मुंबई (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने कहा कि स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर जी ने किसी पक्ष, जाति, संप्रदाय अथवा गट का नहीं, उन्होंने पूरे समाज का विचार किया. संपूर्ण राष्ट्र का चिंतन किया. समग्र जीवन का विचार उन्होंने प्रस्तुत किया. इसीलिए उनके विचार आज भी उतने ही प्रभावी व सटीक हैं. उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अगर उनके जीवन में किये गये काम का १ प्रतिशत काम भी हम अपने जीवन में कर सकें तो यह जीवन सफल हो जाएगा. मातृभूमि के लिए जीना व उसी मातृभूमि के हित के लिये मृत्यु प्राप्त करना, यह सावरकरजी का आदर्श हम सभी को अपनाने की जरुरत है.
वह मुंबई में ‘विक्रम नारायण सावरकर – एक चैतन्य झरना’ नामक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे. इस अवसर पर मंच पर स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के अध्यक्ष अरुण जोशी विराजमान थे.
सरसंघचालक ने कहा कि सावरकर जी ने अपना सारा जीवन जिस समाज के लिये समर्पित किया, उस समाज ने सावरकरजी को क्या दिया? देश स्वतंत्र होने के पश्चात भी एक लज्जाजनक अभियोग से उनका नाम जोड़ना तथा उन्होंने अपने देश के लिये जहां बहुत दर्द झेला, वहां के स्मारक पर से उनका नाम हटाया जाना, लेकिन सावरकर ने अपने पूरे जीवन काल में किसी व्यक्ति को दोष नहीं दिया. वह अपने देश के लिये तन-मन-धन पूर्वक आजीवन जीते रहे. उनकी यह सोच हमारे जीवन को वास्तव में उजागर कर सकती है.
सावरकरजी ने स्वतंत्रता और समयानुकूलता इन दो तत्वों का अपने जीवन में हमेशा प्रचार किया. स्वातंत्र्य का अर्थ स्वआचरण का तंत्र, प्राचीन परंपराओं में से अच्छी बाते लेना गलत बातें छोडना और गलत बातों के लिये अपने पूर्वजों का आदरपूर्वक खंडन करना यह सावरकरजी का विचार था. प्राचीन काल के संदर्भ को लेते हुए गलत परंपराओं का अनुसरन करने के वे विरोधी थे. धर्म की उन्होंने बहुत स्पष्ट व्याख्या की. सब को समाकर लेता है, वह धर्म, कोई भी पूजा पद्धति धर्म नहीं होती. सदाचार से श्रेय व प्रेम प्राप्त होता है. यह अपने पुरखों का विचार है. विविधताओं को स्वीकार करने की बुध्दि जिस मातृभूमि ने हमें दी और जिस उदात्त संस्कृति का हम अनुसरण करते है, उसको मानने वाले वह हिेंदू है, ऐसी व्याख्या सावरकरजी ने कालानुरूप की.
इस अवसर पर ज्येष्ठ विदर्भवादी नेता और पूर्व सांसद जांबुवंतराव धोटे ने बताया कि विक्रम राव सावरकर चैतन्य स्रोत थे. हर वस्तु की एक उम्र होती है, उसी तरह नैतिक मूल्यों की भी एक उम्र होती है. नैतिक मूल्यों की यह उम्र समाप्त हो रही है, उसी समय विक्रमराव जैसे द्रष्टा हमें छोड कर चले गये यह हमारे हित में नही है. आज हमारे देश में बहुत विकट स्थिति निर्माण हो गयी है. खुद को पूरोगामी कहने वाले लोग अगर कोई अपने विचार रखते है, तो उन पर हमला बोल देते है. हिंदू, हिंदूत्व व हिंदूराष्ट्र जैसे शब्दों का उच्चारण करते ही इन लोगों के पसीने छूट जाते है. सरसंघचालक डॉ. भागवत ने मदर तेरेसा के बारे में जो कहा वह शत प्रतिशत सत्य था. इतना ही नहीं हमारे देश के लगभग सभी इसाई व मुस्लिम इतिहास काल में हिंदू ही थे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देशभक्त बनाने वाला कारखाना है
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