Friday, January 30, 2015

देश के लिये प्राणों की आहुति देने वालों का सही इतिहास नहीं लिखा गया – अभय कुमार जी

वाराणसी (विसंके), 24 जनवरी. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने घोष की थाप पर पथसंचलन किया. स्वयंसेवक जोश से भरे जिस मार्ग से गुजरे वहीं लोग स्वागत के लिये अनायास ही आगे बढ़ आए. विश्वविद्यालय के विभिन्न छात्रावासों से स्वयंसेवकों के ब्रोचा छात्रावास के सामने मैदान में पहुंचने का सिलसिला 2.30 बजे से ही प्रारम्भ हो गया था. प्रातःकाल तक खाली पड़ा यह मैदान दो बजते-बजते सफेद शर्ट, खाकी निकर और काली टोपी पहने स्वयंसेवकों से भर गया. पथ संचलन में विद्यार्थी स्वयंसेवक शामिल हुए. इसके पश्चात् विश्वविद्यालय स्थापना स्थल पर वन्देमातरम गीत से कार्यक्रम का समापन हुआ.
बसन्त पंचमी के शुभ अवसर पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ब्रोचा छात्रावास के मैदान में पथसंचलन से पूर्व स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक श्री अभय कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना अंग्रेजों के शासन काल में हुई. दोनों के संस्थापक समान विचारधारा के थे. महामना देशभक्त, स्वतंत्रता सेनानी, सुप्रसिद्ध शिक्षक, पत्रकार तथा कुशल अधिवक्ता थे. इसी प्रकार डॉ. हेडगेवार भी जन्मजात देशभक्त तथा स्वतंत्रता सेनानी थे. संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने बचपन में ही अंग्रेज अधिकारी के खिलाफ वन्देमातरम् का नारा बुलन्द किया.
उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार ने लोकमान्य तिलक के सम्पर्क में आकर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. बाद में क्रांतिकारियों के संगठन अनुशीलन समिति में सम्मिलित हुये. उन्होंने कहा कि महर्षि अरविन्द अखण्ड भारत का मानचित्र बनाकर उसकी पूजा किया करते थे. उन्होंने अपने मृत्यु के पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि देश अब स्वतंत्र हो जायेगा. डॉ. हेडगेवार ने विचार किया कि देश तो स्वतंत्र हो जायेगा, लेकिन पुनः परतंत्र न हो, इसलिए इस देश के लोगों को संगठित करना चाहिये. इसीलिए उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में की और घोषणा की कि ‘भारत हिन्दू राष्ट्र है.’ मालवीय जी संघ कार्य के प्रशंसक थे. एक बार मालवीय जी ने संघ के लिये धन देने की इच्छा प्रकट की लेकिन डॉ. हेडगेवार ने विनम्रता पूर्वक कहा- ‘‘मुझे धन नहीं चाहिये, मुझे तो मालवीय जी चाहिये.’’ मालवीय जी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना नौकर पैदा करने के लिये नहीं की थी. उन्होंने हिन्दू धर्म तथा हिन्दू संस्कृति की रक्षा करने वाले देशभक्त पैदा करने के लिये विश्वविद्यालय बनवाया था. दोनों महापुरूषों में अद्भुत वैचारिक मेल था. आज के इस पावन अवसर पर महामना के विचारों को जीवन में उतारने की जरूरत है.
kashi1उन्होंने कहा कि देश की स्वतंत्रता के लिये अपने प्राणों की आहुति देने वाले क्रांतिकारियों का सही इतिहास नहीं लिखा गया. यह अत्यन्त दुःखद है. इन क्रांतिकारियों की एक विशाल श्रृंखला है. किन्तु हमारे बच्चे बड़े मुश्किल से 25 क्रांतिकारियों का नाम बता पायेंगे. इससे पूर्व महामना के चित्र पर पुष्पार्चन एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का कुलगीत तथा एकलगीत हुआ.

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