भरतपुर (विसंके). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत जी ने कहा कि संघ का काम कार्यकर्ता का निर्माण करना है, जो देश हित में कार्य कर सके. अनुशासन, समय पालन व देशहित में कार्य करना स्वयंसेवक की आदत बन चुकी है. संघ समाज को जोड़ने का कार्य करता है. संघ कार्य के बदले स्वयंसेवक को क्या मिलेगा, यह स्वयंसेवक की सोच नहीं है. संघ देशभक्ति के विचार को आगे बढ़ाने के लिये सतत रूप से प्रयासरत है. संगठन के काम को गांव और बस्ती तक पहुंचाने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि सरकार और परिस्थिति बदलती रहती हैं, लेकिन इन सब में हमें समर्थ भारत के निर्माण के लिये संघ के कार्य को बढाना होगा. संघ के प्रत्येक स्वयंसेवक का उद्देश्य जीवनपर्यन्त देश के लिये कार्य करना है. संघ अपनी स्थापना के ९० वर्षों से सतत रूप से राष्ट्र कार्य में लगा है. संघ को समझने के लिये अन्य संगठनों से तुलना करना संभव नहीं है.
सरसंघचालक जी रविवार को लोहागढ़ स्टेडियम में भरतपुर धौलपुर जिले के कार्यकर्ताओं के नव चैतन्य संगम को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि दुनिया में एकता की कुछ शर्तें हैं, किंतु भारत में देश के प्रति मातृभूमि का भाव एकता का सूत्र है. इस भाव को जब-जब हम भूले हैं, विदेशियों ने विजय प्राप्त कर हमें गुलाम बनाया. इसलिये एक हजार साल के उस वक्त को भूलकर हमें संघ के कार्य को बढ़ाना चाहिये. उन्होंने कहा के देश विविधता से भरा हुआ है. इसे स्वीकार करो. एकता को पहचानो. सबको साथ लेकर संघ कार्य को बढ़ाएं. क्योंकि संघ का कार्य लोगों को जोड़ना है. लोग जुड़ेंगे तो देश बढ़ेगा.
इसके लिये हमें जात -पात, क्षेत्र, धर्म के भेद को छोड़कर संगठन के कार्य को बढ़ाना होगा. संघ के मर्म को समझ कर समर्थ भारत का निर्माण करना है. डॉ. भागवत ने कहा कि संघ का काम यंत्रवत नहीं होना चाहिये, वरन विचार के साथ हो. क्योंकि इससे नुकसान होता है. संघ की शाखाओं का उद्देश्य ऐसे कार्यकर्ताओं का निर्माण करना है, जो देने के भाव से आएं. निस्वार्थ भाव से काम कर सकें क्योंकि दिशावान कार्यकर्ता ही हर क्षेत्र में संगठन को आगे बढ़ा सकता है.
डॉ. भागवत ने कहा कि भारत की प्रशस्ति रामायण, महाभारत, पुराणों तथा वेदों में पढ़ने को मिलती है. हमारी संस्कृति हमें आपस में जोड़ने वाली है. हमें भारत को फिर से विश्वगुरु बनाना है ताकि हम पूरे विश्व को सुखी बना सकें. विविधता को स्वीकार करना चाहिये, सारी विविधता एक से निकली है, एक को जानोगे तो सदा के लिये सुखी हो जाओगे. यही कार्यकर्त्ता के जीवन का लक्ष्य है. अपनी अपनी श्रद्धा पर पक्के रहना चाहिये, साथ ही दूसरे की श्रद्धा का सम्मान करे क्योंकि वो भी उतनी ही सत्य है.
त्याग का आह्वान करते हुये कहा कि सभी को मिल जुल कर रहते हुये, सभी के हित का विचार करते रहना चाहिये. अपने अमूल्य जीवन को सेवा और परोपकार के लिये उपयोग में लेना है, इसे ध्यान में रखते हुए सदैव त्याग के लिए तत्पर रहें. यह भारतीय संस्कृति की ही सीख है, यही हिन्दू संस्कृति है. हमारा कार्य हिन्दू समाज को संगठित करना है , हिन्दू समाज संगठित होगा तो भारत वर्ष अपने आप सम्पन्न होगा. समाज और देश के लिये कम से कम एक घंटा निकालो. जिम्मेदारी पूरी करने के बाद वानप्रस्थी जीवन जियो.
राष्ट्र भक्ति की भावना को आगे बढ़ाना है. राष्ट्र के समक्ष कई संकट है, कई कार्य करने वालों की आवश्यकता भी है. कार्य करने के लिये प्रमाणिकता के साथ निःस्वार्थ भाव से उसे पूर्ण करने वाले व्यक्तियों का समाज बनाना संघ का कार्य हैं.
इजराइल का उदाहरण देते हुये डॉ. भागवत ने कहा कि यह छोटा सा देश हमारे साथ ही आजाद हुआ था. हमारे पास बड़ा भौगोलिक क्षेत्र, विविधता भी थी, फिर भी हम अपेक्षित तरक्की नहीं कर पाये. इसका कारण अपनी सांस्कृतिक पहचान को भूलना था और उसी कारण विदेशी आक्रामक विजयी होने लगे. हमें गुलाम बना लिया गया. अब हमें हज़ार वर्ष के चक्र को बदलना है , इसके लिये समय निकालना होगा. अपनी अपनी क्षमता के अनुसार मातृभूमि के लिये खड़े रहो ताकि राष्ट्र के लिये जीने-मरने वाला समाज तैयार हो सके.
इससे पूर्व कार्यकर्ताओं ने घोषवादन पर नियुद्ध, दंड प्रहार और व्यायाम का प्रदर्शन किया. भाव गीत “निर्मले हे धार गंगे, अनथकी बहती रहो…” प्रस्तुत किया गया. मंच पर संघचालक लक्ष्मीनारायण चातक, डॉ. रमेशचंद एवं महेंद्र सिंह मग्गो उपस्थित थे.
8 हजार घरों से जुटाए सुदामा के चावल
संघ के कार्यक्रम में बाहर से आए करीब 8 हजार स्वयंसेवको के लिये भोजन की व्यवस्था की गई थी, किंतु इसके लिए हलवाई नहीं लगाया गया. भट्टी भी नहीं जली, बल्कि घर-घर से दो-दो पैकेट भोजन जुटाया गया. इसके लिये कार्यकर्ताओं ने शहर भर में एक दिन पहले भोजन की थैली बांटी और आज सुबह इन्हें एकत्रित किया गया. संघ ने इसे सुदामा के चावल नाम दिया.
तीन तीन पीढिय़ां एक साथ
संघ के कार्यक्रम में दो- तीन ऐसे परिवार भी आए, जिनकी तीन पीढिय़ां स्वयंसेवक के रूप में शामिल हुई. उदाहरणार्थ, संघ कार्यकर्ता हुक्मसिंह अपने पुत्र कुल भानसिंह पौत्र देवराजसिंह के साथ शामिल हुए.
महाराजा सूरजमल स्मारक पर चढ़ाए फूल
सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने महाराजा सूरजमल स्मारक पर पुष्प चढ़ाए तथा स्मारक का अवलोकन किया. इस मौके पर पर्यटन मंत्री कृष्णेंद्र कौर एवं धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष ओंकार सिंह लखावत ने स्वागत किया. संघ प्रमुख ने कहा कि युवाओं को चारधाम की यात्रा की तरह देशप्रेम का जज्बा पैदा करने वाले ऐतिहासिक स्मारकों की यात्रा करानी चाहिये.
No comments:
Post a Comment