कुरुक्षेत्र. विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान कुरुक्षेत्र की ओर से नई दिल्ली प्रगति मैदान में 14 से 22 फरवरी तक चल रहे विश्व पुस्तक मेले के सभागार में ‘धरा पर लाएं भगवद्भाषा’ पुस्तक का विमोचन एवं विमर्श कार्यक्रम का आयोजन किया गया. यह जानकारी कुरुक्षेत्र संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने दी.
उन्होंने बताया कि एक कालखंड ऐसा रहा जिसमें इजराइल की हीब्रू भाषा समाप्त हो गई थी, लेकिन बेनयहूद नामक इजराइली नागरिक ने संघर्ष करते हुए हीब्रू भाषा को वहां की मातृभाषा के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य लेकर संकल्प लिया. उसे किस प्रकार सफलता
मिली, इसका प्रेरणादायी वर्णन इस पुस्तक में देखने को मिलता है. इसी विवेचना पर आधारित ‘धरा पर लाएं भगवद्भाषा’ पुस्तक विमोचन एवं विमर्श का यह कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस अवसर पर डॉ. चांद किरण सलूजा ने कहा कि पुस्तक के नाम का प्रथम शब्द ‘धरा’ का अर्थ होता है धारण करने वाली और भाषा का प्रत्यक्ष स्वरूप क्या होता है, इसका बोध इस पुस्तक के पढ़ने पर होता है. कार्यक्रम में डॉ. गोविन्द प्रसाद शर्मा ने कहा कि पुस्तक के बारे में जितनी जानकारी प्रस्तुत की गई, उससे नायक का चरित्र भी उतना ही प्रेरणादायक प्रतीत होता है. बेनयहूद और उसके परिवार ने हीब्रू भाषा के लिये सब कुछ किया और उसका प्रयत्न पवित्र होने के कारण विश्व के कई देशों के युवाओं का उसको सहयोग मिला.
मिली, इसका प्रेरणादायी वर्णन इस पुस्तक में देखने को मिलता है. इसी विवेचना पर आधारित ‘धरा पर लाएं भगवद्भाषा’ पुस्तक विमोचन एवं विमर्श का यह कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस अवसर पर डॉ. चांद किरण सलूजा ने कहा कि पुस्तक के नाम का प्रथम शब्द ‘धरा’ का अर्थ होता है धारण करने वाली और भाषा का प्रत्यक्ष स्वरूप क्या होता है, इसका बोध इस पुस्तक के पढ़ने पर होता है. कार्यक्रम में डॉ. गोविन्द प्रसाद शर्मा ने कहा कि पुस्तक के बारे में जितनी जानकारी प्रस्तुत की गई, उससे नायक का चरित्र भी उतना ही प्रेरणादायक प्रतीत होता है. बेनयहूद और उसके परिवार ने हीब्रू भाषा के लिये सब कुछ किया और उसका प्रयत्न पवित्र होने के कारण विश्व के कई देशों के युवाओं का उसको सहयोग मिला.
पद्मश्री प्रो. जेएस राजपूत ने कहा कि यह पुस्तक सबको अपने-अपने ढंग से उसके निष्कर्ष निकालने के लिये आकर्षित करती है. हमारे यहां के प्राइवेट विद्यालयों में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों की संख्या बढ़ती जा रही है. हमारे यहां यह तय नहीं है कि संस्कृत को एक
मातृभाषा के रूप में होना चाहिये. जिसके पढ़ने से बच्चों में राष्ट्रहित की भावना पनपेगी और अन्य भाषाओं में उसका स्वामित्व बढ़ेगा.
कार्यक्रम की अध्यक्षता एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक पद्मश्री प्रो. जेएस राजपूत ने की. विशेष सान्निध्य विद्या भारती के मार्गदर्शक पद्मश्री ब्रह्मदेव शर्मा (भाई जी) का प्राप्त हुआ. विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सचिव अवनीश भटनागर ने आगंतुकों का स्वागत किया एवं अतिथियों का परिचय कराया. प्रस्तावना विजय गणेश कुलकर्णी ने प्रस्तुत की.
मातृभाषा के रूप में होना चाहिये. जिसके पढ़ने से बच्चों में राष्ट्रहित की भावना पनपेगी और अन्य भाषाओं में उसका स्वामित्व बढ़ेगा.
कार्यक्रम की अध्यक्षता एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक पद्मश्री प्रो. जेएस राजपूत ने की. विशेष सान्निध्य विद्या भारती के मार्गदर्शक पद्मश्री ब्रह्मदेव शर्मा (भाई जी) का प्राप्त हुआ. विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के सचिव अवनीश भटनागर ने आगंतुकों का स्वागत किया एवं अतिथियों का परिचय कराया. प्रस्तावना विजय गणेश कुलकर्णी ने प्रस्तुत की.
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