नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह संपर्क प्रमुख तथा जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र के निदेशक श्री अरुण कुमार जी ने कहा है कि अब भारत तीसरी दुनिया का देश नहीं, बल्कि एक वैश्विक शक्ति है. दुनिया द्वारा भारत को इस भूमिका में देखे जाने का कारण यही है कि वैश्विक शक्ति बनने का सामर्थ्य भारत के अलावा किसी अन्य देश के पास नहीं है.
राष्ट्रीय सुरक्षा पर संवाद के बाद आसन्न सुरक्षा चुनौतियों एवं इनके समाधान पर केन्द्रित पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर साप्ताहिक के विशेषांकों के यहाँ 21 जनवरी को संपन्न विमोचन समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए उन्होंने कहा कि स्थायी वैश्विक शक्ति की संभावना और सामर्थ्य का सबसे बड़ा कारण इसकी सामरिक स्थिति है.
श्री अरुण जी ने ध्यान दिलाया कि कुछ समय पूर्व तक दुनिया के अन्दर ब्रिटेन एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित था. पूरी दुनिया के अन्दर उसका साम्राज्य था, आधी दुनिया में राज्य था. उन्होंने स्पष्ट किया कि आधी दुनिया में उसका राज्य अपने बल पर नहीं बल्कि भारत के कारण था. 1947 से पहले व्दितीय विश्व युद्ध परिदृश्य में जब ब्रिटेन को लगने लगा कि अब उसे यहां से अपना शासन छोड़ना पड़ेगा तो ब्रिटेन अपने हितों की रक्षा कैसे करेगा. इसको लेकर उन्होंने बहुत विस्तृत अध्ययन किया, उस पर कई रिपोर्ट छापीं. उन रिपोर्टों से स्पष्ट होता है कि भारत का महत्व क्या था.
उन्होंने माओवाद व नक्सलवाद जैसी समस्याओं और पड़ोसी देशों को ओर से पैदा किए जा रहे संकटों से परे जाकर देखने और सोचने का आह्वान करते हुए कहा कि अब बहुध्रुवीय विश्व की कल्पना में निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय चिंतकों का आकलन है कि आगामी 40 वर्षों में भारत अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, रूस, चीन, और जापान के साथ खड़ा होकर विश्व में शक्ति संतुलन बनायेगा.
भारत को ब्रिटिश साम्राज्य की असली ताकत बताते हुए अरुण जी ने कहा कि ब्रिटेन का साम्राज्य प्रारम्भ होता था टर्की, मिस्र और उन सब एरिया से. यह सब यहां से सिंगापुर, मलाया, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और फिर उसके बाद पूर्व अफ्रीका और दक्षिण अफ्रीका. इस पूरे क्षेत्र में उन्होंने तीन बड़े सैन्य अड्डे बनाये. एक पोर्ट ऑफ़ स्पेन, अदन और दक्षिण अफ्रीका में. तीनों के ऊपर गैरीसन भारत था. चार बड़े गैरीसन भारत के अन्दर बनाये कलकत्ता, चेन्नई, कोच्चि और मुम्बई. पूरा का पूरा हिन्द महासागर ब्रिटिश लेक में परिणत हो गया. उनका सारा का सारा साम्राज्य इसके इर्द गिर्द फैला हुआ था. प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन लड़ रहा था. 18 लाख सैनिक थे ब्रिटेन के. इनमें 14 लाख भारतीय थे. द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन लड़ रहा था उसके 25 लाख सैनिकों में 20 लाख भारतीय थे. दुनिया के अन्दर जहां ब्रिटेन लड़ा वास्तव में ब्रिटेन नहीं लड़ा भारत की मानव शक्ति, भारत की स्ट्रेटेजिक लोकेशन, इसके बूते ब्रिटेन दुनिया के ऊपर राज्य करता था.
अपने विद्वतापूर्ण विश्लेषण में उन्होंने कहा, “दुनिया के अन्दर भारत के व्यक्ति का एक महत्व है, मैं केवल स्ट्रैटेजिक लोकेशन की ही बात नहीं कर रहा, भारत के पास जो समाज है, हमारी बहुत सारी बातें हैं, परिवर्तन को स्वीकार करने की हमसे ज्यादा वायब्रेंट सोसायटी नहीं है. जितनी तेजी से तीस-चालीस सालों में हमने अपने आप को बदला है, नयी-नयी बातों को अडॉप्ट किया है, अपनी रूढि़यों को छोड़ा है दुनिया में सामान्यतः सोसायटियां नहीं कर सकती हैं. हम जहां गये हैं वहां हमने अपने प्रति दुनिया को देखने का दृष्टिकोण एक अलग प्रकार का बनाया है. मिलिट्रली, इकोनोमिकली भारत का सब कुछ प्राप्त किया. इन सब बातों के कारण से दुनिया के लोग भारत से एक वैश्विक शक्ति के रूप में भूमिका की अपेक्षा करते हैं”.
उन्होंने यह भी कहा, “वैश्विक शक्ति के रूप में भूमिका अदा करने के लिये हमारे पास सब कुछ है. लेकिन अपने देश के अन्दर जब हम वातावरण देखते हैं तो उस वातावरण के अन्दर हमारा व्यवहार, हमार एैटिट्यूड एक वैश्विक शक्ति जैसा दिखता नहीं है. उसका कारण क्या है, तो बहुत सारे लोग बहुत सी बातें कहते हैं, वो कहते हैं कि दो बातें बेसिकली हैं जो इस कंट्री में आ जायें तो हमारे पास सब कुछ है, वी कुड चेंज. दुनिया जिस रोल की हमसे अपेक्षा करती है वह हम कर सकते हैं. वो कौन सी दो बातें हैं, वो कहते हैं कि दो बातें इस देश के अन्दर चाहियें, एक- इस देश के अन्दर एक कंट्री ऐसी बननी चाहिये, सोसायटी ऐसी बननी चाहिये जिसकी कोई ऐम्बिशन हो, जिसके पास कोई विजन हो”.
“दुनिया के अन्दर वो राष्ट्र भूमिका अदा करते हैं जिन राष्ट्र के अन्दर कुछ ऐम्बिशन होती है. उस राष्ट्र के अन्दर अपने देश को लेकर कुछ सपने होते हैं. राख के ढेर से जापान वैभव के महल बना सकता है, पचास साल के अन्दर 1800 साल बाद जो इज़रायल भूमि प्राप्त करता है. वह राष्ट्र तो रहा लेकिन भूमि नहीं रही. केवल 50 साल के अन्दर जर्मनी, जिस पर इतने प्रतिबंध लगा दिये गये, उस जर्मनी का एकीकरण भी होता है और जर्मनी एक शक्ति भी बनता है. 50 साल के अन्दर चीन अपने प्रति दुनिया का देखने का दृष्टिकोण बदल देता है तो भारत क्यों नहीं. उसका कारण केवल एक है कि देश के अन्दर आजादी के बाद इस देश में समाज के अन्दर जो ऐंबिशन जगनी थी, एक विजन चाहिये था और उस विजन को पूरा करने के लिये जो मिशन चाहिये था वो हम खड़ा नहीं कर पाये. इस देश को लेकर सपना, उस सपने को प्राप्त करने की दृष्टि, उस दृश्टि को पूरा करने के लिये मिशन के रूप में जीने की भावना. दूसरा, दुनिया के अन्दर अगर विजेता बनना है तो वी हैव टु क्रिएट ए स्ट्रेटेजिक सोसायटी. दुनिया के अन्दर क्षमता वाले लोग नहीं जीतते, ताकत वाले लोग नहीं जीतते, गुणवान लोग नहीं जीतते वो जीत सकते हैं पर वो हमेशा नहीं जीतेंगे, एक लड़ाई जीतना अलग चीज है विजेता बनना अलग चीज है. अगर हमको विजेता बनना है तो इस देश के अन्दर दो-पांच दस लीडर नहीं, 5-10-15-20 हीरोज नहीं हमको इस देश के अन्दर एक स्ट्रेटेजिक सोसायटी खड़ी करनी होगी.”
“जिस देश का समाज बिजली, पानी, सड़क, गली, नाली इसके बाहर सोच नहीं सकता वो समाज दुनिया में कभी विजेता नहीं बन सकता. यह जो समाज है इस समाज का लेवल बढ़ाना पड़ेगा. मैं विचार करता हूं, मैं भी कौन हूं, मैं भारतीय हूं तो भारत का मतलब क्या है, दुनिया में भारत का रोल क्या है, भारत का अर्थ क्या है, इस लेबल के ऊपर समा जायेगा क्या. आजादी के बाद हम इस देश में ऐसी स्ट्रैटेजिक सोसायटी का निर्माण नहीं कर पाये.”
उन्होंने कहा कि दुनिया के एक कोने में स्थित वो दूरस्थ देश जिसके पास अपना सामर्थ्य नहीं अपने को आत्मनिर्भर बनाकर रखने का, उस ब्रिटेन के पास एक स्ट्रेटेजिक विजन था. इसलिये उसने भारत का उपयोग किया और वह वैश्विक शक्ति बन गया. उसने इस्तेमाल हमारे संसाधनों और स्ट्रेटेजिक लोकेशन का किया. लेकिन भारत छोड़ने के बाद ब्रिटेन का हाल क्या हुआ, अगर वो बन सकते हैं तो हम क्यों नहीं बन सकते. उसका कारण केवल एक है कि इस देश के अन्दर आजादी के बाद एक सपना, देश को लेकर एक विजन, इस देश के लिये एक मिशन की भावना और सामान्य समाज के व्यक्ति के अन्दर जिस प्रकार का स्ट्रेटेजिक विजन चाहिये था वो हम खड़ा नहीं कर सके.
केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री श्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने कहा कि आईएसआईएस और अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठनों की दृष्टि भारत के युवाओं पर है, क्योंकि इनको जो ताकत मिल सकती है वह भारत के युवाओं से मिल सकती और कहीं से इतनी ताकत नहीं मिल सकती. यूरोप, और चीन बूढ़े हो रहे हैं, सिर्फ भारत में इतनी संख्या में युवा हैं जो कहीं भी पार्टिसिपेट कर सकते हैं सही दिशा में भी और गलत दिशा में भी.
आईएसआईएस एक ऐसी ऑर्गनाइजेशन है जो बाकी सभी टैररिस्ट ऑर्गनाइजेशन से अलग है. यह टैरिटरी हथिया रहे हैं और टैरेटरी को होल्ड कर रहे हैं. कोई भी टैररिस्ट ऑर्गनाइजेशन टैरिटरी को होल्ड नहीं कर रही थी. पेरिस में अखबार के दफ्तर पर आतंकवादी हमला अलकायदा ने किया. यानी आज दुनिया के अन्दर जो दो बड़े आतंकवादी संगठन हैं – आईएसआईएस और अलकायदा. दोनों एक साथ नहीं हैं लेकिन अगेंस्ट भी नहीं हैं. यह अपने मत में एक हैं और यह दोनों इस्लाम की सुप्रीमेसी चाहते हैं, तरीके अलग हैं. अलग-अलग देशों में टैरर करना, खासतौर से वैस्टर्न कंट्रीज में टैरर करना या हिन्दुस्थान में टैरर करना, और एक है टैरिटरी को हथियाना. अब दोनों के अन्दर मुकाबला है. इस मुकाबले में यह दोनों भारत और अफ्रीका की तरफ देख रहे हैं.
युवा बेरोजगारों को ड्रग्ज और अल्कोहल के खतरों से आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि यह डेमोग्राफिक बम की तरह है जो बड़े घातक सिद्ध हो सकते हैं. पड़ोसी देशों व्दारा भारत की घेरेबंदी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि वे भारत को चारों ओर से घेर रहे है. कराची, बांग्लादेश और श्रीलंका में बहुत बड़े पोर्ट बनने जा रहे हैं. यह पोर्ट हिन्दुस्तान को इस तरह से घेर रहे हैं ताकि हिन्दुस्थान इंडियन ओसन से अलग हो जाये और एशिया के उपमहाव्दीप तक ही सीमित रहे. इंडियन ओसन इकोनोमिक गतिविधियों के लिये बहुत जरूरी है. गल्फ ऑफ अदन से लेकर स्टेट ऑफ मोरक्को तक 90 प्रतिशत जहाज उसी रास्ते से जाते हैं.
सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री सोमाली डाकुओं के मामले को रहस्यमय बताते हुए कहा कि विदेशी ताकतों ने इसे हिंदमहासागर में अपनी उपस्थिति और भारत के क्षेत्र को सीमित करने के लिये कूटनीतिक उपाय बनाया. नेपाल में चीन व्दारा बड़ी संख्या में कंप्यूशस केन्द्र खोले जाने को भारत के लिये चेतावनी बताते हुए उन्होंने कहा कि आने वाले समय में वहां के युवा चीन के प्रति निष्ठा रखेंगे. इसी प्रकार, पाकिस्तान के अल हदीस नामक वैचारिक संगठन ने भारत-नेपाल सीमा के चारों ओर मस्जिदें बनानी शुरू कर दी हैं. श्री राठौर ने टिप्पणी की “बड़ी अजीब बात है जहां एक ओर पाकिस्तान है जो पूर्ण रूप से इस्लाम पर विश्वास रखता है. दूसरी ओर, चीन है जो धर्म पर ही विश्वास नहीं रखता. लेकिन दोनों प्रैक्टिकल कारणों से साथ में आये हैं कि हिन्दुस्थान को किस तरह से सीमित किया जा सकता है”.
श्री राठौर ने चीन की नेपाल में भारी पूंजी निवेश की रुचि पर ध्यान देने की जरूरत भी बताई जिसने एनर्जी, इन्फ्रास्ट्रक्चर, कम्युनिकेशन जैसे 9 कोर एरिया चुने हैं.
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान एक ऐसा देश है जो पाकिस्तान को न्यूट्रलाइज करने में भारत की मदद कर सकता है. लेकिन हाल ही में वहां एक ऐसी घटना हुई है जो हिन्दुस्थान के लिये बहुत घातक हो सकती है. तालिबान ने वहां तीन क्षेत्रों पर कब्जा किया है और वहां के राष्ट्रपति तालिबान से बात करके यह समझौता करने की कोशिश कर रहे हैं कि वो तीन राज्यों पर अपना राज्य स्थापित करें और बाकी अफगानिस्तान जैसा है वैसा चलता रहे. अगर ऐसा होता है तो वो तीन राज्य ऐसे हैं, जहां सबसे ज्यादा ड्रग्स का उत्पादन होता है. एक तरफ आईएसआईएस के पास पूरा तेल है. एक मिलियन डॉलर हर दिन की आमदनी है और अगर यह तीन राज्य तालिबान के पास होंगे तो पूरा का पूरा ड्रग्स उत्पादक क्षेत्र तालिबान के पास होगा.
नार्थ ईस्ट पर भारत को चीन के साथ एक हाइड्रोडिप्लोमेसी करने की जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा कि वो ब्रह्मपुत्र के ऊपर बांध बनाने वाले हैं, वो उसको इंटरलिंक करेंगे और हमारे यहां पानी की मात्रा कम हो जायेगी. इसका भारत पर बहुत गंभीर असर पड़ेगा, यह मुद्दा जरूर इंटरनेशनल कोर्ट में जायेगा. तब भारत को यह बताने की आवश्यकता होगी की कि इस पूरे ब्रह्मपुत्र के क्षेत्र में कितनी आबादी रहती है. कितनों पर असर पड़ता है. इंटरनेशनल बॉर्डर की समस्या तो है ही. चीन ब्रह्मा और बांग्लादेश को प्रभावित करने की कोशिश में है. इसके लिये नार्थईस्ट में इंटरलिंकिंग की बहुत आवश्यकता है. हाईवे बनने बहुत जरूरी हैं, कनेक्टिविटी बढ़नी चाहिये, जिससे सिक्यूरिटी फोर्स को आने-जाने में आसानी हो, साथ ही वहां के लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी होगी तो वो आतंक के रास्ते से दूर हो जायेंगे. साथ ही दूरदर्शन द्वारा हमारा कल्चर वहां तक पहुंचना बहुत जरूरी है. उनका कल्चर चारों तरफ फैलना बहुत जरूरी है, उनको एक अपनापन लगना बहुत जरूरी है इस दिशा में सरकार ने काम करना शुरू कर दिया है.
समारोह के प्रारम्भ में पाञ्चजन्य के संपादक श्री हितेश शंकर ने सुरक्षा पर संवाद की पृष्ठभूमि को रेखांकित किया. भारत प्रकाशन (दिल्ली) लि. के प्रबंधनिदेशक श्री विजय कुमार ने दोनों पत्रों की उत्तरोत्तर प्रगति के लिये श्री शंकर और श्री केतकर की सराहना की और धन्यवाद ज्ञापन किया.
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