गोरखपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि अपना कार्य भारत को परम वैभव, साधन संपन्नता तक ले जाने के लिए समाज को तैयार करना है. इस काम के महत्व को समझकर काम को उत्कृष्ट तरीके से तथा संस्कारक्षम्य होकर करना. समाज की कुछ दुष्ट शक्तियां कार्य से भटकाने का प्रयास करती हैं, परंतु कार्य की पद्धति को ध्यान में रखकर अलग-अलग परिस्थितियों के अनुसार कार्य को अलग-अलग महत्व देने से ताकत, हिम्मत व अनुशासन का विकास होता है, जो ध्येय प्राप्ति में सहायक होता है. सरसंघचालक जी महाराणा इंटर कॉलेज के प्रांगण में शाखा टोली पर्यंत कार्यकर्ताओं को बैठक में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि संघ में सबसे महत्वपूर्ण सामान्य स्वयंसेवक होता है. श्री गुरूजी अपने उद्बोधनों में कहा करते थे, स्वयंसेवकों को गढ़ने का कार्य शाखा में होता है. स्वयंसेवकों को गढ़ने वाली शक्ति को दुनिया देख नहीं पाती है. शाखा के माध्यम से आत्मीयता का जो भाव उत्पन्न होता है, उससे सारे कार्य मिल जुलकर करने का भाव उत्पन्न होता है. स्वयंसेवकों से समाज अपेक्षा करता है कि वे संस्कारित, प्रामाणिक हों व सामाजिक समरसता, स्वदेशी की भावना समाज में उत्पन्न करें. संपूर्ण देश में स्वयंसेवक समाज परिवर्तन का उदाहरण बनते हैं, और ये ही उदाहरण समाज में वातावरण बनाते है. यही वातावरण समाज में परिवर्तन लाता है. समाज जिसको अपना मानता है, उसके पीछे चलता है. स्वयंसेवक यही अपनत्व व स्नहेभाव समाज में प्रदर्शित करता है. उन्होंने कहा कि विविधता में एकता दिखाने वाला भारत यदि खड़ा हो गया तो पूरे विश्व में सुख शांति संभव है. समाज में हमें आत्मीयता रखने वाली शक्ति खड़ी करनी है, जिससे संपूर्ण समाज समतायुक्त, शोषणमुक्त बन सके. यही व्रत हमने धारण किया है.
समाज में परस्पर आत्मीयता और टीम भावना का निर्माण करना आज की आवश्यकता है. मजबूत राष्ट्र का निर्माण तभी संभव होगा, जब लोग पूरी ईमानदारी और निष्ठा से उस दिशा में कार्य करेंगे. ध्येय की संपूर्ण प्राप्ति के लिए पूरे समाज के सभी वर्गों के लोगों को मिल कर कार्य करना आज की जरूरत है. हर किसी को व्यक्ति निष्ठा से ऊपर उठकर सत्यनिष्ठा के आधार पर अपना कार्य करना चाहिए.
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