मुंबई. 22 जनवरी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि डा. अंबेडकर की प्रतिमा को हमेशा संघर्षवादी की तरह पेश किया गया है. वस्तुत: वह समन्वय के समर्थक और क्रियाशील नेतृत्व भी थे. सामाजिक विज्ञान की अनेकानेक शाखाओं को उन्होने अपनी चिंतनशील प्रज्ञा से नयी दिशा दी. उनके जीवन के इन विविध पहलुओं का अध्ययन होना आवश्यक है. राष्ट्र सुरक्षा पर हिंदी विवेक के विशेषांक के विमोचन अवसर पर सह सरकार्यवाह संबोधित कर रहे थे.
‘हिंदी विवेक’ निर्मित ‘राष्ट्र सुरक्षा’ विशेषांक के विमोचन अवसर पर देश के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर भी उपस्थित थे. कार्यक्रम के विशेष अतिथि के रूप में ले.ज. (सेवानिवृत्त) दत्तात्रेय शेकटकर और सांसद गोपाल शेट्टी तथा हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष रमेश पतंगे, प्रबंध संपादक दिलीप करम्बेंलकर और हिंदी विवेक के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी अमोल पेडणेकर मंच पर विराजमान थे.
रक्षा मंत्री पर्रीकर ने कहा कि हाल ही में हुये नौदल ऑपरेशन के बाद पत्रकारों ने मेरी प्रतिक्रिया के लिये जंग छेड़ दी. उस ऑपरेशन की सत्यता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े किये गये. जबकि दूसरी ओर फ्रांस में हुये आतंकी हमले का वार्तांकन करने वाले फ्रेन्च माध्यमों ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई. भारतीय माध्यमों को भी इससे सीखने की जरूरत है. राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में हमें अधिक संवेदनशील होने की जरुरत है. सामाजिक स्वास्थ्य ध्यान में लेते हुये माध्यमों को जानकारी देनी चाहिये. किसी भी घटना को प्रस्तुत करते वक्त समाज में आक्रंदन की भावना निर्माण न हो, इसका खयाल रखना चाहिये. स्वनियमन से ही यह संभव हो सकता है.
कृष्णगोपाल जी ने कहा कि डा. अंबेडकर ने अर्थशास्त्र, राज्यशास्त्र, नीतिशास्त्र, न्यायशास्त्र, मानववंश शास्त्र, धर्मविचार और इतिहास जैसे विषयों में अध्ययन कर राष्ट्रविचार की दृष्टी से शास्त्रो का उपयोग किया. समाज के उपेक्षित वर्ग को आत्मसम्मान और आत्मविश्वास देने का अंबेडकर का कार्य महानतम है. वह बिलकुल धर्मविरोधी नहीं थे. श्रद्धा, आस्था का वह सम्मान करते थे. उन्हें साम्यवादी के तौर पर पेश करना गलत है.
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