फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वितीया, कलियुग वर्ष ५११६
नई दिल्ली – रुस से भारत आए पांच जोड़ों ने आज यहां हिन्दू रीति-रिवाज से शादी की। इस शादी का आयोजन आर्ट ऑफ लिविंग सेंटर में वैदिक परंपराओं के हिसाब से किया गया। इस समारोह में वैदिक रीति में पारंगत पंडितों ने पुराने वैदिक मंत्रों का पाठ करते हुए शादी की रस्म पूरी करवाई।
वैदिक रीति से शादी के महत्व के बारे में आर्ट ऑफ लिविंग के दिनेश काशीकर का कहना है, ‘जब कोई काम रीति-रिवाज के तहत किया जाता है तो उसमें स्थायित्व अधिक होता है। इन परंपराओं का सदियों से अनुसरण किया जा रहा है। इस कारण से इसमें भाग लेने वाले भी प्राचीन समय से जुड़ाव महसूस करते हैं। जो अध्यात्म से जुड़ाव महसूस करते हैं, वैदिक शादी उन्हें विवाहित जीवन में आध्यात्मिकता का अनुभव कराता है व विवादों से दूर रखता है। यह इस अंतर्रविरोध को भी दूर करता है कि शादी आध्यात्मिक जीवन का हिस्सा नहीं है।’
हाल के वर्षों में आर्ट ऑफ लिविंग सेंटर में कई देशों से लोग वैदिक रीति-रिवाज से शादी करने आ रहे हैं। इनमें रुस, अर्जेंटीना, अमेरिका, मंगोलिया, ताईवान, मलेशिया, पाकिस्तान, कनाडा, जर्मनी, लिथुआनिया, आयरलैंड, कोरिया, नार्वे, उरुग्वे और स्वीडन प्रमुख है।
दिनेश काशीकर वैदिक शादी की दुनिया में बढ़ती लोकप्रियता के बारे में कहते हैं, ‘मंत्रों के उच्चारण और उसकी व्याख्या से शादी की रस्म में पांच तत्व और प्रकृति भी साक्षी होती है। वे किसी मनुष्य के साक्षी होने से कहीं ज्यादा स्थाई है। ‘
उनके मुताबिक सप्तपदी के दौरान जो सात वादे किए जाते है वह भी विवाहित जीवन की विलक्षणता का वर्णन है। शादी के दौरान जो रस्में होती है, उनका भी एक सांकेतिक महत्व है। जैसे कि चावल के भूंजे से की जाने वाली रस्म ‘लाजा होमा’ में भूंजा परिपूर्णता का प्रतीक है और इसके दौरान जिन मंत्रों का उच्चारण किया जाता है वे हमारे जीवन की संपूर्णता का प्रतीक है।
स्त्रोत : जागरण
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