ एक विवेचन नामक पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम में परम पूजनीय ब्रह्मचारी दिव्यानन्द महाराज जी ने संबोधित किया. स्वामी जी ने कहा कि हमें अपनी संस्कृति पर गर्व करने के साथ ही अपनी सांस्कृतिक धरोहर को भी संभालना चाहिये, जिससे हमारा कल्याण हो. काँवड़ यात्रा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि श्रावण के महीने में काँवड़ यात्रा  धार्मिक महत्व के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिये लाभप्रद है, क्योंकि पैदल यात्रा करने के दौरान व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के साथ-साथ धार्मिक भावना से जुड़ा रहता है. जो उसकी आस्था का प्रतीक है.
राष्ट्रदेव के सम्पादक अजय मित्तल ने कहा कि हमारी संस्कृति बड़ी समृद्ध है. हालांकि इसको प्रभावित करने के प्रयास भी लगातार होते रहे हैं, परन्तु 5 हजार वर्ष से हमारी संस्कृति को कोई क्षति नहीं पहुंचा सका है. काँवड़ यात्रा भी हमारी संस्कृति के पोषण का ही एक उदाहरण है.
काँवड़ यात्रा एक विवेचन नामक पुस्तक के लेखक पं. सुमन्त्र कुमार ने पुस्तक की भूमिका के सन्दर्भ में बताया. उन्होंने कहा कि कुछ कथित लोगों द्वारा काँवड़ यात्रा के सन्दर्भ में फैलायी जा रही भ्रांतियों को दूर करने के लिये ही पुस्तक का लेखन किया गया है. पुस्तक में काँवड़ यात्रा से विभिन्न पहलुओं के आधार पर महत्ता और धार्मिक उपयोगिता की चर्चा की गयी है. कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रशांत कुमार ने किया. अंत में विश्व संवाद केन्द्र न्यास के अध्यक्ष आनन्दप्रकाश अग्रवाल जी ने सभी अतिथियों का धन्यवाद किया.

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