जालंधर (विसंके). पंजाब केसरी के नाम से विख्यात लाला लाजपत राय न केवल एक महान क्रांतिकारी बल्कि परम राष्ट्रवादी चिंतक और स्वदेशी आंदोलन के दूत थे. उनके प्रेरक जीवन से मार्गदर्शन ले हजारों युवा देश के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े और अपना जीवन देश पर न्योछैवर कर दिया. इन्हीं बलिदानों के फलस्वरूप 15 अगस्त, 1947 को देश सदियों की परतंत्रता से मुक्त हो पाया. यह विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बौद्धिक प्रमुख श्री विजय सिंह ने शहीद भगत सिंह चौक पर स्थित विश्व संवाद केंद्र के परिसर में लाला लाजपत राय की 28 जनवरी को 150 वीं जयंती के उपलक्ष में आयोजित परिचर्चा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये. इस परिचर्चा में इलाके के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया और लाला जी को श्रद्धासुमन अर्पित किये.
श्री विजय सिंह जी ने कहा कि लाला जी ने अपने दृढ़ चरित्र से कांग्रेस को ब्रिटिश भक्ति से देश भक्ति की ओर मोड़ा. पहले कांग्रेस का सारा कामकाज अंग्रेजी में चलता था परंतु लाला जी ने इलाहबाद अधिवेशन में सर्वप्रथम हिंदी में भाषण देकर इस परंपरा को तोड़ा. उन्होंने कांग्रेस की कार्यवाही के आरंभ और समापन में ‘लोंग लिव किंग-लोंग लिव क्वीन’ की परंपरा को बंद करवाया और 1897 में जब देश में प्लेग फैला था, उन्होंने लाहौर में ब्रिटिश महारानी की प्रतिमा लगाने का सफल विरोध किया.
श्री सिंह ने कहा कि लाला जी केवल क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं बल्कि एक महान पत्रकार, स्वदेशी के अग्रदूत और राष्ट्रवाद के स्तंभ भी थे. उन्होंने ‘एंग्लो वैदिक’ समाचारपत्र का प्रकाशन कर देश विशेषकर पंजाब में राष्ट्रवाद की अलख को जगाया. उन्होंने स्वदेशी के मंत्र को इस तीव्रता से घर-घर पहुंचाया कि मानचेस्टर व लंकाशायर के कारखानों तक उसका असर दिखा. उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक व लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना की और सात बार बैंक के डायरेक्टर रहे. वे देशवासियों को मानसिक, आर्थिक व सामाजिक तौर पर परतंत्रता से मुक्त करना चाहते थे. 1907 में उनकी सभा में ही सबसे पहले बांके दयाल ने ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ गीत गाया जो बाद में कांग्रेस के हर अधिवेशन में गाया जाने लगा. यही गीत आगे जाकर भगत सिंह के चाचा स. अजीत सिंह के ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन का बीजमंत्र बना. उन्होंने लाला लाजपत राय को केवल भारत का ही नहीं बल्कि मानवमात्र का नेता बताते हुए उनके जीवन पथ पर चलने का संदेश दिया.
परिचर्चा की प्रस्तावना में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख श्री रामगोपाल जी ने लाला जी के जीवन वृतांतों पर प्रकाश डाला. दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक श्री योगेश्वर दत्त ने महापुरुषों को क्षेत्रों व विशेषणों से बांधने को गलत बताते हुए कहा कि इससे उनके विराट चरित्र दब जाते हैं. दूरदर्शन के उप-महानिदेशक श्री नरेंद्र सिंह ने मीडिया जगत को महापुरुषों के जीवन वृतांतों को प्रचारित करने का आग्रह किया. पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता व जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. रणवीर ने इस बात पर चिंता जताई कि हम अपनी संस्कृति एवं महापुरुषों से कट रहे हैं. एडवोकेट वीरेंद्र शर्मा ने महापुरुषों की परंपरा को आगे ले जाने की जरूरत पर जोर दिया. वरिष्ठ पत्रकार श्री कृष्ण लाल ढल्ल ने इस बात पर चिंता जताई कि स्वतंत्रता संग्राम में हजारों महापुरुषों ने अपने जीवन का बलिदान दिया परंतु आज कुछ एक लोगों को ही उभारा जा रहा है. उन्होंने कहा कि लाला लाजपत राय देश के सांस्कृतिक मूल्यों पर ही आजादी चाहते थे. वरिष्ठ स्तंभकार श्री सुरेश सेठ ने लाला जी के जीवन के अनछुये पहलुओं पर प्रकाश डाला. प्रसिद्ध नेत्ररोग विशेषज्ञ डा. विजय जोशी ने नई पीढ़ी में संस्कार पैदा करने की जरूरत पर जोर दिया. चार्टर्ड एकाउंटेंट श्री विक्रम अरोड़ा ने इस बात पर चिंता जताई कि लाला जी के जीवन पर आधारित साहित्य का नितांत अभाव है. उन्होंने इस कमी को पूरा करने पर जोर दिया. परिचर्चा के समापन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत-सह संघचालक ब्रिगेडियर (से.नि) जगदीश गगनेजा ने सभी आगतों को धन्यवाद दिया.
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