Friday, October 23, 2015

संगठित, समरस समाज ही शक्तिशाली होता है – चिंतनभाई उपाध्याय

गुजरात (विसंकें). गुजरात प्रांत प्रचारक चिंतन भाई ने कहा कि संघ में उत्सव के अवसर पर अधिकाधिक लोगों को जोड़ने की दृष्टि से एकत्रीकरण होता है. विजयादशमी पर्व समाज को विजय का भाव याद दिलाता है. समरस, संगठित समाज ही शक्तिशाली होता है. उन्होंने कहा कि विश्व का सबसे प्राचीन देश भारत है, सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद भारत से है, यहां की कला संस्कृति सबसे प्राचीन है. हमारे देश ने विश्व को सभ्यता सिखाई. विश्व के व्यापार में 1/3 भाग भारत का है. अपना देश पहले से ही सर्वश्रेष्ठ रहा है. भारत में आकर ही एक विदेशी महिला निवेदिता बनी और विवेकानंद जी की शिष्या बनी. चिंतनभाई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नारणपुरा भाग द्वारा आयोजित विजयादशमी उत्सव के उपलक्ष्य में कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि आजकल जो चल रहा है, वह स्थिति कैसे उत्पन्न हुई, इस पर विचार करना होगा. आज ऐसी शक्तियां सक्रिय हैं जो शस्त्रों के माध्यम से विश्व विजय करना चाहती हैं. पहले भी इस प्रकार की शक्तियां थी, लेकिन सफल नहीं हुई. इतिहास में सभ्यता एवं संस्कृति पर सबसे बड़ा आक्रमण इस्लाम का हुआ. सभी देशों के शरणार्थी यहां आए और उन्हें आश्रय दिया. सभी यहां की संस्कृति में ओतप्रोत हो यहां बस गए. विदेशी आक्रमण के सामने हमारे पूर्वजों ने वीरतापूर्वक संघर्ष किया. अपने धर्म संस्कृति को बचाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान भी दिया. धीरे-धीरे हमने मानना शुरू कर दिया की हमारा शासक विधर्मी ही रहेगा. विजय की भावना को हम भूल गए. विजयादशमी तो हम मनाते रहे, लेकिन आसुरी शक्तियों को हराने की प्रवृति समाप्त हो गई. विधर्मी ताकतों ने हमारी गौरवशाली परंपरा को समाप्त करने का प्रयास शुरू कर दिया. वेदों का उपहास होने लगा, कहा जाने लगा कि ये भेड़ बकरी चराने वाले गडरिये के लिखे वेद हैं. अपनी न्याय व्यवस्था, जाति JRV_8538व्यवस्था, ग्राम व्यवस्था समाप्त कर दी गई. विकेन्द्रित व्यवस्था समाप्त कर दी गई. हमारी धर्म परिवार आधारित व्यवस्था थी जो राज आधारित कर दी गई. पिछले 150 वर्षो में पद्धतियां बदल गयी. हमें अपनी चीजें बुरी लगने लगीं. भारत अपनी आत्मा भूल गया. अतः विजयादशमी को प्रतीकात्मक उत्सव मनाने की बजाय, प्रत्येक व्यक्ति को राम जैसा आदर्श जीवन जीने की ओर बढ़ना होगा.
वर्ष 1925 में डॉ. हेडगेवार जी ने हमारा प्राचीन गौरवशाली इतिहास को पुनः स्थापित करने के लिए संघ की स्थापना की. डॉ. साहब का प्रयत्न था कि प्रत्येक देशवासी में यह भाव अन्तःकरण से जागृत हो कि प्रत्येक भारतीय हमारा भाई/बहन है. संघ की स्थापना विजयादशमीं के दिन 1925 में हुई थी. संघ का काम प्रत्येक देशवासी में विजय की भावना जागृत करना है. सर्वे भवन्तु सुखिनः यानि विश्व कल्याण की कामना करने वाले हम लोग है. विश्व कल्याण के लिए प्रचंड शक्ति का निर्माण करना होगा, तभी विश्व कल्याण संभव है. हिन्दू समाज को संगठित करने का कार्य संघ करता है. समाज में जबभी कोई विपत्ती आती है तो संघ का स्वयंसेवक दौड़ पड़ता है.
कार्यक्रम के प्रारंभ में मुख्य अतिथि विरेशभाई ब्रह्मभट्ट (SBI, Union Asstt. Secretary) ने कहा कि संघ ही एक मात्र ऐसा संगठन है जो शस्त्रपूजन करता है. हिन्दुओं की जनसंख्या भारत में तेजी से कम हो रही है. हमें वर्ण व्यवस्था को भूलकर सभी हिन्दुओं को एक होना होगा, अस्पृश्यता दूर करनी होगी. संघ में प्रमाणिकता दिखती है.

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